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सम्पादकीयजहां धर्म नहीं वहां विद्या, लक्ष्मी, स्वास्थ्य आदि का भी अभाव होता है। धर्मरहित स्थिति बिल्कुल शुष्क होती है, शून्य होती है। हम धर्म की शिक्षा खो बैठे हैं। हमारी पढ़ाई में धर्म को जगह नहीं दी गई। यह तो बिना दूल्हे की बारात जैसी बात है।-महात्मा गांधी (भागलपुर में भाषण, 17 अक्तूबर, 1917)अंतर बस इतनाकान्वेंट और अन्य निजी विद्यालयों से ही देश को प्रतिभाएं मिलती हैं, इस मान्यता को झुठला दिया है इस वर्ष के दसवीं और बारहवीं कक्षा के परीक्षा परिणामों ने। इन परिणामों ने शिक्षा की दुकानदारी कर रहे निजी विद्यालयों की छवि को धुंधला कर दिया है और पिछड़े, निम्न मध्यमवर्ग, झुग्गी-झोंपड़ी वालों के तख्तीछाप कहे जाने वाले सरकारी विद्यालयों की छवि निखरी है। ये परिणाम उन लोगों की आंखें खोल देने के लिए पर्याप्त हैं, जो सरकारी विद्यालयों के नाम पर नाक-भौंह सिकोड़ते हैं और ज्यादा से ज्यादा दान देकर, तमाम सिफारिशें लगवाकर निजी और कान्वेंट विद्यालयों में अपने बच्चे को प्रवेश दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं। ये परिणाम इस दृष्टि से भी राहत की अनुभूति देने वाले हैं कि इनमें शहरी और ग्रामीण, अमीर और गरीब का अंतर मिटता दिखाई दे रहा है। सरकारी विद्यालयों के छात्रों के बेहतर प्रदर्शन ने समाज के उस वर्ग में आशा की लौ जगायी है जो अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में न पढ़ा पाने के कारण हीनभावना और भविष्य की आशंकाओं से ग्रस्त रहते हैं। इससे यह थोथा मिथक टूट गया है कि कम शिक्षण शुल्क देकर सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों का न कोई स्तर होता है और न ही वे अच्छे अंक ला सकते हैं।केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद् की दसवीं की परीक्षाओं में जवाहर नवोदय विद्यालयों के परिणाम सबसे अच्छे रहे। उसके बाद केन्द्रीय विद्यालयों का स्थान रहा और तीसरे क्रमांक पर रहे निजी विद्यालय। ये वही जवाहर नवोदय विद्यालय हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से खोले गए थे। इन विद्यालयों के 91.43 प्रतिशत छात्र सफल हुए जबकि केन्द्रीय विद्यालयों के 90.35 प्रतिशत छात्र उत्तीर्ण हुए। इनके मुकाबले निजी विद्यालय काफी पिछड़ गए । इनके 84.83 प्रतिशत छात्र ही उत्तीर्ण हुए।इसी प्रकार केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा परिषद् के बारहवीं कक्षा के परीक्षा परिणामों पर दृष्टि डालें तो सरकारी विद्यालयों का ही प्रदर्शन बेहतर रहा। इस बार देशभर के केन्द्रीय विद्यालयों के 92.62 प्रतिशत छात्र उत्तीर्ण हुए जो अपने आप में एक कीर्तिमान है। जवाहर नवोदय विद्यालयों का सफलता प्रतिशत 87.68 रहा। इन विद्यालयों में छात्रों का सफलता प्रतिशत एक सुखद संकेत है, क्योंकि इनमें पढ़ने वाले छात्र ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं। यह इस बात का भी संकेत है कि अच्छे अंकों और विशेष योग्यता पर केवल शहरों का अधिकार नहीं है। गांव की माटी में भी प्रतिभाएं छुपी हुई हैं। दसवीं कक्षा में सरकारी विद्यालयों के 78 छात्रों ने 95 प्रतिशत अंक अर्जित कर विशेष योग्यता सूची में स्थान प्राप्त किया है।दिल्ली में निजी विद्यालयों की तड़क-भड़क के मुकाबले यहां के केन्द्रीय विद्यालयों के 93.13 प्रतिशत छात्र दसवीं में सफल हुए जबकि जवाहर नवोदय विद्यालयों के 92.31 प्रतिशत छात्रों ने सफलता प्राप्त की और निजी विद्यालयों के 87.10 प्रतिशत छात्र उत्तीर्ण हुए। भारतीय संस्कृति और हिन्दुत्वनिष्ठ मूल्यों को अंग्रेजीदां लोग भले ही भगवाकरण कहें या पिछड़ेपन की निशानी बतायें लेकिन राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में 95 प्रतिशत अंक लेकर विशेष योग्यता सूची में नाम दर्ज कराने वाले छात्रों में जयपुर के केशव विद्यापीठ, जामडोली के छात्र का नाम है।पूरे देश में ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों का सफलता प्रतिशत सर्वाधिक रहना, माटी की सौंधी महक का संदेशा है। निजी विद्यालयों के मुकाबले सरकारी विद्यालयों का शिक्षा शुल्क 10-20 गुना कम होने के बावजूद उनका अच्छा प्रदर्शन मध्यम वर्ग के लिए शुभ संकेत है। कहा जाता है कि सरकारी विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती, शिक्षक सिर्फ समय बिताने जाते हैं लेकिन इन परिणामों से यह धारणा बदलती दिखती है। और यह भी ध्यान रखना चाहिए कि निजी विद्यालय शिक्षकों को कम वेतन देकर उनका शोषण करते हैं और उनकी क्षमता पर भी ध्यान नहीं देते, क्योंकि कम वेतन पर जो मिल जाए, वही ठीक है। शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तन का संकेत सुखद बयार की तरह है, जो मध्यम वर्ग को हीनभावना से मुक्त कर आगे बढ़ने का हौंसला देगा।4
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