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20 जनवरी को बुश या कैरी…?अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव के लिए अब सप्ताह भर से भी कम समय बचा है, लेकिन जीत किसकी होगी इस बारे में अभी भी यकीनन कोई कुछ कह नहीं पा रहा है। मैं स्वयं अब तक आठ अलग-अलग चुनाव सर्वेक्षण पढ़ चुका हूं। अमरीकी कानून के अनुसार चुनाव जीतने वाला व्यक्ति तय दिन पर ही राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करता है। 1937 में फ्रैंकलीन रूजवेल्ट के समय से प्रत्येक राष्ट्रपति ने यही किया है। पर कोई भी इस बारे में सहमत होता नहीं दिख रहा है कि 20 जनवरी को बुश शपथ लेंगे या कैरी।बिल्कुल “वैज्ञानिक तरीके” से किए गए चुनाव सर्वेक्षण भी इस बार लोगों का “मूड” भांपने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं। ऐसे में मीडिया, जीतने वाले उम्मीदवार की पहचान के लिए हाथ देखकर भविष्य बताने वालों एवं लक्षण पढ़ने वालों जैसा बिल्कुल पुराना तरीका अपना रहा है।ज्योतिषी या हस्तमुद्रिका के बारे में मैं यहां कुछ नहीं कह रहा हूं। हालांकि मुझे यकीन है कि उन्होंने किसी न किसी रूप में, कहीं न कहीं उनकी मदद जरूर ली होगी। लक्षण पढ़ने से यहां मेरा मतलब इतिहास के आधार पर भविष्यवाणी करने से है।क्या इस बार अधिक लंबाई वाला उम्मीदवार जीतेगा? क्योंकि 1976 का अपवाद छोड़ दें तो लगभग हर चुनाव में यही होता आया है। (1976 में 6 फुट 2 इंच लंबाई वाले गेराल्ड फोर्ड को 5 फुट 9 इंच के जिमी कार्टर ने हराया था और सन् 2000 में 6 फुट 1 इंच के अल गोर, उनसे दो इंच कम लंबाई वाले बुश से हार गए थे।) महिलाओं की स्कर्ट की घटती लंबाई से परंपरावादी रिपब्लिकन्स पर उदारवादी डेमोक्रेट्स की विजयी होने के संकेत मिलते हैं लेकिन इस बार अब तक ऐसे कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिले हैं। इसलिए, अमरीकी बच्चों द्वारा हैलोविन के दिन अपनाए जाने वाले फैशन और वाशिंगटन के रेडिस्किन (एक फुटबाल टीम का नाम) की सफलता- इन दो अचूक उपायों द्वारा भविष्य कथन की कोशिश की जा रही है।शुभकामना पत्र (ग्रीटिंग कार्ड) बनाने वाली कंपनियों की कोशिशों के बावजूद भारत में हैलोविन उत्सव को अब तक कोई महत्व प्राप्त नहीं हुआ है। अमरीकी मान्यता के अनुसार चुड़ैल और अन्य सभी निशाचर 31 अक्तूबर को सूरज के डूबते ही रंगरेलियां मनाते हैं। क्योंकि 1 नवंबर को “आल सेंटस् डे” होता है। 31 अक्तूबर के दिन अमरीकी बच्चे मुखौटे लगाकर घर-घर जाते हैं और उपहार मांगते हैं। चुनावी वर्ष में सबसे लोकप्रिय मुखौटे राष्ट्रपति पद के दो प्रमुख उम्मीदवारों के होते हैं। इन मुखौटों के लिए जिस उम्मीदवार का चेहरा अधिक इस्तेमाल होगा, चुनाव में जीत उसी की होगी। (कम से कम 1980 से लेकर अब तक की उपलब्ध जानकारी यही बताती है)और वाशिंगटन के रेडस्किन्स- यह है अमरीका की राजधानी की स्थानीय फुटबाल टीम। गणना करने वालों ने पाया कि 1936 से लेकर अब तक के चुनावों में हर बार जब घरेलू खेलों के आखिरी दौर में रेडस्किन्स हार जाते हैं तो मौजूदा पार्टी को व्हाइट हाऊस छोड़ना पड़ता है। (1936 से पहले के चुनावों के बारे में इस लक्षण के आधार पर जीत या हार का ब्यौरा इसलिए उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि 1936 से पहले इस नाम की कोई स्थानीय फुटबाल टीम नहीं थी। उस समय टीम का नाम था “बोस्टन ब्रोव्हज” था और उनके वाशिंगटन आने से पूर्व उनमें किसी तरह की भविष्यवाणी करने की शक्ति नहीं थी।) हालांकि रेडस्किन्स का रिकार्ड एकदम अचूक है। 1948 में जब हर चुनाव सर्वेक्षण हैरी टÜमैन के हारने की बात कह रहा था, तब रेडस्किन्स प्रेमियों का मत उनसे मेल नहीं खा रहा था। उस वर्ष रेडस्किन्स ने बोस्टन यैंक्स को हराया था। और कुछ ही दिनों बाद हुए चुनावों में टमैन ने सभी राजनीतिक गणनाओं को झुठला दिया था।दुर्भाग्य से, इस बार अब तक न तो अमरीकी बच्चों ने और न ही वाशिंगटन की फुटबाल टीम ने कोई संकेत दिया है। इस बार चुनावों से ठीक दो दिन पहले हैलोविन पड़ता है। रेडस्किन्स का आखरी घरेलू मुकाबला भी हैलोविन के दिन ही है। इतने कम समय में चुनावी जीत के बारे में भविष्यवाणी के लिए जरूरी जानकारी जोड़ना संभव नहीं है।बहरहाल एक बात तो बहुत साफ है। और वह है इन चुनावों में लोगों की जबरदस्त दिलचस्पी। इससे यह भी पता चलता है कि अमरीकी मतदाताओं में वैचारिक ध्रुवीकरण कितना तीव्र है। और उस दल व्यवस्था के प्रति एक प्रशंसनीय पहलू भी सामने आता है जिसकी अक्सर आलोचना ज्यादा होती है कि उसने एक देश में दो स्पष्ट विचार बड़ी सफाई से लोगों के सामने रखने में सफलता पाई।अमरीका के चुनाव इस वर्ष भारत में हुए चौदहवें लोकसभा चुनावों के बिल्कुल विपरीत हैं। स्वतंत्र भारत में हुए सभी चुनावों को याद कर सकूं तो, ऐसी आज मेरी उम्र है, (हालांकि 1952 की मेरी यादें अब धुंधली हो चली हैं) मैं कह सकता हूं कि अब तक हुए आम चुनावों में 14वां आम चुनाव बहुत फीका रहा। चुनाव आयोग द्वारा लागू किए गए प्रतिबंधों की वजह से ऐसा होने की दुहाई नि:संदेह हर राजनीतिक दल देगा, लेकिन मेरे विचार में इस बार के चुनावों का फीकापन राजनीतिक दलों द्वारा राष्ट्रीय मुद्दों की अनदेखी करना ही रहा है।इसके विरोध में अगर आप कुछ कहना चाहें तो पहले अच्छी तरह सोच लें। जिन “सांप्रदायिक” और “धर्मनिरपेक्ष” मुद्दों की बात इस बार चुनाव में हुई उन्हें देखते हुए क्या आपको नहीं लगा कि ये बड़े पैमाने पर हुए महानगर पालिका चुनाव जैसे ही हैं? “बिजली-सड़क-पानी” के मुद्दों पर तो महापौर या विधायक को चुना जा सकता है, लेकिन संघीय स्तर पर इन मुद्दों को आधार नहीं बनाना चाहिए। विदेशों के साथ रिश्ते, आर्थिक नीतियां या कम से कम धर्म के मुद्दों की कमी मुझे इस बार खली। ऐसा लगा जैसे चुनाव निगम की नालियों में लड़ा गया। इसीलिए संगठन और कार्यकर्ताओं पर आधारित दलों के लिए भी मतदाताओं में उत्साह का संचार करवाना असंभव रहा। अमरीकी राजनीति परिपूर्णता से कोसों दूर है। लेकिन रिपब्लिकन्स और डेमोक्रेट्स के बारे में इतना जरूर कहा जा सकता है कि उन्होंने चुनाव के लिए मतदाताओं के सामने अकाट और विभिन्न मत रखे हैं। इसे चाहे तो हम कोल्हू के बैल की तरह चलने वाली अफसरशाही पर आदर्शवादिता की विजय कह सकते हैं। और कुछ भले न हो, लेकिन हैलेविन के मुखौटों और फुटबाल टीम में इस तरह की दिलचस्पी मरियल आवाज में एक-दूसरे से “सब चोर हैं” कहने से तो बेहतर ही है!(28.10.04)31
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