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चाकू से हाथ में खींची विद्या रेखाअभी वह बालक ही था। संस्कृत पाठशाला में पढ़ रहा था, पर उसे पाठ और संस्कृत शब्दों के रूप याद नहीं हो पाते थे, जिसके कारण उसे आये दिन आचार्य से दण्डित होना पड़ता था। एक दिन जब उसे आचार्य दण्डित कर रहे थे तो सहसा उसके दाएं हाथ की हथेली पर उनकी दृष्टि पड़ी। बोले, “अरे! तुझे दंडित करना व्यर्थ ही है। तू कैसे पढ़ेगा, तेरे हाथ में तो विद्या प्राप्त करने की रेखा ही विधाता ने नहीं बनाई है।” उस बालक के ह्मदय में आचार्य की यह बात गहरे तक बैठ गई। उसने पूछा, “कृपया मुझे बताएं कि हाथ में किस स्थान पर विधाता विद्या की रेखा बनाते हैं?” आचार्य ने उसकी हथेली पर एक जगह उंगली से संकेत करके बता दिया। इसके बाद आचार्य छात्रों को पढ़ाने में व्यस्त हो गए, पर वह छात्र व्याकुल मन से वहां से बाहर चला गया। कुछ देर बाद जब वह पुन: कक्षा में लौटा तो आचार्य ने देखा कि उसके एक हाथ से बहुत खून बह रहा है। उन्होंने चकित होकर पूछा – “अरे! इतना रक्त क्यों बह रहा है?” उस बालक ने खून से रंगी घायल हथेली उनके सामने रखते हुए कहा, “गुरुजी! मैंने अपनी हथेली में वह रेखा स्वयं चाकू से बना ली है, जिसे विधाता ने किसी कारण नहीं बनाया था। अब आप मुझे बिना संदेह पढ़ाएं और देखें कि आप जो पढ़ाएंगे, वह मुझे ठीक-ठीक याद होता है या नहीं? अब मैं किसी से पीछे नहीं रहूंगा।” आचार्य उस बालक की दृढ़ इच्छाशक्ति देखकर प्रसन्न तो हुए पर उसकी खून सनी हथेली देखकर उनकी आंखों से आंसू छलछला आए। बाद में वह बालक पढ़ने में कभी किसी से पीछे नहीं रहा। यहां तक कि बड़े होने पर उसी ने संस्कृत का पहला व्याकरण-ग्रंथ लिखा, जो संसारभर में प्रसिद्ध हुआ और उसके लेखन को प्रथम व्याकरणाचार्य पाणिनी के नाम से जाना गया। आज जो पठानिस्तान (पख्तूनिस्तान) प्रदेश कहलाता है-आचार्य पाणिनी उसी प्रदेश के शलातुर ग्राम में जन्मे थे। मानस त्रिपाठी23
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