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पाकिस्तानहथियारों पर लुटा रहा है विदेशी सहायता-सेसिल विक्टरपरवेज मुशर्रफअगर पाकिस्तान अपने रक्षा खर्च में भारी कमी नहीं करता तो भारत के साथ शान्ति प्रक्रिया के फायदों से वह अपने हाथ धो बैठेगा। रक्षा व्यय में वह अंधाधुंध रुपए झोंक रहा है।अन्तरराष्ट्रीय मुद्राकोष द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों से संकेत मिलते हैं कि वर्ष 2003 के पहले छह महीनों में पाकिस्तान का रक्षा खर्च 87.319 अरब रुपए था, जबकि विकास खर्च मात्र 56.8 अरब रुपए था।विश्व बैंक द्वारा की गई पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की समीक्षा से पता चलता है कि वह स्वास्थ्य और शिक्षा की जरूरतों को पूरा करने के बजाय सैन्य प्रतिष्ठानों की मांगें पूरी करने पर अधिक ध्यान दे रहा है। 1980 में हुए रक्षा खर्च की तुलना में पाकिस्तान के रक्षा खर्च में 250 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इन अध्ययनों के अनुसार स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च में गिरावट को उलटना पड़ेगा।विदेशी ऋण चुकाने के लिए मिलने वाली अधिकांश सहायता राशि वह हथियारों के आयात पर लुटा देता है। एक सरकारी दस्तावेज के अनुसार अगले पांच वर्षों में पाकिस्तान का इरादा 4.5 अरब डालर का विदेशी ऋण चुकाना है। पाकिस्तान का कुल घरेलू और विदेशी ऋण बढ़कर 2002-2003 में 3600 अरब रुपए, 2003-2004 में 4000 अरब रुपए और 2008 में इसके 4400 अरब रुपए पहुंच जाने की संभावना है। विश्लेषकों का कहना है कि अगर अन्तरराष्ट्रीय ऋणदाताओं से प्राप्त 58 अरब रुपए की आर्थिक सहायता को निवेश किया गया होता तो उस पर 6 प्रतिशत की सामान्य आय होती और 1998 तक यह राशि बढ़कर 239 अरब हो गई होती और पाकिस्तान का सकल घरेलू उत्पादन मौजूदा स्तर से काफी अधिक हो गया होता। घाटा रोकने की कोशिशों में विकास परियाजनाओं को नुकसान उठाना पड़ा और इन पर खर्च 1991-2001 के मुकाबले 40 प्रतिशत कम हो गया है। पाकिस्तान का रक्षा व्यय कुल बजट प्रावधान के लगभग 55 प्रतिशत पर आ गया है, जबकि विकास और वृद्धि के लिए यह अनुपात लगभग 36 प्रतिशत है। इसके बावजूद पाकिस्तान सरकार अपनी विकास दर में तेजी लाने की उम्मीद में अपनी विशाल ढांचागत परियोजनाओं में निवेश के लिए विदेशी दाताओं को टटोल रही है।पाकिस्तान ने प्राप्त विदेशी सहायता का एक अच्छा-खासा बड़ा हिस्सा सैन्य साजो-सामान की पूर्ति करने में लगाया है और वह भी खासकर तब जब किसी न किसी वजह से उस पर अन्तरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगे थे। ये प्रतिबंध 1998 में बलूचिस्तान में चगाई पहाड़ियों में परमाणु परीक्षणों की वजह से पाकिस्तान पर लगे थे।11 सितम्बर के बाद से पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने और तालिबान तथा अल कायदा के आतंकवादियों को पकड़वाने के लिए अमरीका पाकिस्तान को भारी मदद दे रहा है। लेकिन किसी तरह का नियंत्रण न होने की वजह से गरीबी हटाने के लिए दी जा रही अमरीकी मदद भी सैनिक ताकत बढ़ाने के लिए इस्तेमाल की जा रही है। ऋणदाता देशों ने पाकिस्तान को सलाह दी है कि आतंकवाद को बढ़ावा देकर अपने इलाके बढ़ाने की बात अब पुरानी हो चुकी है और इस्लामाबाद को अपने पड़ोसी भारत के साथ शान्तिपूर्वक रहना होगा। राजनीतिक और आर्थिक दिवालियेपन के कगार पर खड़ी परवेज मुशर्रफ की सरकार ने मजबूर होकर विश्वास बहाल करने के उपाय किए। नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम से लगता है घुसपैठ रुकी है लेकिन कहीं यह मौसमी तो नहीं है? इसका पता मई में बर्फ पिघलने और रास्ते खुलने पर ही लग पाएगा। (अडनी)25
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