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पाठकीय

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Oct 10, 2004, 12:00 am IST
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दिंनाक: 10 Oct 2004 00:00:00

अंक-संदर्भ, 12 सितम्बर, 2004पञ्चांगसंवत् 2061 वि., वार ई. सन् 2004आश्विन कृष्ण 11 रवि 10 अक्तूबर,, ,, 12 सोम 11 अक्तूबर,, ,, 13 मंगल 12 अक्तूबर,, ,, 14 बुध 13 अक्तूबर(पितृ विसर्जन)आश्विन अमावस्या गुरु 14 अक्तूबरआश्विन शुक्ल 1 शुक्र 15 अक्तूबर(शारदीय नवरात्रारम्भ),, ,, 3 शनि 16 अक्तूबररक्षा सूत्र पर ओछी राजनीति”जवानों के हाथों से छिनी राखी” शीर्षक से प्रकाशित रपट पढ़ी। केन्द्र सरकार द्वारा सैनिकों को धार्मिक प्रतीक चिन्ह, सूत्र, अंगूठी इत्यादि धारण न करने देने की खबर उन दिनों की याद दिलाती है, जब औरंगजेब के शासनकाल में हिन्दू होने के कारण जजिया देना पड़ता था। लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब यह सरकार पंथनिरपेक्षता के नाम पर मंदिरों में पूजा-पाठ करने पर भी प्रतिबंध लगा देगी।-आनन्द कुमार “भारतीय”होमियोपैथिक मेडिकल कालेज, मोतीहारी (बिहार)पुरस्कृत पत्रजिसकी संख्या अल्प उसकी सुध ले आयोगमारा संविधान स्पष्ट कहता है कि पंथ के नाम पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। बार-बार यह भी कहा जाता है कि चाहे हिन्दू, मुस्लिम, सिख या अन्य कोई हों उन्हें राष्ट्रीयता से ऊपर नहीं समझना चाहिए। यानी राष्ट्रीयता सर्वोपरि है, तो फिर किसी वर्ग विशेष के लिए इतनी हायतौबा क्यों मचती है? एक अल्पसंख्यक, विशेषकर मुस्लिम के साथ कोई छोटी-सी भी घटना घटती है तो देश-विदेश सर्वत्र आवाज गूंजने लगती है- अल्पसंख्यक खतरे में हैं, उनकी सुरक्षा करो। फिर उनकी सहायता के लिए सैकड़ों सेकुलर हाथ आगे बढ़ते हैं। पर जब हिन्दुओं के साथ बर्बरता की सभी सीमाएं पार हो जाती हैं, फिर भी कोई उसे अन्याय नहीं कहता, उसकी सहायता की तो बात दूर। इतना ही नहीं, जब कोई पीड़ित हिन्दुओं की सहायता के लिए आगे बढ़ता है या उनका पक्ष लेता है, तो उसे घोर साम्प्रदायिक कहा जाता है। यही कारण है कि आज जम्मू-कश्मीर के हिन्दू अपने ही देश में शरणार्थी जीवन जीने के लिए विवश हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में भी हिन्दुओं के साथ अन्याय हो रहे हैं, फिर भी सभी चुप हैं।जम्मू-कश्मीर, मिजोरम, नागालैण्ड, मेघालय आदि राज्यों में हिन्दुओं की संख्या कम होते हुए भी उन्हें बहुसंख्यक कहा जाता है। यह उन राज्यों के हिन्दुओं के साथ दोहरा अन्याय है। और तो और इन राज्यों से तथाकथित सेकुलर हिन्दुओं को बाहर खदेड़ने में लगे हुए हैं। हिन्दुओं पर आए दिन अत्याचार हो रहे हैं फिर भी कोई यह नहीं कह रहा है कि उन राज्यों में हिन्दुओं के साथ अन्याय हो रहा है। यह कैसी नीति है? इसलिए मेरा विचार है कि हर राज्य में जनसंख्या के हिसाब से अल्पसंख्यक आयोग का गठन हो। अर्थात् जिन राज्यों में जो भी मतावलम्बी कम हों, उनके लिए अल्पसंख्यक आयोग हो और उन्हें अल्पसंख्यक के नाम पर मिलने वाली सारी सुविधाएं मिलें। जम्मू-कश्मीर, मिजोरम, नागालैंड, मेघालय आदि राज्यों में अल्पसंख्यक आयोग उनके लिए काम करता है, जो वहां बहुसंख्यक हैं। यह कैसा भेदभाव?राजेश मोहनभाईबी/8, लाबेला अपार्टमेंट,स्वागत रेस्टोरेन्ट वाली गली,सी.जी. रोड के सामने, अमदाबाद (गुजरात)——————————————————————————–हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रु. का पुरस्कार दिया जाएगा।सं.जबसे संप्रग सरकार बनी है, ऐसा लगता है जैसे हिन्दूविरोध ही उसका एकमात्र कार्य है। इस बार रक्षाबंधन के अवसर पर जवानों की कलाइयां सूनी रह गईं। मुस्लिम तुष्टीकरण के सारे कीर्तिमान ध्वस्त हो गए। इस तरह के तालिबानी आदेश सिर्फ यही सरकार दे सकती थी। लालू यादव केवल मुस्लिम वोट के लिए गोधरा रेल कांड की दूसरी जांच की बात कर रहे हैं।-प्रभाकर पाण्डेयकला मंदिर रोड, रीवा (म.प्र.)धार्मिक प्रतीक चिन्हों के प्रयोग से सैनिकों को मना करना एक विडम्बना है। वोट के इन सौदागरों को सैनिकों का त्याग, उनकी बहादुरी और उनकी कठिन दिनचर्या नहीं दिखती। अगर दिखती होती तो ये लोग कदापि ऐसा आदेश नहीं देते। कल्पना कीजिए किसी घर का एक लाडला, जो अपने घर से सैकड़ों मील दूर कठिन परिस्थिति में देश की रक्षा के लिए खड़ा है, जब वह सुनता है कि आज रक्षाबंधन है, दीपावली है, होली है, दशहरा है तो उसके मन में यह बात अवश्य उठती होगी कि काश, मैं भी घर में होता तो अपने परिवार के साथ पर्व मनाता। ऐसे सैनिकों को जब रक्षाबंधन के दिन सीमा पर कोई बहन राखी बांधती है तो उसे कितनी खुशी होती होगी, अंदाज लगा सकते हैं। इसलिए सरकार ऐसे आदेश देने से बाज आए।-मनीष कुमारग्रा.-बाबूपुर, पत्रा.-पीपरा, पथरगामा, गोड्डा (झारखण्ड)राखी को धार्मिक भावना से जोड़ने वाली सरकार को यह नहीं मालूम कि राखी तो कोई भी, किसी को भी बांध सकता है। भले ही आज राखी भाई-बहन के पर्व की प्रतीक मानी जाती है परन्तु इसकी सच्चाई तो यह है कि यह रक्षा की प्रतीक है। एक महिला ने हुमायूं को राखी बांध अपनी रक्षा का वचन लिया था। और तो और, सिकंदर की पत्नी ने पोरस को राखी बांधकर यह वचन लिया था कि वह सिकंदर का वध नहीं करेगा। सरकार बताए कि आखिर जवानों को राखी बांधने में हर्ज ही क्या है?-शक्तिरमण कुमार प्रसादश्रीकृष्णानगर, पथ संख्या-17, पटना (बिहार)ऐसा पहली बार हुआ है कि सैनिकों को राखी बांधने से वंचित रहना पड़ा हो। जहां तक गोधरा की दूसरी जांच का प्रश्न है, यह विचित्र एवं हास्यास्पद ही है कि लालू यादव ने जांच शुरू होने से पहले ही उसका निष्कर्ष भी बता दिया है कि रेल के डिब्बे में आग बाहर से नहीं, बल्कि अन्दर से लगी अथवा लगाई गई थी। इसका साफ अर्थ है कि लालू यादव आग लगाने वाले दोषी मुस्लिम तत्वों को बचाकर बिहार चुनाव में मुस्लिम वोट हासिल करना चाहते हैं।-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)जहां राखी के कोमल धागों में गूंथा है भाई-बहन का अटूट स्नेह, वहीं इन धागों में छिपी है संपूर्ण नारी समाज की रक्षार्थ सर्वस्व न्योछावर करने वाले वीर पुरुषों की गाथा। यह सामाजिक समरसता का पर्व है किन्तु सेकुलरी हुक्म ने इसे अटपटा-सा बना दिया है। कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजकर सहायता मांगी थी और हुमायूं ने इसे निभाया भी था। किन्तु सेना मुख्यालय से निर्गत आदेश कि सेना के जवान, अधिकारी धार्मिक सूत्र न पहनें, सामाजिक संबंधों में दरार पैदा करने वाला है। धार्मिक प्रतीक चिन्ह, कंगन, नग की अंगूठी, तिलक आदि मनाही करने से किसी की भावनाएं तो बदल नहीं जाएंगी।-अर्जुन प्रसाद आर्यबन्दखारो (झारखण्ड)सुखद आश्चर्यदिशादर्शन स्तम्भ के अन्तर्गत श्री भानुप्रताप शुक्ल का लेख “राजनीतिक चश्मे से न देखें गांधी जी को” पढ़कर सुखद आश्चर्य हुआ। सन् “60 से “62 तक जब मैं लखनऊ जी.टी.आई. में पढ़ता था, उन्हीं दिनों मैं पाञ्चजन्य के सम्पर्क में आया, जो तब लखनऊ से ही छपता था। उन दिनों श्री यादवराव देशमुख इसके सम्पादक थे और श्री भानुप्रताप शुक्ल भी पाञ्चजन्य का कार्य करते थे। पाञ्चजन्य में छपने वाला उनका नियमित स्तम्भ मैं ध्यानपूर्वक पढ़ा करता था। जहां तक स्मरण है उस स्तम्भ का शीर्षक भी संभवत: “दिशादर्शन” ही था। बाद में पता लगा कि पाञ्चजन्य में उनके लेख नहीं छप रहे। इस बीच उनके लेख अन्य पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे किन्तु पाञ्चजन्य में नहीं छपे। अब फिर से उनका लेख छपा देखकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई।-अरविन्द सिंह बिष्टग्राम -मानपुर,कोटद्वार (उत्तराञ्चल)दिशादर्शन का सारांश यह है कि रोज-रोज गांधी जी की हत्या क्यों हो रही है? राजनेता इस बहाने अपनी ही राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं। कई बार सिद्ध हो चुका है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गांधीजी की हत्या की साजिश में कोई हाथ नहीं था। लेकिन संघ विरोधी नेताओं को कुछ न कुछ काम तो चाहिए। ऐसी बात व्यक्ति की घटिया मानसिकता दर्शाती है। ऐसे लोगों को उचित दण्ड दिलाना चाहिए।-विनोद कुमार शर्माग्राम-पो.- भूरा, मुजफ्फर नगर (उ.प्र.)विनाशकाले विपरीत बुद्धिमुजफ्फर हुसैन का लेख “जापान में मुसलमान और अब नहीं” पढ़कर ऐसा लगा कि काश, हमारे यहां भी ऐसा ही नेतृत्व होता, जो इतनी दमदारी के साथ कोई निर्णय ले पाता और उसे लागू करता। यदि ऐसा होता तो आज जो अनेक समस्याएं खड़ी हैं, वे पैदा ही न हो पातीं। किन्तु हमारे यहां उल्टा ही हो रहा है। मानवाधिकार के नाम पर आतंकवादियों को बचाया जा रहा है, घुसपैठियों को संरक्षण दिया जा रहा है। इसे ही “विनाशकाले विपरीत बुद्धि” कहते हैं।-नैनाराम सेपटावारा.मा. विद्यालय, पिलावनी, पाली (राजस्थान)राष्ट्रभाषा हिन्दीपुरस्कृत पत्र के रूप में श्री देवेन चन्द्र दास का पत्र “फिर मनेगा हिन्दी दिवस का जश्न?” पढ़ा। उनकी बात बिल्कुल ठीक है। संविधान की धारा 343 के अनुसार 15 साल के अन्दर हिन्दी को राजभाषा का दर्जा मिल जाना चाहिए था। पर अब तो संविधान को लागू हुए 53 वर्ष हो गए हैं। किन्तु हिन्दी पीछे ही होती जा रही है और अंग्रेजी बढ़ रही है। आश्चर्य होता है यह जानकर कि विकसित देशों में अंग्रेजी का प्रचलन उतना नहीं है जितना कि बताया जाता है, जबकि विकासशील देशों में अंग्रेजी का बोलबाला है। जापान, कोरिया, चीन, थाईलैंड आदि देशों में सारे कार्य प्राय: उनकी मातृभाषा में होते हैं। पर हमारे यहां अंग्रेजी ही अंग्रेजी दिख रही है। ऐसी स्थिति में लगता नहीं है कि हिन्दी कभी राजभाषा का सम्मान पा सकेगी।-हरि सिंह महतानी89/7, पूर्वी पंजाबी बाग, नई दिल्लीआंकड़ों में उलझाजनसंख्या के आंकड़ों, में उलझा है देशपर कुछ को चिन्ता नहीं, बदलेगा परिवेश।बदलेगा परिवेश, अहिंसा-प्रेम मिटेगाविकसित भारत का नारा बस स्वप्न बनेगा।कह “प्रशांत” इस तरह हिन्दुओं का घट जानासाफ अर्थ है भारत का अस्तित्व मिटाना।।-प्रशांतसूक्ष्मिकासमझने की बातचुनाव का मतलबसमझने की बातचक्कर काटती हैमतलबियों की जमात-मिश्रीलाल जायसवालसुभाष चौक,कटनी (म.प्र.) 23

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