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वचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”राम-भक्त लतीफशाहबादशाह भी रटने लगा रामनामजोमुसलमान अपने घर में भक्तों की भीड़ के सामने श्रीमद्भागवत पढ़े और श्रीराम तथा श्रीकृष्ण पर स्वयं के रचे भजन गाए, वह कट्टरपंथी मुल्लाओं की नजर में “काफिर” तो करार दिया ही जाएगा। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के मंगलबेढ़े ग्राम के रामभक्त कवि लतीफशाह के साथ भी यही घटित हुआ। जब मुल्लाओं ने उनके कथित “कुफ्र” की शिकायत बादशाह से की तो क्रुद्ध होकर उसनेउन्हें हाजिर होने का फतवा जारी कर दिया। पर लतीफशाह उस समय भी भारी भीड़ के बीच बड़ी तन्मयता से “श्रीमदभागवत्” वाचन में मग्न थे। वे नहीं गए तो बादशाह गुस्से में उन्हें सजा देने स्वयं ही उनके यहां चलकर आया। पर लतीफशाह के चमत्कार के कारण सजा देने के बजाय स्वयं बादशाह ही लतीफशाह का भक्त बन गया। लतीफशाह के रचे तीन पद धूलिया के समर्थ वाग्देवता मन्दिर में मौजूद हैं। मोरोपंत और संत तुकाराम ने भी लतीफशाह की प्रशंसा की है। ये 16वीं शताब्दी में हुए थे। उनका एक पद है-राम नाम नौबत बजाई।पहली नौबत नारद तुंवर की,दूसरी नाम कबीर सुनाई।तीसरी नौबत सुदामा की,प्रह्लाद की, जिनने राखी बड़ाई।चौथी नौबत जन जसवंत की,धन्नाजाट और मीराबाई।।कहत “लतीफ” सुन मेरे भाई…..लतीफशाह संत एकनाथ के कृपापात्र रहे थे। अपने भजन-भाव के कक्ष में श्रीकृष्ण और राधा जी के सुंदर चित्र लगाते थे। इस भक्त कवि के बारे में अल्प जानकारी है। ये राम-भक्तों में भी बड़ी आस्था रखते थे, तभी लिखा कि,”रामनाम तिनकु, हमारी “राम-राम” तिनकु।जो सर प्राणी हरि के उपासक,आप तरे-तारे औरन कू।कहे “लतीफ” मैं पूजूं उन कू,जो सुमरत मुरलीधर कू।।”लतीफशाह यहां डंके की चोट पर कहते हैं कि “जो लोग वंशी वाले श्रीकृष्ण को याद करते हैं- मैं उनकी पूजा करता हूं।” कितनी बड़ी बात है कि उन्होंने अपने समाज द्वारा अपमान-तिरस्कार सहते हुए भी श्रीराम और श्रीकृष्ण-भक्ति से मुंह नहीं मोड़ा, वरन् प्रतिदिन उनके यहां “भागवत-कथा” और हरि भक्तों का सत्संग होता रहता था। इनकी समाधि मंगलबेढ़े के वार्ड नं. 3-भुईगल्ली में आज भी मौजूद है। वे मानव जन्म सार्थक कर दूसरों को भी एक अमर संदेश दे गए।17
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