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हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भ
तेजस्विनी
कितनी ही तेज समय की आंधी आई, लेकिन न उनका संकल्प डगमगाया, न उनके कदम रुके। आपके आसपास भी ऐसी महिलाएं होंगी, जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प, साहस, बुद्धि कौशल तथा प्रतिभा के बल पर समाज में एक उदाहरण प्रस्तुत किया और लोगों के लिए प्रेरणा बन गयीं। क्या आपका परिचय ऐसी किसी महिला से हुआ है? यदि हां, तो उनके और उनके कार्य के बारे में 250 शब्दों में सचित्र जानकारी हमें लिख भेजें। प्रकाशन हेतु चुनी गयी श्रेष्ठ प्रविष्टि पर 500 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।
दक्षा सेठ
कत्थक नृत्य में प्रयोगशीलता के लिए प्रसिद्ध हैं नृत्यांगना दक्षा सेठ। उनके द्वारा विकसित मयूरभंज शैली के छऊ नृत्य की एकल प्रस्तुति, सर्पगति आदि शैलियों के कारण नृत्यकला के क्षेत्र में उनका विशिष्ट स्थान है। 1993 में दक्षा सेठ नई दिल्ली से आकर तिरुअनंतपुरम् में बस गर्इं। उनके आस्ट्रेलियन संगीतकर पति देविस्सारो तथा बच्चे-ईशा शेरवानी और ताओ इस्सारो भी साथ थे। केरल की राजधानी में ही बसने का निर्णय श्रीमती दक्षा सेठ ने “कालरिप्पयतु” के कारण लिया था। दुनिया भर के 30 देशों में आयोजित लगभग 2000 कार्यक्रमों में भाग ले चुकीं दक्षा केरल की इस पारंपरिक युद्ध कला के प्रति आकृष्ट हुई थीं। तिरुअनंतपुरम् इस द्रविड़ युद्ध कला का केन्द्र है।
भारतीय नृत्य की दुनिया में दक्षा सेठ का एक विशिष्ट स्थान है। कला की दुनिया में इस प्रतिभाशाली कत्थक नृत्यांगना की ख्याति है। हालांकि कई बार कला के अज्ञात क्षेत्रों में उनका प्रवेश उनके प्रशंसकों को चकरा भी देता है। असीमित कलाकौशल की स्वामिनी दक्षा अपने आत्मविश्वास के साथ अपने अंतर्मन की आवाज सुनकर नई राहें बना लेती हैं। इस प्रक्रिया से उनकी कला में जो आविष्कार हुआ उसने भारतीय नृत्य की सीमाओं को विस्तार दिया। उनकी कला का आविष्कार दर्शक की सोच जागृत करता है। भारत में शायद ही कोई ऐसी नृत्यांगना हो जिसने इतनी भाव-भंगिमाओं को साकार किया हो। दक्षा ने विभिन्न शैलियों में अपना नृत्य कौशल प्रकट किया है। कत्थक हो या मयूरभंज शैली का छऊ, समसामयिक नृत्य-उनकी कला यात्रा का हर कदम बताता है कि उन्होंने इस स्थान को पाने के लिए कड़ी मेहनत की है।
कत्थक में दक्षा सेठ ने गहरे तथा परिश्रमपूर्ण प्रशिक्षण के सहारे हर तकनीकी पहलू पर दक्षता हासिल की है। उनकी हर ताल में आनंद विभोर कर देने वाली सहजता और दर्शक को बांधकर रखने वाली गति दिखाई देती है। सुप्रसिद्ध नृत्यांगना तथा नृत्य निर्देशिका पद्मश्री श्रीमती कुमुदिनी लाखिया ने दक्षा की कला को बारह वर्षों तक तराशा है। श्रीमती लाखिया की प्रसिद्ध “कदंब मंडली” की प्रमुख नृत्यांगना रह चुकीं दक्षा ने उनके साथ संपूर्ण भारत में ही नहीं बल्कि अमरीका, ब्रिटेन, चीन, कोरिया, हांगकांग तथा पाकिस्तान आदि देशों में नृत्य के कार्यक्रम प्रस्तुत किए हैं।
कत्थक के परम गुरु माने जाने वाले पद्म विभूषण बिरजू महाराज से प्रशिक्षण लेने का सौभाग्य भी दक्षा को प्राप्त हुआ। अपने दोनों गुरुओं से दक्षा ने कत्थक परम्परा की नृत्य शिक्षा को आत्मसात किया। फिर अपनी प्रतिभा के सहारे एक विशेष शैली भी विकसित की।
नृत्य परम्परा और आधुनिकता की सेतु
दक्षा की दक्षता
-तिरुअनंतपुरम् से प्रदीप कुमार
“सर्पगति” नृत्य करते भावपूर्ण मुद्रा में नर्तक
नृत्य की एक आकर्षक मुद्रा में दक्षा सेठ
छऊ से दक्षा का जुड़ाव
भारत के पूर्वी क्षेत्र में प्रचलित छऊ नृत्य परम्परा के साथ जुड़ने से पहले दक्षा एक प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना थीं। छऊ की अभिव्यक्ति की ताकत और सुंदर शैली से वे आकर्षित हुर्इं। छऊ के तीन गुरुकुलों में से मयूरभंज परम्परा पर दक्षा ने ध्यान केन्द्रित किया। इस परम्परा के प्रस्थापित गुरु श्री कृष्ण चंद्र नाइक तथा अन्य वरिष्ठ गुरुओं से उन्होंने मयूरभंज परम्परा के छऊ नृत्य का प्रशिक्षण लिया। अन्य छऊ नृत्यों से मयूरभंज छऊ अलग है, क्योंकि इसकी प्रस्तुति में मुखौटों का उपयोग नहीं किया जाता। इसके चरित्रों को साकार करने में उच्चकोटि की भाव-भांगिमा अपनाई जाती है और नई भंगिमाओं को अपनाने पर बंधन नहीं होता।
दक्षा सेठ भारत की पहली ऐसी महिला हैं जिन्होंने छऊ का एकल नृत्य प्रस्तुत किया है। अब तक केवल पुरुषों के वर्चस्व वाले छऊ नृत्य की इस विशिष्ट शैली के परिरक्षण और प्रसार के लिए एक स्त्री के सामने अनेक चुनौतियां थीं, लेकिन दक्षा ने उन सबको परास्त करते हुए अपनी अमिट छाप छोड़ी।
सर्पगति
भारतीय सामयिक नृत्य को दक्षा की एक और देन है “सर्पगति” नृत्य। इसे नृत्य की दुनिया में मील का पत्थर माना जाता है। भारतीय संस्कृति में नाग पूजा के महत्व को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इस नृत्य नाट्य का आविष्कार किया है, जिसमें नाग के साथ जुड़े मिथक, अनुष्ठान तथा प्रतीकों के बारे में बताया गया है।
नाट्याश्रम की स्थापना
1992 में लंदन में हुए विवार्ता महोत्सव के लिए बना “यज्ञ” कार्यक्रम दक्षा सेठ डांस कम्पनी (डी.एस.डी.सी.) की पहली प्रस्तुति थी। सामयिक ललित कला को एक मंच देने के लिए इस मंडली की स्थापना हुई थी।
अब तिरुअनंतपुरम् से 14 किमी. दूर केरल में वेल्लायनी के प्रकृतिरम्य वातावरण में दक्षा सेठ ने ग्रामीण कला केन्द्र-नाट्याश्रम की स्थापना की है। आश्रम का निर्माण कम खर्चे पर ग्रामीण शैली में किया गया है लेकिन सौंदर्यशास्त्र की दृष्टि से यह उत्तम तकनीक पर आधारित है। नाट्याश्रम एक ऐसी जगह है जहां विभिन्न विधाओं, संस्कृतियों और पृष्ठभूमियों वाले कलाकार एकत्र होकर आपसी आदान-प्रदान के सहारे अपनी कला को तराशते हैं। ऐसे कलाकारों के लिए यहां रहने तथा काम करने की सुविधा उपलब्ध है।
1989 में इसी केन्द्र में कला से जुड़ी गतिविधियों के अनुसंधान, प्रशिक्षण तथा परिवर्तन के लिए “आरती” (द एकेडेमी फार आर्टस् रिसर्च, ट्रेनिंग एंड इनोवेशन) की स्थापना की गई है। इसके अंतर्गत पारंपरिक ललित कलाओं से सम्बंधित सामग्री, खासकर युद्ध कला और लोक कला तथा केरल की अनुष्ठानात्मक कलाओं का लेखन किया जाता है। दक्षा विविध विधाओं के अन्तरराष्ट्रीय स्तर के कलाकारों कलाकारों और संगठनों से भी जुड़ी हैं। फिनलैंड के नृत्य निर्देशक एरो हामिनिमी के सहयोग से बना “संगीतम्” तथा ब्रिटिश नृत्य-नाट्य कम्पनी “द कोश” के साथ 1997 में बनी “फॉलिंग एंजेल्स” “आरती” द्वारा प्रस्तुत प्रमुख कार्यक्रम हैं। “पोस्ट कार्डस् फ्राम गाड” (भगवान के भेजे पत्र) में काव्य, संगीत, गति तथा प्रतिमा का काल्पनिक तथा उत्तेजक सम्मिश्रण है। “आरती” का “गिल्गामेश प्रोजेक्ट” भारत, आस्ट्रेलिया के सहयोग से बना महत्वाकांक्षी कार्यक्रम था, जिसमें गिल्गामेश मिथक पर आधारित नृत्य पेश किया गया। इसमें दोनों देशों के कलाकारों ने हिस्सा लिया।
सामयिक नृत्य तथा पारम्परिक कला आंदोलन के बीच सेतु निर्माण की इच्छा रखने वाली दक्षा सेठ की नृत्य मंडली को भारत की परिवर्तनवादी नृत्य मंडली माना जाता है। इस मंडली के कलाकारों को पहले भारतीय शास्त्रीय नृत्य भरत नाट्यम का प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके अलावा योग, कालरिप्पयतु, मलखम्भ तथा व्यायाम और विविध संगीत साधनों को चलाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
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