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भक्ति का प्रचार, बढ़ता बाजारयह कहना गलत न होगा कि जैसे-जैसे पाप बढ़ रहा है वैसे-वैसे भक्ति की शक्ति भी लोगों को अपनी ओर खींच रही है। वे अखबार समूह भी, जो अपने पत्रों में घोर हिन्दुत्वविरोधी सामग्री छापते हैं, अब पैसा कमाने के लिए हिन्दू धर्म और हिन्दू धार्मिक भक्ति से जुड़े लाखों कैसेट बेचकर करोड़ों कमा रहे हैं। उधर धार्मिक चैनलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस प्रक्रिया के सकारात्मक पहलू भी हैं तो व्यावसायिकता एवं धार्मिक प्रतीक चिन्हों के माध्यम से अश्लीलता परोसने का खतरा भी। इस पूरे परिदृश्य पर एक नजर डाल रही हैं विनीता गुप्ताहत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती, लूट-पाट, दुर्घटनाएं, छेड़छाड़-अखबारों की इन सुर्खियों और टेलीविजन पर धारावाहिकों व समाचारों को देखते हैं तो लगता है, यही है जीवन का सच। यानी चारों ओर हाहाकार और अंधकार ही अंधकार, पाप ही पाप। क्या इस अंधकार में कहीं कोई नंदादीप भी है जो जीवन के प्रति आस्था जगाए, जीवन के प्रति सकारात्मक सोच विकसित करे?…तब व्यक्ति लौटता है धर्म की ओर।हम दिनभर झूठ-फरेब में उलझे रहने के बाद शाम को मंदिर में कुछ पत्र-पुष्प भगवान को समर्पित कर, उसकी ड्योढ़ी पर मत्था टेककर माफी मांग लेते हैं और संतुष्ट हो जाते हैं। सोचते हैं, पाप धुल गए। यह एक प्रकार से मानसिक संतुष्टि है, जो लोगों को मंदिर में ले जाती है। भजन-कथा सुनने को प्रेरित करती है। तीर्थस्थानों तक ले जाती है। जितना पाप बढ़ता जा रहा है, उसी अनुपात में लोगों की धर्म में रुचि बढ़ती जा रही है। इसका प्रमाण है, तीर्थस्थानों में जाने वाले श्रद्धालुओं की तेजी से बढ़ती संख्या। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा हो या वृन्दावन, वैष्णो देवी हो या शिव का धाम, कैलास-मानसरोवर हो या अमरनाथ-यात्रा, यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ी है। श्रावण मास में कांवर उठाए, सड़कों पर नंगे पैर चलते “बोलबम…” के स्वर गुंजाते कांवरियों की बढ़ती भीड़ देखी जा सकती है। कांवरियों के स्वागत में हर एक-डेढ़ किलोमीटर पर लगे शिविरों में भव्य झांकियां, प्रभु के भजन, कांवरियों के लिए भोजन- पानी-दवा, विश्राम की व्यवस्था। ये दृश्य देखकर लगता है व्यक्ति फिर धर्म की ओर, भक्ति की ओर लौट रहा है। इस तथ्य का सबसे बड़ा प्रमाण हैं चौबीसों घंटे चलने वाले चार-चार भक्ति का आस्वादन कराते टीवी चैनल। इन चैनलों पर दिखाई जाने वाली संतों की कथाएं, प्रवचन, भजन, देवी-देवताओं के जीवन को दर्शाने वाले धारावाहिक, फिल्में, योग, ज्योतिष आदि। पाप, हिंसा, मारधाड़, रोमांच, सनसनी-टेलीविजन चैनलों द्वारा दी जाने वाली इस खुराक के बीच क्या भजन, कथाएं, संतों के प्रवचन स्थान बना पाएंगे? एक-दो दशक पहले यह एक सवाल जरूर हो सकता था लेकिन जब चैनल उद्योग का ध्यान दूरदर्शन पर प्रसारित रामायण और महाभारत की लोकप्रियता की ओर गया तो उन्हें लगा कि भारत में भक्ति का बाजार बहुत विशाल है। 1986-87 और उसके बाद का वह दौर याद आता है जब दूरदर्शन पर रामायण और बाद में महाभारत धारावाहिक का प्रसारण होता था और दर्शक सब काम छोड़कर उसे देखने टी.वी. के सामने बैठ जाते थे। सड़कें एकदम सुनसान होती थीं। और यह सच भी है कि इन दोनों धारावाहिकों ने जितनी कमाई की उतनी आज तक किसी ने नहीं की। यही वह सूत्र था जिसे पकड़ा निजी टेलीविजन चैनलों के स्वामियों ने। और एक के बाद एक संस्कार, आस्था, साधना और जागरण जैसे 24 घंटे के भक्ति चैनल शुरू हो गए। तो क्या भक्ति चैनलों से इतना लाभ होता है कि इतनी मोटी रकम लगाने का जोखिम उठाया जा सके और रकम लगाने के बाद उसे चलाया जा सके?निश्चित ही भक्ति का बाजार बहुत विशाल है और सभी भक्ति टेलीविजन चैनल लाभ की स्थिति में हैं। सिर्फ भक्ति चैनल ही क्या, भक्ति कैसेटों और सीडी का भी आज एक बड़ा उद्योग है। भजनों के कैसेट लाखों की संख्या में बिकते हैं।….एक के बाद एक खुलते आध्यात्मिक चैनल, भक्ति संगीत के कैसेटों और सीडी की लाखों में बिक्री इस बात का प्रमाण है कि धर्म के प्रति लोगों का रुझान बढ़ रहा है। आज देश में दो विपरीत धाराएं दिखाई दे रही हैं, एक है हिंसा, अत्याचार, यौन अपराधों की दुनिया और दूसरी ओर है भक्ति की पावन धारा। दोनों चरम पर हैं। किसी समय धर्म और भक्ति को दकियानूसी मानसिकता से जोड़कर देखा जाता था, लेकिन आज यह सोच बदली है, तमाम मानसिक तनावों से घिरा व्यक्ति भक्ति, योग में आत्मतुष्टि का अनुभव करता है। संत-महात्माओं के प्रवचन सुनने उसे अब किसी आश्रम या पंडाल में नहीं जाना पड़ता। सभी पूज्य संतों की वाणी वह अपने घर में टेलीविजन पर सुन सकता है, संतों के दर्शन कर सकता है। इन भक्ति चैनलों का विचार जन-जन में इतना ग्राह्र हुआ कि आस्था, संस्कार, महर्षि, ओम् शांति, साधना, जागरण, मां टीवी और कुरान टीवी जैसे चैनल अपनी पूरी शान-बान से चल रहे हैं। गाड टीवी, मिरेकल नेट, डिवाइन टीवी, थ्री एंजेल्स नेटवर्क जैसे अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक चैनल भी भारत के दर्शक देख रहे हैं। सिर्फ भारत में ही नहीं अमरीका, कनाडा, जापान, चीन और यूरोपीय देशों में भी आध्यात्मिक चैनलों की मांग बढ़ी है। स्टार टीवी और टाइम्स पत्र समूह द्वारा भी आध्यात्मिक चैनल शुरू किए जा रहे हैं। सुदर्शन चैनल भी जल्दी ही शुरू होने वाला है।आखिर क्यों लोग पुन: धर्म, आध्यात्म और भक्ति की ओर लौट रहे हैं? श्री अनिल आनंद कहते हैं, “दैनिक जीवन के तनाव, हमारी जीवन शैली, हृदयाघात से मरने वाले लोगों की बढ़ती संख्या, 30-35 साल की आयु में हृदय रोगों का शिकार होना- ये सब लक्षण व्यक्ति को धर्म, योग और आध्यात्मिकता की कीमत समझने को विवश कर रहे हैं। “सच है लोगों ने खूब दौड़-भाग करके देख लिया, खूब दाम कमाया, खूब नाम कमाया, लेकिन जीवन में उथल-पुथल ही मिली, और जब तंग आकर भारतीय धर्म, संस्कृति की ओर देखा तो लगा यही सही रास्ता है।श्री माधवकांत मिश्रा कहते हैं, “जीवन से जब शुक्ल पक्ष तिरोहित होने लगता है, तब जीवन मूल्यों, आध्यात्मिकता के प्रति आस्था जागती है। अब यह समझ आ गया है।”इन आध्यात्मिक चैनलों के जरिए दर्शक विभिन्न धर्म स्थलों, प्रवचन स्थलों से सीधा प्रसारण देख सकते हैं। साधना पर बिड़ला मंदिर से आरती तथा गुरुद्वारा बंगला साहिब से सुबह चार बजे रोज गुरबानी का प्रसारण होता है। संस्कार चैनल ने कैलास-मानसरोवर से सीधा प्रसारण किया था तो आस्था चैनल ने मारीशस और लंदन से मुरारी बापू की कथा का सीधा प्रसारण किया।इन आध्यात्मिक चैनलों ने न केवल पूज्य संतों की कथाएं या प्रवचन दर्शकों के सामने प्रस्तुत किये अपितु देशभर के तीर्थस्थलों के दर्शन कराए। आस्था चैनल गंगा सागर के गंगोत्री तक, 52 शक्तिपीठों और द्वादश ज्योतिर्लिंगों को दिखाने जा रहा है। करोड़ों लोगों को आध्यात्मिक आंदोलन से जोड़ने का कार्य इन भक्ति चैनलों ने किया है। जब करोड़ों लोग किसी से जुड़ जाते हैं तो स्वाभाविक ही है व्यवसायिक क्षेत्र का ध्यान भी इस ओर जाए। और जब व्यवसाय जुड़ जाता है तो बाजार गर्म हो जाता है।प्रख्यात शास्त्रीय गायक पं. सुरिन्दर सिंह (सिंह बन्धु), जिन्होंने लगातार सात साल तक दूरदर्शन पर “गाओ सांची बानी” कार्यक्रम प्रस्तुत किया, का कहना है “इतने भक्ति चैनल चल रहे हैं, लाखों की संख्या में भजनों के कैसेट, सीडी और रिकार्ड बिक रहे हैं, यह सब बाजार की मांग के कारण ही तो संभव हुआ है। आज तो यह करोड़ों का व्यवसाय बन गया है। यह दर्शाता है कि लोगों की रुचि बदली है। सच तो यह है कि हताशा के वातावरण में लोग भगवान की तरफ मुड़ते हैं। हम भारतीयों के पास तनावों से मुक्ति का बड़ा साधन है धर्म। एक वक्त ऐसा भी आया था जब धर्म को लांछन की तरह देखा जाने लगा था, लेकिन अब धर्म बड़ी संख्या में लोगों को ग्राह्र हो गया है।”लगता है कि इन भक्ति चैनलों के दर्शक 55 वर्ष की आयु से ऊपर के लोग होंगे, लेकिन ऐसा नहीं है। इन चैनलों के दर्शकों और भजन, शब्द, मंत्रों के कैसेट सुनने वालों में बड़ी संख्या युवा वर्ग भी है। ये युवा प्रवचन-कथाएं सुनने में भले ही इतनी रुचि न लें, लेकिन योग, ध्यान, प्राणायाम के कार्यक्रम इनमें खूब लोकप्रिय हैं। अध्यात्म पर आधारित धारावाहिक, फिल्मों, भजनों के अलावा साधना चैनल पर राष्ट्रभक्ति और समाज-सेवा से जुड़ी संस्थाओं के कार्यक्रम भी प्रस्तुत किए जाते हैं। सभी आध्यात्मिक चैनलों में दर्शक पूज्य संतों जैसे संत आसाराम बापू, सुधांशु जी महाराज, मुरारी बापू, गुरु मां, स्वामी अवधेशानंद, रमेश भाई ओझा, आचार्य मृदुल कृष्ण शास्त्री के प्रवचन भाव-विभोर होकर सुनते हैं। इतनी व्यवस्था, इतना बड़ा तकनीकी साधन तंत्र, कार्यक्रम तैयार करवाना, 24 घंटे का चैनल चलाना अच्छा-खासा खर्चे का काम है। यह खर्चा जहां विज्ञापनों से आता है, वहीं सूत्रों से पता चला है कि इन चैनलों पर संतों आदि के भक्तों द्वारा समय किराये पर लिया जाता है। और इसके लिए उन्हें अच्छा-खासा भुगतान करना पड़ता है। हालांकि प्रत्यक्ष रूप से कुछ चैनल प्रमुख इससे पूरी तरह इनकार करते हैं, लेकिन कुछ इसे “पूज्य संतों का आशीर्वाद” कहते हैं। सूत्रों से यह भी पता चला कि भक्ति चैनल खोलना एक खासा लाभ देने वाला व्यवसाय है। यह बात अलग है कि इस व्यवसाय के साथ लोगों को मानसिक सुख-शांति देने वाली भक्ति और धर्म जुड़ा है।26
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