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भारत में भक्ति का बाजार कभी कम नहीं हुआ, यह बढ़ेगा ही-प्रदीप गंगलउपाध्यक्ष, सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीजधार्मिक गीतों और भजनों के माध्यम से भक्ति-धारा जन-जन तक पहुंचाने की शुरुआत करने वाले स्व.गुलशन कुमार की कम्पनी टी सिरीज ने तो अपना आधार ही भक्ति गीतों को बनाया और यह व्यवसाय इतना बढ़ा कि अब तक टी सिरीज के 35,000 एलबम बाजार में आ चुके हैं। टी सिरीज के उपाध्यक्ष श्री प्रदीप गंगल के अनुसार “इन 35,000 में से 60 से 70 प्रतिशत एलबम धार्मिक हैं। और सच तो यह है कि भक्ति का बाजार कभी कम नहीं हुआ। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम धर्म को बेच रहे हैं, लोग अपने पूज्य देवी-देवताओं के संतों के भजन सुनना चाहते हैं और कैसेट और सीडी खरीदते हैं।”श्री गंगल कहते हैं, “1982-83 में स्व. गुलशन कुमार ने सुपर कैसेट्स इंडस्ट्रीज शुरू करने से पहले महसूस किया कि लोगों में धर्म के प्रति गहरी आस्था है। लेकिन उसका पूजनीय रूप ही प्रचारित था, भक्ति पूजनीय के साथ-साथ रमणीय भी हो सकती है, ऐसी भावना नहीं थी। प्रयोग के तौर पर उन्होंने चारों धामों की यात्रा और वैष्णो देवी यात्रा के वीडियो कैसेट निकाले। वे इतनी बड़ी संख्या में बिकेंगे शायद उन्हें भी इसका अनुमान न था। 15 साल बाद भी अब तक वे कैसेट बन रहे हैं और बिक रहे हैं। लोग खरीदते हैं, इसीलिए तो बन रहे हैं। अब तक इन यात्राओं के ही लाखों कैसेट बिक चुके हैं।” श्री प्रदीप गंगल की बातों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भक्ति का बाजार कितना विशाल है।अगर भक्ति का बाजार न होता तो इतने भक्ति चैनल शुरू न होते-गुरमीत सिंह, व्यापार प्रमुख, म्यूजिक टुडेबाजार में भक्ति संगीत की मांग कितनी ज्यादा है, इसकी पुष्टि करते हैं शास्त्रीय राग संगीत के लिए पहचानी जाने वाली कम्पनी म्यूजिक टुडे के व्यापार प्रमुख श्री गुरमीत सिंह। वे कहते हैं, “भक्ति संगीत बाजार में दूसरे क्रमांक पर है। फिल्मी संगीत के कैसेटों के बाद सबसे ज्यादा भक्ति संगीत के कैसेट बिकते हैं। यानी 50 से 55 प्रतिशत फिल्मी गीतों के कैसेट बाजार में हैं तो 20 प्रतिशत भक्ति संगीत के।”1990 में म्यूजिक टुडे शुरू हुआ तभी से उन्होंने भक्ति संगीत पर ध्यान दिया। शास्त्रीय रागों के एलबम में भक्ति संगीत तो था ही। 1996 में “भक्तिमाला” के नाम से 16 एलबम निकाले, जिसमें पं. जसराज, पं. भीमसेन जोशी आदि के भजन थे। “भक्तिमाला” के बाद “भक्ति” नाम से एलबम निकाला, उसके बाद तो भक्ति संगीत का यह सिलसिला तेजी से चल निकला। अब “मंत्रोच्चार” के चार कैसेट और सीडी बाजार में आने वाले हैं। यह सब क्या दर्शाता है? जवाब देते हैं श्री गुरमीत सिंह, “प्रचार-प्रसार का एक बड़ा कारण है भक्ति चैनल। जब से ये चैनल शुरू हुए, भक्ति से जुड़ी चीजों का व्यावसायीकरण बढ़ा है। और अगर भक्ति को व्यावसायिक दृष्टि से नहीं देखा जाता तो इतने चैनल शुरू ही नहीं होते। भारत में भक्ति का भी एक बाजार है। चूंकि धर्म हर भारतवासी के भीतर समाया हुआ है, और जो चीज हमारे भीतर है, उसका तो व्यवसाय बढ़ेगा ही।”बढ़ती विज्ञापन दरें, आखिर किस बात का प्रमाण हैं?-शशि बंसल, कार्यकारी निदेशक, संस्कार चैनलबाजार के रुख और लोगों में बढ़ते भक्तिभाव को देख, जनवरी, 2000 में “मोहता- माछेर काबरा ग्रुप” ने संस्कार चैनल शुरू किया। भारत में शुरू होने वाला यह पहला भक्ति चैनल था। और इसके साथ ही धार्मिक पुनर्जागरण का एक आंदोलन-सा शुरू हो गया। संस्कार चैनल के कार्यकारी निदेशक श्री शशि बंसल मानते हैं, “आज की भागदौड़ की जिन्दगी में धर्म का महत्वपूर्ण स्थान हो गया है। लोग अपने आराध्य देवी-देवताओं, पूज्य संतों, गुरुओं को सुनना-देखना पसंद करते हैं, भक्ति संगीत सुनना चाहते हैं। यही कारण है कि हमारे चैनल पर विज्ञापन दरें निरंतर बढ़ रही हैं और उत्पादक कम्पनियां अपने विज्ञापन देती हैं। आज ईश्वर की कृपा और संतों के आशीर्वाद से हम इतना लाभ कमा रहे हैं कि हम ऐसा ही एक और चैनल खोलने की स्थिति में हैं। भारत के लोगों में धर्म रचा-बसा है। ऐसे में चार-आठ क्या, चालीस चैनल भी खुल जाएं तो कम हैं।”साधना के लिए साधन भी तो चाहिए ही-माधव कांत मिश्रप्रमुख (उत्तर क्षेत्र), आस्था चैनलवर्ष 2000 के बाद एक के बाद एक भक्ति चैनल शुरू हुए। संस्कार के बाद आस्था चैनल आया। 18 जून, 2000 को शुरू हुआ आस्था चैनल भक्ति के क्षेत्र में एक और दस्तक थी। आस्था ब्रााडकाÏस्टग नेटवर्क लिमिटेड कम्पनी, उत्तर क्षेत्र के प्रमुख श्री माधवकांत मिश्र भक्ति चैनलों को एक आध्यात्मिक आंदोलन मानते हैं। उनका कहना है विश्व में ईसाई मत और इस्लाम के लगभग 100-150 चैनल हैं। भारत में भी गाड चैनल और कुरान टी.वी. आते हैं, जिनमें चमत्कार दिखाकर सुनियोजित ढंग से प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है। आकाश मार्ग से भारतीय संस्कृति पर आक्रमण को इन भक्ति चैनलों ने रोका है। ये प्रकाश-स्तंभ की तरह कार्य कर रहे हैं। भक्ति के साथ व्यावसायिकता जुड़ने के प्रश्न पर वे कहते हैं, “व्यावहारिक रूप से यह आध्यात्मिक कार्य है, इसमें धन का कोई बहुत बड़ा स्रोत नहीं होता। फिर अगर हम इसके जरिये व्यवसाय करने लगेंगे तो यह भक्ति चैनल नहीं रह जाएगा, लेकिन यह भी सच है कि साधना के लिए साधन तो चाहिए ही।”जी नेटवर्क के गुलदस्ते में भक्ति चैनल कीकमी को पूरा किया जागरण ने-अनिल आनंद,प्रमुख, जागरण चैनलभक्ति चैनलों की महत्ता और लोकप्रियता देख जी और स्टार जैसे बड़े-बड़े चैनल उद्योग के महारथियों ने भी भक्ति चैनलों की ओर कदम बढ़ाया। इसी वर्ष मकर संक्रांति को जी नेटवर्क ने “जागरण” नाम से अपना भक्ति चैनल शुरू किया। आखिर इसकी जरूरत क्यों महसूस हुई? इस प्रश्न के उत्तर में जागरण चैनल के प्रमुख श्री अनिल आनंद कहते हैं, “जी नेटवर्क के गुलदस्ते में 18 चैनल पहले से चल रहे थे। इसमें भक्ति चैनल की कमी थी, जो जागरण से पूरी हुई। और शुरू से ही हमें विज्ञापन मिलने शुरू हो गए थे। फिर जागरण को चलाने के लिए सिर्फ इसकी आय पर ही तो हम निर्भर नहीं हैं। यह तो जी नेटवर्क के गुलदस्ते का एक फूल है, जिसमें भक्ति और धर्म की महक है।”भक्ति चैनलों में व्यावसायिकता उचित नहीं-राकेश गुप्तानिदेशक, साधना चैनलसाधना चैनल के श्री राकेश गुप्ता का कहना है, “भक्ति चैनलों को व्यावसायिक दृष्टिकोण से नहीं देखना चाहिए। यदि इनके साथ व्यावसायिकता जुड़ गई तो हम धर्म के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से भटक जाएंगे। हमारा लक्ष्य धनार्जन ही रह जाएगा। दृष्टिकोण सिर्फ व्यावसायिक हो जाएगा। साधना आध्यात्मिक, सामाजिक चैनल है। और सच तो यह है कि कुछ कार्य ऐसे होते हैं, जिनमें व्यक्ति को अपनी आत्मा डालनी पड़ती है और कुछ ऐसे होते हैं जो व्यावसायिक स्तर पर ही होते हैं। साधना चैनल का खर्चा विज्ञापनों से चलता है।”27
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