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वीर हकीकत
पंजाब में उस जमाने में मदरसों और मुल्ले-मौलवियों का बड़ा जोर था। हिन्दू बालक भी उन मदरसों में पढ़ने को विवश थे। 7 वर्ष का एक बालक स्यालकोट के मदरसे में उसके पिता भागमल द्वारा भर्ती कराया गया था। माता थीं कौरा देवी। वह बालक सन् 1179 में स्यालकोट में जन्मा था। 12 वर्ष की ही उम्र में उसका विवाह एक बच्ची लक्ष्मी देवी से कर दिया गया। पर अभी विवाह के 2 वर्ष भी नहीं बीते थे। एक दिन जब मौलवी मदरसे से बाहर गया था तो मदरसे में मुसलमान लड़के शोर मचाने लगे। उस हिन्दू बालक ने उन्हें शोर करने से रोकना चाहा तो संख्या में अधिक मुस्लिम लड़के माता दुर्गा के लिए अपशब्द बोलने लगे। इस पर उस हिन्दू बालक ने उनसे कहा, “तुम हमारी दुर्गा माता को गाली दे रहे हो, अगर मैं फातिमा बीबी (जो मोहम्मद साहब की पुत्री थीं) को कुछ कहूं तो तुम्हें कैसा लगेगा?” जब मौलवी लौटा तो मुस्लिम लड़के ने उससे उस हिन्दू बालक की शिकायत की कि इसने फातिमा बीबी को गाली दी है। जब कि यह सच नहीं था, फिर भी मौलवी ने यह मामला स्यालकोट के हाकिम अमीर बेग की अदालत में पहुंचा दिया, जहां उस हिन्दू बालक को मौत की सजा सुनाई गई। उसके पिता ने लाहौर में अपील की। पर उस बालक को कहा गया कि अगर तुम मुसलमान बनना मंजूर करो तो यह सजा माफ हो सकती है। अदालत के काजी ने उस लड़के को दौलत का भी लालच दिया और पिता ने भी जान बचाने के लिए उसे मुसलमान बनने को कह दिया। पर वह 13 साल का बहादुर बालक अपनी आन पर डटा रहा। उसने कहा, “मैं मरना पसंद करूंगा, पर धर्म नहीं छोड़ सकता।” आखिर वह दिन (23 फरवरी, सन् 1734) भी आ गया, जब एक खुले मैदान में उस लड़के को खड़ा करके उस पर जल्लाद ने तलवार चलाई तो तलवार छिटककर नीचे जमीन पर गिर गई। तब लड़के ने फौरन वह तलवार जमीन से उठाकर जल्लाद को थमा दी और जल्लाद ने उस निर्भीक लड़के को कत्ल कर दिया। वह वीर लड़का था, हकीकतराय, जो इतिहास में अपना नाम अमर कर गया। मानस त्रिपाठी
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