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कही-अनकही कालिदास

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Aug 2, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Aug 2004 00:00:00

की तरह है बिहार

द दीनानाथ मिश्र

संस्कृत साहित्य में शाकुन्तलम जैसे अनेक कालजयी ग्रंथों के रचयिता कालिदास की एक कहानी है। जितने ऊंचे दर्जे के वह साहित्यकार थे, जवानी में उससे कहीं ऊंचे दर्जे के वह मूर्ख थे। उसी दौर में ऐ·श्वर्या राय जैसी खूबसूरत विदुषी थी विद्योत्तमा। अनेक बुद्धिजीवी उस पर लट्टू थे। लेकिन वह उन्हें घास नहीं डालती थी। बदला लेने के लिए उन विद्वानों ने एक षड्यंत्र रचा और विफल हुए एक महामूर्ख को ढूंढने लगे। एक आदमी उन्हें मिला। वह पेड़ की एक डाली पर बैठा उसी डाली को ही काट रहा था। दो-चार कुल्हाड़ी और चलाता तो डाली तो कट जाती, मगर वह भी उसके साथ पेड़ की ऊंचाई से गिर जाता। विद्वानों ने तय पाया कि इससे बड़ा मूर्ख हमें मिल नहीं सकता। वे कालिदास को विद्योत्तमा के पास शास्त्रार्थ के लिए ले गए। शास्त्रार्थ हुआ भी। समझ के अनुसार विद्योत्तमा के दार्शनिक प्रश्न का उत्तर वह इशारों में देता। उसका दार्शनिक अनुवाद करके पंडित उस सुन्दरी को बता देते। कालिदास का विवाह विद्योत्तमा से हो गया। जल्दी ही वह कालिदास की परम मूर्खता को समझ गई। मगर उसने हिम्मत नहीं हारी। नतीजा यह हुआ कि कालिदास वि·श्वकोटि के साहित्यकार बन गए। आज हम कालिदास की तुलना शेक्सपियर से करते हैं। अगर अंग्रेजों का राज नहीं होता और हम सैनिक पराजयों के शिकार न होते तो अंग्रेजी वाले शेक्सपियर की तुलना कालिदास से करते।

इस कहानी की याद मुझे तब आई जब बिहार के बारे में एक घटना का समाचार पढ़ा। गया जिले के शब्दों गांव में विकास की दिशा में अपूर्व काम करने वाले सरिता और महेश को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया। उन्होंने सिंचाई के मझोले प्रयास से गांव की जिन्दगी बदली थी। पुरस्कार में उन्हें मौत मिली। बिहार की यह इकलौती घटना नहीं है। बिहार तो दशकों से अपनी डाल काटने के लिए कुल्हाड़ी पर कुल्हाड़ी चलाता जा रहा है। अभी हाल में प्रधानमंत्री की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना में कार्यरत आई.आई.टी.से शिक्षित इंजीनियर सत्येन्द्र दुबे को भी ऐसा ही पुरस्कार मिला था। एक भुक्तभोगी जिलाधिकारी मुझे एक कस्बे की कहानी बता रहे थे। दो मुहल्लों के झगड़े में एक मुहल्ले की पानी की टंकी को एक रात घात लगाकर तोड़ डाला गया। समानता स्थापित हो गई। न इस मुहल्ले के पास नल का पानी, न उस मुहल्ले के पास। इस गणतंत्र दिवस के अवसर पर बिहार के राज्यपाल रामा जोइस ने अपने भाषण में राज्य की कानून और व्यवस्था की कड़ी आलोचना की, वह भी परम्परा को तोड़कर जब उच्च न्यायालय ने बार-बार उनसे गुहार लगाई थी कि राज्य में उसके फैसलों का पालन नहीं होता। न्यायालय की अवमानना आम बात हो गई है। अपने फैसलों में उच्च न्यायालय ने बिहार के जंगलराज का उल्लेख बार-बार किया है। ऐसी स्थिति में उन्होंने राज्यपाल से आग्रह किया था कि अब आप ही कुछ करें। सो वह भी क्या करें? गणतंत्र दिवस के अपने भाषण में उन्होंने भी अपना गुबार निकाल दिया।

उधर बिहार के अंधेर नगरी के चौपट राजा उल्टे फोन पर ही उच्च न्यायालय को डांटने-फटकारने लगे हैं। अपहरण, फिरौती बकायदा एक बड़ा उद्योग बन गया है। कोई बताता है कि पिछले दस साल में सत्तर हजार अपहरण हुए हैं, कोई कहता है यह आंकड़ा लाखों में है। मगर कहता रहे, बिहार तो अपनी ही डाल पर कुल्हाड़ी चलाने में लगा है। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी संस्थानों को लकवा मार गया है। जो पढ़ सकते हैं, वे उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक आदि में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। बिहार से पलायन हो रहा है। जो बस सकते हैं वे अपनी जड़ों से कटकर दूसरे राज्यों में बस रहे हैं। उत्तर भारत में ही नहीं, दक्षिणी राज्यों में भी जीवनयापन के लिए रिक्शा, रेहड़ी वगैरह चला रहे हैं। इधर बिहार अपनी ही डाल पर हर तरह से कुल्हाड़ी चलाने में मगन है। पैसे वाले एक-एक कर भाग लिए। बड़े लोगों में बचे हैं माफिया और ठेकेदार। ये दोनों शब्द समानार्थी होते जा रहे हैं। बिहार की विकास योजना के बारे में पूछना फिजूल है। बची केन्द्र की योजनाएं। उन्हें भी माफियाओं की होड़ा-होड़ में पूरा नहीं होने दिया जाता। गया-पटना रेलवे लाइन दोहरीकरण परियोजना एक दशक से लटकी पड़ी है। जैसे ही कोई काम चालू होता है, विरोधी ठेकेदार दस-पांच मजदूरों को मारकर काम ठप कर देता है। लोग एक से एक कीर्तिमान बनाने में लगे हैं। बड़े लोगों के यहां शादी होती है तो कारों की जरूरत होती है। कारें नई हों तो ज्यादा अच्छा। राजधानी में कारों के शोरूम पर जाकर धमकाकर कारों की झपटमारी तक की घटना हुई है। अपनी ही डाल पर कुल्हाड़ी चलाने का सिलसिला कभी डाक्टरों पर चलता है, कभी वकीलों पर। अर्थात् जहां से हो मारो, पैसा लूटो। अब माफियाओं के कुल्हाड़े के निशाने पर पब्लिक स्कूल भी आ गए हैं। बिहार ने एक तो दिशा गलत पकड़ ली है। दूसरे रफ्तार दुगुनी कर दी है। अर्थात् पूरी तैयारी रसातल पहुंचने की हो चुकी है। अब कालिदास की मूर्खता को जरूरत है एक विद्योत्तमा की। बिहार बड़ा कर्मठ और भावुक प्रदेश है। उठेगा तो तूफान लेकर उठेगा। अभी उसने उठने की ठानी नहीं है। जो लोग बिहार के बाहर कमाल कर सकते हैं, वे बिहार में भी कमाल कर सकते है।

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