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दीनानाथ मिश्र
बाजार में आग
जोपूछता है एक ही बात पूछता है, मनमोहन सरकार कितने दिन तक चलेगी? मैं क्या बताऊं? ज्योतिषी भी नहीं बता सकते। हालांकि एक ज्योतिषी हैं जिन्होंने सितम्बर की एक तारीख बताई है। उनकी एक भविष्यवाणी सही निकल चुकी है। उन्होंने चुनाव के पहले अपनी भविष्यवाणी करने वाली पत्रिका में लिखा था कि न अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बनेंगे, न सोनिया गांधी बनेंगी और न लालकृष्ण आडवाणी बनेंगे। कोई चौथा आदमी ही बनेगा। बाकी ज्योतिषियों की भविष्यवाणी धरी की धरी रह गई। जिनकी सच निकली, उनकी भी आधी से ज्यादा भविष्यवाणियां गलत निकलती हैं।
सो मैं इस बात पर यकीन नहीं करता कि सितम्बर में यह सरकार चली जाएगी। इस चक्कर में मैं सुरक्षित उत्तर देता हूं। कहता हूं, जाए तो दो महीने में चली जाए और चल जाए तो पांच साल चले। यह बात तो हर पशु-पक्षी और नर-नारी पर लागू होती है। उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह सरकार और कर्नाटक की धरम सिंह सरकार पर भी लागू होती है। एक बात जरूर है, अभी दो महीने हुए हैं सरकार बने और एक दागी मंत्री गया है। अब गणित के ऐकिक नियम के हिसाब से देखें तो आठ दागी मंत्रियों के जाने में कायदे से 16 महीने लगेंगे। ये दागी मंत्री गए नहीं कि समीकरण बदल सकते हैं। सरकार बदल सकती है और चुनाव भी हो सकते हैं। लेकिन सरकार का जीवन गणित के दायरे के बाहर है। अलबत्ता सरकार का बनना गणित पर निर्भर जरूर करता है। सो कृपया मुझसे यह मत पूछिए कि सरकार कब तक चलेगी?
कई मित्र यह जानना चाहते हैं कि महंगाई कितनी बढ़ेगी? इस सम्बंध में निश्चयात्मक उत्तर दिया जा सकता है। पिछली सरकार के जमाने में विकास की दर बढ़ी थी इस सरकार के जमाने में महंगाई की सराहनीय वृद्धि होगी। इन्हीं दो महीनों में महंगाई डेढ़ प्रतिशत बढ़ गई है। वाजपेयी सरकार के छह वर्षों में महंगाई को लेकर कोई आंदोलन नहीं हुआ। लेकिन मनमोहन सिंह सरकार आई और महंगाई सीना तान कर खड़ी हो गई। संस्कृत में एक उक्ति है-“राजा कालस्य कारणम।” मानसून ने पहले ही हवा निकाल दी है। इन्द्र देवता नाराज बैठे हैं। बरसात ने हड़ताल कर रखी है। अनेक राज्यों में सूखा पड़ चुका है। अब बरसात होगी तो भी फसल नहीं होगी। अब भी बरसात हो जाए तो कुछ राज्यों में थोड़ी बहुत फसल हो जाएगी। अनाज के भाव अभी से बढ़ने लगे हैं।
आज मनमोहन सिंह सरकार के समर्थक “हिन्दुस्तान” दैनिक ने पहले ही पेज पर एक सुर्खी लगाई है-“सूखे सावन से बाजार में आग, सब्जियों के दामों में उछाल”। 26 जून से 6 जुलाई तक टमाटर का भाव 5 रुपए किलो से बढ़कर 16 रुपए तक पहुंच गया है। घिया 6 रुपए से 10 रुपए, मटर 20-25 से 30-40, तोरी 6 रुपए से 10-12, टिण्डा 10-12 से 20-30 रुपए तक। आलू 7-8 रुपए से लेकर 10-15रुपए प्रति किलो तक पहुंच गया है। मतलब यह कि ये सब्जियां गरीबों की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं। मध्यम वर्ग का रसोई-बजट प्रतिमाह पांच-छह सौ रुपया बढ़ गया। वैसे ही लोग हरी सब्जियां अब पाव में खरीदते हैं। इस पर भी पुनर्विचार करना पड़ेगा। पाव की जगह 100 ग्राम स्थिर करना पड़ेगा। घर में सब्जियों को चाय के चम्मच से परोसने की परम्परा डालनी पड़ेगी।
इधर डीजल महंगा हो गया। डीजल जब महंगा होता है तब सोना, चांदी और हवाई जहाज को छोड़कर तमाम चीजें महंगी हो जाती हैं। सो मैं बड़े इत्मीनान से कह सकता हूं कि दिसम्बर आने के पहले महंगाई बढ़ोत्तरी की रफ्तार 8 प्रतिशत से कम नहीं रहेगी। ज्यादा बढ़ने को महंगाई स्वतंत्र है। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अनर्थशास्त्री वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम को छोड़कर कोई नहीं कह सकता कि मुद्रास्फीति को काबू में रखा जा सकेगा। बेकाबू तो ये आज ही हो गए हैं। अगर महंगाई भी ऐकिक नियम के हिसाब से बढ़ी और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन दीर्घायु हुआ तो महंगाई की बढ़ोत्तरी का प्रतिशत दो अंकों में होगा।
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