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हम हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए इतना कुछ कर जाएं कि हमारे पश्चात् भी हिन्दू धर्म में चैतन्य बना रहे। हमें सौंपी गई यह धरोहर चोरों के हाथ न लगने पाए। हम सावधानी के साथ इसकी रक्षा करते रहें।-डा. हेडगेवारसिर्फ हिन्दुओं के साथ ही ऐसा क्यों होता है?पूज्य शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी को लेकर हिन्दू समाज में मचा कोलाहल स्वाभाविक ही है। देश के विभिन्न हिस्सों से इस घृणित गिरफ्तारी के विरोध में अनेक प्रदर्शनों के समाचार आ रहे हैं, वे मात्र संकेत ही हैं। किसी भी हिन्दू के मन को कुरेदें तो वह एक ही सवाल करेगा कि ऐसा क्यों हुआ? ऐसा जब किसी और के साथ नहीं हो सकता तो हिन्दूबहुल देश हिन्दुस्थान में इस प्रकार एक हिन्दू संस्था पर कुठाराघात मात्र विद्वेष या प्रतिशोध का प्रदर्शन नहीं, बल्कि हिन्दुओं के प्रति एक गहरी घृणा का भी प्रतीक है। यह हिन्दू समाज की कमजोरी और उसके असंगठन का भी परिचय देता है। जो लोग आज यह कह रहे हैं, विशेषकर कांग्रेस के लोग, कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है और यदि शंकराचार्य पर भी कोई आरोप लगता है तो उसकी जांच कानून के अन्तर्गत होनी ही चाहिए इसलिए इसका विरोध नहीं किया जाना चाहिए, वे संभवत: स्वयं को ही मूर्ख बना रहे हैं। क्योंकि ये वही लोग हैं, जब उनकी नेता श्रीमती इन्दिरा गांधी के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री जगमोहन लाल सिन्हा ने बयान दिया था तो सारे देश में उन्होंने न्यायालय की सत्ता के विरुद्ध अपशब्द इस्तेमाल करते हुए तीव्र तूफानी विरोध पैदा किया था और श्रीमती इन्दिरा गांधी ने उस कानून को ही बदल दिया था, जिसके तहत उन्हें सत्ताच्युत होना पड़ रहा था। इतना ही नहीं, वह यही कांग्रेस है जिसने सर्वोच्च न्यायालय के शाहबानो के मामले में दिए गए आदेश को पलटते हुए और संसद का दुरुपयोग करते हुए मुसलमानों के तुष्टीकरण के लिए कानून ही बदल दिया था। साफ जाहिर है, जिससे उन्हें लगता है कि सत्ता मिल सकती है उसके लिए वे कानून, संविधान अथवा किसी भी प्रकार की मर्यादा को ताक पर रखकर चलते हैं। लेकिन वे जानते हैं कि हिन्दुओं के शीर्ष पुरुष पर आघात करने से उनकी सत्ता के रहने या न रहने पर कोई असर नहीं पड़ता, इसीलिए वे इस प्रकार का कदम उठाने की हिम्मत कर सकते हैं। ये हिन्दू ही हैं, जिनके मंदिरों का सरकार द्वारा अधिग्रहण किया जाता है। ये हिन्दू ही हैं, जिनकी धर्मयात्राओं और तीर्थयात्राओं के प्रति सरकार निहायत उदासीनता बरतती है, जबकि अन्य मजहबों की यात्राओं के लिए सरकार सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च कर न केवल गौरवान्वित होती है बल्कि यह भी महसूस कराती है कि शायद उसे और भी अधिक खर्च करना चाहिए था। ये हिन्दू ही हैं, जिनके अपने ही देश में पलायन और उत्पीड़न पर सरकार उद्वेलित नहीं होती। प्रधानमंत्री कश्मीर जाते हैं। वे कारगिल में हमारे सैनिकों पर आघात करने वाले पाकिस्तान के साथ बातचीत को जायज ठहराते हैं। हुर्रियत, जो कि भारतीय सत्ता को नहीं स्वीकार करती है, उसके साथ बातचीत को आगे बढ़ाते हैं। लेकिन जो कश्मीरी हिन्दू “भारत माता की जय” कहने और देशभक्ति के अधिष्ठान पर टिके रहने के कारण अपने ही घरों से निकाले गए, उनके बारे में वे एक शब्द भी सहानुभूति का नहीं कहते हैं।भारत में इस समय जो माहौल है, विशेषकर अखबारी जगत में, वह भी हिन्दू परम्पराओं और प्रतीकों के विरुद्ध एवं उनका तिरस्कार करने वाला ही दिखता है। पूज्य शंकराचार्य जी के सम्बंध में प्रमाण मिलते हैं तो कानूनी कार्रवाई का कोई विरोध नहीं कर रहा। परन्तु जिस प्रकार से उन्हें एवं शंकराचार्य परम्परा तथा मठ को अपमानित करते हुए कार्रवाई की जा रही है, वह अक्षम्य एवं अस्वीकार्य है। अभी तक उनके विरुद्ध जो आरोप हैं वे किसी साजिश के तहत लगाए गए हो सकते हैं और जिस मुख्यमंत्री ने आरोप लगाए हैं वह स्वयं भ्रष्टाचार, कदाचार एवं प्रेस के विरुद्ध प्रतिशोधी व्यवहार के लिए जानी जाती हैं। चूंकि उस मुख्यमंत्री ने एक हिन्दू सन्त के विरुद्ध यह आघात किया इसलिए अखबारों ने, विशेषकर सेकुलर अंग्रेजी अखबारों ने उनके इस काम को इस प्रकार से प्रस्तुत किया मानो उन्होंने अच्छा काम किया है और पूज्य शंकराचार्य के प्रति अभद्र एवं अशालीन शब्दों का इस्तेमाल करने में तनिक भी गुरेज नहीं किया। जबकि यह वही मीडिया है, जो धमकियों के आगे झुककर कश्मीर के इस्लामी आतंकवादियों के डर के मारे उनके निर्देशों का पालन कर उनके लिए सैन्यवादी या अंग्रेजी में “मिलिटेन्ट” जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता है, आतंकवादी या “टेरेरिस्ट” शब्दों का इस्तेमाल नहीं करता। सोचिए कि अगर यही कदम जयललिता ने किसी राजनीतिक दल के बड़े नेता के विरुद्ध उठाया होता तो क्या उस दल का केन्द्रीय नेतृत्व यह कहकर हाथ झाड़ लेता कि हम क्या करें, यह तो एक राज्य सरकार द्वारा उठाया गया कदम है, इसमें केन्द्र सरकार कुछ नहीं कर सकती। यानी इस देश में शंकराचार्य जी का स्थान किसी भी राजनीतिक दल के नेता से भी नीचा मान लिया गया है?5
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