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उत्तराञ्चल के राज्यपाल श्री सुदर्शन अग्रवाल का अभिनंदनसमाज के वंचित वर्ग की मदद हेतुराज्यपाल की अनुकरणीय पहलश्री सुदर्शन अग्रवाल को सम्मान पत्र अर्पित करते हुएअग्रोहा विकास ट्रस्ट के पदाधिकारीगत 4 जून को कोलागढ़ (देहरादून) में उत्तराञ्चल के राज्यपाल श्री सुदर्शन अग्रवाल को अग्रोहा विकास ट्रस्ट (हरियाणा) द्वारा मेजर रामप्रसाद पोद्दार राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया। श्री अग्रवाल ने “हिम ज्योति फाउण्डेशन” की स्थापना करके गरीब व बेसहारा बच्चों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस न्यास के माध्यम से श्री अग्रवाल ने देश-विदेश से सेवानिधि एकत्र कर पर्वतीय अंचल के बच्चों के शैक्षिक विकास हेतु छात्रवृत्तियां एवं अन्य प्रकल्प प्रारम्भ किए, जो देश में एक उदाहरण है। इसी कारण ट्रस्ट ने श्री अग्रवाल को उक्त सम्मान प्रदान किया। सम्मान समारोह में विचार व्यक्त करते हुए श्री सुदर्शन अग्रवाल ने कहा कि श्री अग्रसेन महाराज ने सच्चे अर्थों में समाजवाद की नींव रखी थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता, अग्रवाल महासभा (उत्तराञ्चल) के अध्यक्ष श्री सोहन लाल गुप्ता ने की। इस अवसर पर बड़ी संख्या में विशिष्टजन उपस्थित थे। प्रतिनिधि2लालकृष्ण आडवाणी ने बताया गड़बड़ कहां हुई, और विश्वास जताया- “हम वापस आएंगे”सत्तापक्ष और विपक्ष में समन्वय का जनादेश14वीं लोकसभा के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद निवर्तमान उप प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी पहली औपचारिक पत्रकार वार्ता में जहां प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त कीं, वहीं भाजपा के पुन: सत्ता में लौटने का विश्वास भी जताया। श्री आडवाणी ने चुनाव परिणामों को अनपेक्षित बताते हुए उसके पीछे कई कारण गिनाए। उन्होंने स्वीकारा कि “सुखद अहसास” और “भारत उदय” के सही मर्म को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में सही ढंग से प्रसारित न कर पाने के कारण खण्डित जनादेश मिला। यहां प्रस्तुत हैं श्री आडवाणी द्वारा व्यक्त विचारों के सम्पादित अंश-लालकृष्ण आडवाणीचौदहवीं लोकसभा के गठन के बाद डा. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में नई सरकार ने अपना कार्यभार संभाल लिया है। भारतीय जनता पार्टी के लिए यह समय पीछे मुड़कर आत्मावलोकन करने तथा भविष्य के लिए दृढ़ संकल्प करने का है।हमने लोगों के जनादेश को विनम्रतापूर्वक स्वीकार किया है। हम संसद में रचनात्मक और जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाएंगे। हम नए प्रधानमंत्री का शुभ चाहते हैं और राष्ट्रहित व जनहित में जो भी नीतियां और कार्यक्रम होंगे, उसमें सहयोग का विश्वास दिलाते हैं।केन्द्र में कांग्रेस नेतृत्व की गठबंधन सरकार इस विखण्डित जनादेश को समझने में गलती न करे, क्योंकि यह किसी भी गठबंधन के लिए निर्णायक जनादेश नहीं है। किसी एक पार्टी के लिए भी नहीं और किसी एक व्यक्ति के लिए तो हरगिज नहीं। कांग्रेस ने देशव्यापी गठबंधन बनाकर चुनाव नहीं लड़ा था। लोकसभा में इसकी अपनी सीटें भाजपा से केवल सात अधिक हैं। 2004 के इन चुनावों के विखण्डित जनादेश का साफ-साफ विश्लेषण यह है कि भारत के लोग नई सरकार को अधिकतम आम सहमति के रास्ते पर चलते देखना चाहते हैं। आम सहमति केवल सत्तारूढ़ गठबंधन में ही नहीं बल्कि विपक्ष के साथ भी। नई सरकार को यह समझना चाहिए कि भाजपा और राजग से सहयोग की कामना करना न केवल राजनीतिक मर्यादा की दृष्टि से वांछनीय है बल्कि जनादेश का सम्मान करना भी है। लोग नई सरकार से यह अपेक्षा करते हैं कि वह राजग सरकार के अच्छे कार्यों को स्वीकार करे और उसके द्वारा शुरू किए गए अच्छे कार्यों को जारी भी रखे।इन चुनावों के परिणाम हमारी अपेक्षाओं से पूरी तरह विपरीत हैं। निश्चय ही यह हमारे विरोधियों सहित सभी की अपेक्षाओं के भी विपरीत रहे हैं। आज की परिस्थितियां भारतीय जनता पार्टी से आत्मालोचन और उपचारात्मक कदमों की मांग करती है। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी चुनाव परिणामों की समीक्षा एवं भविष्य की कार्ययोजना का निर्धारण करेगी। फिर भी मेरे व्यक्तिगत विश्लेषण के कुछ बिन्दु इस प्रकार हैं।नतीजों के अनेक कारणइस चुनावी पराजय के लिए कोई एक ही कारण जिम्मेदार नहीं है। कुछ राज्यों में हमें गठबंधन के साथियों के साथ नुकसान उठाना पड़ा। कुछ दूसरे राज्यों में उचित गठबंधन न बना पाने के कारण हमें नुकसान हुआ। आम जनधारणा के विपरीत यह महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने ग्रामीण क्षेत्रों में बेहतर सफलताएं अर्जित की हैं और कांग्रेस ने शहरी क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया है। कुछ राज्यों में संगठनात्मक कमजोरी के कारण झटका लगा है। एक सामान्य कारण यह है कि बहुत से चुनाव क्षेत्रों में निवर्तमान सांसद को फिर से नामित कर देने के कारण स्थानीय लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ी। किस राज्य में क्या गलत हुआ, यह जानने के लिए व्यापक और गहराई से समीक्षा की आवश्यकता है।यह राज्यों के जनादेश का योगफलइन चुनावों में हमने विकास और सुशासन को अपनी मुख्य प्रतिबद्धता बनाया और लोगों से अपील की थी कि हमारी सरकार की उपलब्धियों के आधार पर हमारे वायदों का मूल्यांकन करें। परन्तु अब यह साफ हो गया है कि इन मुद्दों की देशव्यापी भावनात्मक अपील नहीं रही, जो स्थानीय प्रभावों अथवा घटना-प्रसंग को लांघकर मतदाताओं पर निर्णायक प्रभाव डाल सकती। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, जहां हमें काफी नुकसान उठना पड़ा, जातीय पहचान और जातीय समीकरण विकास और सुशासन के वायदों पर भारी पड़े। इसलिए इस लोकसभा का चुनाव परिणाम राष्ट्रीय जनादेश होने की बजाय राज्यों के परिणामों का योगफल है।विरोधियों का नकारात्मक अभियानइसमें कोई शक नहीं है कि विगत छह वर्षों के राजग शासन में भारत ने बहुत से क्षेत्रों में खासी प्रगति की। निश्चय ही भारत की प्रभावी उपलब्धियों ने अन्तरराष्ट्रीय समुदाय में भारत की प्रतिष्ठा और कद को ऊंचाई दी। देश में भी आशावाद और आत्मविश्वास के वातावरण में भारी वृद्धि देखी गई। फिर भी अगर हम पीछे मुड़कर देखें तो ऐसा लगता है कि विकास के फल समाज के सभी वर्गों तक समान रूप नहीं पहुंचे, हालांकि न्यायसंगत विकास के प्रति हमारी अडिग प्रतिबद्धता थी और आगे भी रहेगी। मुझे लगता है कि हम गरीबों और वंचितों को प्रभावी रूप से यह बताने में असफल रहे कि पांच साल का समय बहुत कम होता है, जिसमें यह सब किया जा सके। दूसरी तरफ कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने जहरीला, झूठा और नकारात्मक अभियान चलाया और कहा कि राजग शासन में भारत का कोई भला नहीं हुआ। इस प्रचार के तेवर और तथ्य ऐसे थे मानो गरीबी और बेराजगारी कांग्रेस के राज में नहीं रही बल्कि यह सब राजग सरकार द्वारा उत्पन्न की गई हो।”सुखद अहसास” और “भारत उदय” अप्रभावीमैं स्वीकार करना चाहूंगा कि इस चुनाव अभियान के दो मनमोहक शब्द समूह -सुखद अहसास और भारत उदय ने हमें लाभ नहीं पहुंचाया। हालांकि ये दोनों कथन अपने आप में सार्थक थे, लेकिन हमारे चुनाव अभियान की दृष्टि से अनुपयुक्त रहे।इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि आमतौर पर पिछले एक वर्ष से देशभर में सुखद अहसास था और यह असर था अनेक तत्वों के योग का। इसमें तेजी से बढ़ता हुआ आर्थिक विकास (जिसकी देश और विदेश में व्यापक सराहना हुई), राष्ट्रीय स्तर पर अर्थव्यवस्था का श्रेष्ठ प्रबंधन, अच्छे मानसून के कारण अब तक का सर्वाधिक खाद्यान्न उत्पादन, सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेष उपलब्धियों के कारण भारत की व्यापक सराहना, सीमा पार से आतंकवाद की घटनाओं में हुई कमी, जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व की स्थितियों में बहु-प्रतीक्षित सुधार और पाकिस्तान के साथ शांति और सहयोग के नए अध्याय की उम्मीद सम्मिलित है, इसका श्रेय जाता है श्री अटल बिहारी वाजपेयी के दूरदर्शी नेतृत्व को।फिर भी सुखद अहसास और भारत उदय को अपने चुनाव अभियान की शाब्दिक प्रतिमूर्ति बनाकर हमने अपने राजनीतिक विरोधियों को एक ऐसा मौका दिया जिसमें वे भारत की समसामयिक वास्तविकताओं-गरीबी, असंतुलित विकास, बेरोजगारी, किसानों की समस्याओं आदि के जरिए हमारे दावे को चुनौती देते रहे। मैंने पहले भी कहा कि भाजपा इन समस्याओं के लिए जिम्मेदार नहीं है, इसके बावजूद कांग्रेस और कम्युनिस्टों के नकारात्मक अभियान ने हमारी पार्टी और देश की जनता के एक वर्ग के बीच खाई खड़ी करने में सफलता प्राप्त की। हमारे विरोधियों ने जिस अशोभनीय ढंग से भारत उदय और सुखद अहसास को हास्यास्पद बनाया, उसमें से उनके आधारभूत दृष्टिकोण के बारे में गम्भीर सवाल खड़े होते हैं। क्योंकि वे केवल भाजपा की आलोचना नहीं कर रहे थे, वे तो वास्तव में भारत की उपलब्धियों का उपहास कर रहे थे और उन्हें नकार रहे थे।विचारधारा न छोड़ी है, न कभी छोड़ेंगेइन चुनाव परिणामों से कुछ क्षेत्रों में यह बहस प्रारंभ हो गई है कि क्या भाजपा इसलिए पराजित हुई कि उसने हिन्दुत्व के मुद्दे छोड़ दिए? इसी बहस का दूसरा तर्क है कि पराजय के कारण भाजपा हिन्दुत्व का दामन फिर से थाम लेगी। इस बहस के दोनों पहलुओं की जड़ में भाजपा के बारे में गलत समझ का होना है। इसकी मूल विचारधारा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व है।हिन्दुत्व के प्रतिपादन के बारे में हम दृढ़ हैं और हमें इस बारे में कोई संकोच नहीं है। हम उन लोगों के विरुद्ध अपना वैचारिक संघर्ष जारी रखेंगे जो हिन्दुत्व का अपने संकीर्ण राजनीतिक उद्देश्यों के लिए साम्प्रदायिकता के रूप में चित्रण करते हैं। स्वयं सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दुत्व को भारत की आधारभूत पहचान बताया है। जहां तक भाजपा का सम्बंध है, उसके लिए हिन्दुत्व, भारतीयता और “इण्डियननेस” समानार्थी शब्द हैं। हम सभी भारतीयों के हित की बात करते हैं, चाहे उनकी जाति या पंथ कोई भी हो।मैं भाजपा के सभी कार्यकर्ताओं और समर्थकों से यह आग्रह करना चाहता हूं कि इन चुनाव परिणामों से हताशा का अनुभव न करें। हमें इस बात का वस्तुपरक विश्लेषण करना चाहिए कि मतदाताओं ने ऐसा क्यों किया। आत्मालोचन बहुत जरूरी है लेकिन आत्म-उत्पीड़न नहीं होना चाहिए। न ही हमको अपनी पार्टी पर प्रतिपक्षियों के बेबुनियाद और अहंकारी आक्रमणों को निर्विरोध गुजर जाने देना चाहिए। हमें श्री अटल बिहारी वाजपेयी के योग्य नेतृत्व में चली राजग सरकार की उपलब्धियों को बड़ी मजबूती से सामने रखना चाहिए। हमारी सरकार ने पिछले छह वर्षों में अच्छी-खासी उपलब्धियां अर्जित की हैं। उसमें से कुछ तो इतिहास में श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम के साथ दर्ज होंगी, जैसे-भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनाने का साहसिक निर्णय लेना, जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्व के हालात को पलट देना और विकास के अनगिनत उपक्रम प्रारम्भ करना। पंडित नेहरू के बाद श्री वाजपेयी की देश के सर्वोत्तम प्रधानमंत्री के रूप में विश्वभर में सराहना हुई है।इसमें कोई सन्देह नहीं कि भाजपा का भविष्य उज्ज्वल है। जो झटका हमें लगा है, वह अस्थायी है। पार्टी के चुनावी इतिहास में भाजपा ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। सबसे भयानक झटका 1984 में लगा था, जब पार्टी ने देशभर में लोकसभा के केवल दो स्थान जीते थे। इस बार की पराजय का भाजपा की कमियों से कोई लेना-देना नहीं है, न ही यह हमारे विरोधियों की किसी श्रेष्ठता का संकेत है। यह परिणाम तो कुछ खास परिस्थितियों में से निकला है। हमने 1984 के चुनाव को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और उसे एक अवसर बना डाला। हमने उस अवसर को भारतीय चुनाव और भारतीय राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ के रूप में परिवर्तित किया। उसके बाद गुजरे दो दशकों में भाजपा का विकास चमत्कारिक रहा है। भारतीय राजनीति द्विध्रुवीय हो गई है। इसमें केवल भाजपा और कांग्रेस, दो मुख्य ध्रुवों के रूप में खड़े हैं।आशा और आत्मविश्वासहमारी आशा और आत्मविश्वास भारतीय समाज से निरन्तर मिलने वाले अपार सद्भाव और समर्थन पर टिका हुआ है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़, इन तीन राज्यों में लोकसभा चुनाव में भी हमने दिसम्बर, 2003 में हुए विधानसभा चुनाव के विजयी प्रदर्शन को दोहराया है। दो कांग्रेसशासित राज्यों -कर्नाटक और पंजाब- में हमने अपनी स्थिति उल्लेखनीय ढंग से सुधारी है। उड़ीसा में अपने साथी दल बीजू जनता दल के साथ विधानसभा में भी पुन: जनादेश प्राप्त किया है।हमारे पास देशभर में समर्पित कार्यकर्ताओं का एक विशाल तंत्र है, जिनके लिए राजनीति में काम करने की प्रेरणा सत्ता, और मात्र सत्ता कभी नहीं रही। उनका परिश्रम किसी खानदानी सत्ताकांक्षा की सेवा करने की दिशा में भी कभी नहीं रहा। उन्होंने अपना जीवन भारत मां के प्रति समर्पित कर दिया है। वे किसी पराजय से विचलित नहीं होते और किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए सदा तत्पर रहते हैं। यह उदात्त प्रेरणा, हजारों कार्यकर्ताओं की संगठित इच्छाशक्ति तथा करोड़ों लोगों का समर्थन भी यह सुनिश्चित करता है कि हम वापस आएंगे।इसमें कोई शंका नहीं कि हम सबको हर स्तर पर बहुत कठिन परिश्रम करना है। हमें दृढ़ कदम उठाने होंगे ताकि पिछले दो दशकों के पार्टी के तीव्र विकास के दौरान जो कुछ कमियां पैदा हो गई हैं, उनका उपचार किया जा सके। हम भाजपा को “एक अलग तरह की पार्टी” के रूप में विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। देश के लोगों को हमारी पार्टी से बहुत-सी अपेक्षाएं हैं। भाजपा निरंतर प्रयास करती रहेगी ताकि हमारा संगठन अपने मूल आदर्शों और सिद्धांतों को आत्मसात करके चलता रहे।हम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को और मजबूत करेंगे। लोगों से जुड़ना जारी रखेंगे। उनकी सुनेंगे, जो भी वे कहना चाहें, उनकी समस्याओं को संसद और संसद के बाहर उठाएंगे। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उनका शीघ्र ही घोषित होने वाला दल सुविचारित कार्यक्रम बनाएगा। यह सब काम भारतीय जनता पार्टी शीघ्र ही प्रारंभ कर देगी।3
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