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तेजी से घट रहा है भू-जलस्तरपंजाब के आब की चिंता-सुरेन्द्र बांसलयूं बढ़ सकता है भू-जलस्तरकेवल पंजाब ही नहीं, पूरे देश में जल संकट गहराता जा रहा है। इसे रोकने का सर्वोत्तम साधन है बरसाती पानी का संरक्षण। उदयपुर (राजस्थान) के डा. प्रकाशचंद्र जैन ने बरसाती पानी के संरक्षण के लिए एक नई तकनीक विकसित की है। डा. जैन के अनुसार किसी मकान की एक हजार वर्ग फुट छत से एक सेन्टीमीटर वर्षा होने की स्थिति में एक हजार लीटर पानी इस तकनीक के माध्यम से नलकूप के सहारे जमीन के अन्दर पहुंचाया जा सकता है। इससे भूजल स्तर को बढ़ाने में सहायता मिलेगी, साथ ही शुद्ध पेयजल मिलेगा। इस तकनीक के अन्तर्गत घर की छत का बरसाती पानी “प्लास्टिक पाइप” के सहारे एक जगह इकट्ठा किया जाता है और फिर उसे निथारने के बाद एक अन्य पाइप से नलकूप में डाला जाता है। इस तकनीक में अधिक लागत नहीं आती है।सम्पर्क पता- डा. प्रकाशचंद्र जैन,3, अरविन्द नगर, सुन्दरवास, उदयपुर (राजस्थान)पांच नदियों के नाम पर बसे पंजाब का पानी, पंजाब की मिट्टी, पंजाब का पशुधन, पंजाब का स्वास्थ्य और पंजाब के पक्षियों का आज दिन दूनी-रात चौगुनी गति से गायब होना चिन्ता की बात है। बुजुर्गो द्वारा संजोई अनुपम परम्पराओं वाले पंजाब को “पेरिस” बनाने पर तुले विकास के अलम्बरदार नेताओं ने कुछ इस तरह घूरकर देखा है, मानो किसी “कान्वेंट स्कूल” का बच्चा किसी आम आदमी को कचरे के ढेर की तरह देखता है। हांफती रस्मों और रिस्ती तहजीब के इस दौर में आज पंजाब में पानी का दम घुट रहा है। पंजाब देश का अकेला ऐसा राज्य है, जिसका नाम “पानी” पर है। पांच पवित्र नदियां और उनमें से निकलने वाली 48 उप नदियां, फिर लगभग 1,7500 तालाबों का प्रदेश कितना भव्य रहा होगा। लेकिन आज यहां की समस्त पावन नदियां बरसाती नदियां ही बन कर रह गई हैं। सतलज की तीन प्रमुख सहायक नदियां जयंती, बुदकी, सिस्वां तो लगभग लुप्त ही हो चुकी हैं।पहले नल, फिर नलकूप और अब “सबमर्सिबल” पंजाब में संभ्रात व्यक्ति का पर्याय बन चुके हैं। मजेदार बात यह है कि लड़की के रिश्ते के लिए लड़का देखने गए “विकसित संभ्रात” लोग पहले लड़के वालों के यहां “सबमर्सिबल” ढूंढते हैं, न दिखने पर पूछते भी हैं। विकास की मात्र इसी परिभाषा के चलते पंजाब में भू-जलस्तर प्रतिवर्ष औसतन 20 सेंटीमीटर नीचे जा रहा है। उसके बाद हरियाणा, राजस्थान और तामिलनाडु आते हैं। पंजाब की स्थिति चिंताजनक इसलिए मानी जानी चाहिए क्योंकि प्रदेश में 138 प्रखण्ड जलसंभर हैं। उनमें से 84 “डार्क जोन”, 16 “ग्रे जोन” तथा 38 “सफेद जोन” हैं। ये 38 सफेद “जोन” भी सरकारी अधिकारियों ने अपनी तसल्ली और थोड़ी जवाबदेही के लिए रख छोड़े हैं। कहीं सल्फेट भरा है। इन सभी क्षेत्रों में मानसून से पूर्व भू-जलस्तर 4 मीटर तक नीचे चला जाता है। इनमें से प्रमुख रूप से सुनाम, संगरूर, बरनाला, धूरी, अहमदगढ़, पखोवाल, जगरांव, लुधियाना, फरीदकोट, फतेहगढ़ साहिब, पटियाला, भटिंडा, पट्टी, वेरका, तरनतारन, खंडूर साहिब, जंडियाला, नूरमहल, जालन्धर (पूर्व), बंगा, भोगपुर, आदमपुर, नकोदर, शाहकोट, फिल्लौर, गोरायां, समराला, नाभा, समाना, राजपुरा, जीरकपुर, मोहाली, सरहिंद, मोगा, रामपुराफूल आदि प्रखण्ड अतिदोहित (डार्क जोन) क्षेत्रों में आते हैं। दोआबा क्षेत्र, जो देश के सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्रों में आता है, के गिरते जलस्तर को देखकर वैज्ञानिक आने वाले 15 वर्षों में पंजाब के रेगिस्तान बन जाने का संकेत देने लगे हैं। इन चिंताजनक आंकड़ों के बावजूद पंजाब की खेती को पूरे देश में उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। हरित क्रांति के अस्थाई लाभ के मजे तो यहां के धरती पुत्रों ने धरती की सारी ताकत निचोड़कर लूटे, जिसका परिणाम यह हुआ कि “नशा” पंजाबी संस्कृति का स्थाई तत्व बन चुका है।”हरित क्रांति” के बाद पंजाब का किसान गरीबी रेखा से 20 प्रतिशत नीचे गया है। धरती की उर्वरा शक्ति में कमी के कारण खरपतवार और कीट व्याधियों में वृद्धि हुई है। आत्महत्याओं में पंजाब का किसान प्रथम स्थान पर है। नई पीढ़ी के नवयुवक खेती के काम से जुड़ना नहीं चाहते, वे किसी और चमचमाते रोजगार की तलाश में लगे हैं। प्रवासी मजदूरों पर टिकी इस हरित क्रांति में और वृद्धि के लिए कृषि विशेषज्ञ कुछ ऊल-जलूल सुझाव दे रहे हैं, जैसे फूलों की खेती, मशरूम की खेती आदि। जबकि कुछ ऐसे ही प्रयोगों के कारण पंजाब के 75 प्रतिशत किसानों की आर्थिक स्थिति बदतर हुई है। लगभग 47 प्रतिशत किसानों की कृषि व दूध उत्पादों से होने वाली आमदनी प्रदेश के अकुशल श्रमिक की न्यूनतम आमदनी के मुकाबले कम है। कुछ क्षेत्रों में 1984 के बाद जलस्तर चार से पांच मीटर तक घट गया है, जिसके चलते खारेपन तथा पानी के ठहराव की समस्याएं बढ़ गयी हैं। अपने देश की समस्त जीवन पद्धति प्रकृतिजन्य ही रही है, यानी पर्यावरण से ही हमारा परिपूर्ण सामाजिक, आर्थिक एवं आध्यात्मिक जीवन ओतप्रोत रहा है। पंजाब में प्रदूषण की रोकथाम हेतु कार-स्कूटर पर मात्र 20 रुपए का स्टीकर चिपकाकर सभी पर्यावरणीय फर्ज निभा दिए जाते हैं, लेकिन धान की फसल की कटाई के बाद की भुसी जलाकर लगभग पूरे पंजाब को एक-डेढ़ महीना हांफने दिया जाता है। जबकि यही भुसी देश के उन भागों में भेजी जा सकती है, जहां पशुओं के लिए चारा काफी कम मात्रा में होता है।विकास की इस बर्बर अराजकता के दौर में पढ़ा-लिखा, धनाढ वर्ग लगभग जीवन की समस्त बुनियादी जरूरतों से कट गया है। उसकी नजर में पुराने तालाब, छप्पर, बावड़ियां या दूसरे प्राकृतिक स्रोतों की बात करना पिछड़ापन है। पंजाब के विभिन्न कस्बों में पुराने तालाब या तो कूड़ेदान बन गए हैं या “इंप्रूवमेंट ट्रस्ट” नामक विचित्र किस्म की संस्था ने उन्हें भरकर भूखण्डों की शक्ल दे दी है। एक उदाहरण मालेरकोटला का है। यहां शहर के मध्य सरहिन्दी गेट के पास एक पुराना सुन्दर तालाब था। चारों ओर बेहद सुन्दर छतरियां थीं, लेकिन उसी विचित्र संस्था ने उसे लगभग 20 लाख रुपए में भर दिया। छतरियां भी लगभग 1,80,000 रुपए में बेच दी गईं। अब मात्र एक छतरी वैराग्य धारण किए खड़ी है। आने वाला कल कैसा होगा, यह सोचकर सिहरन होती है।16
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