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विलक्षण बालकवह बालक अभी केवल 8 वर्ष का था। उसके पिता श्री गोपालचन्द्र, उपनाम “गिरधनदास” जी काशी के प्रसिद्ध कवि थे। वह बालक जब 5 वर्ष का था, तभी उसकी माता का देहान्त हो गया। उसकी शिक्षा घर पर ही होती रही। उसने देखा, पिताजी हर समय कविता की कोई पुस्तक लिखते रहते हैं, तो उसकी भी इच्छा हुई कविता लिखने की और वह भी अपने मन से आयेदिन कुछ न कुछ लिखने लगा। जब वह 9 वर्ष का हुआ, उसके पिता एक पुस्तक “बलराम कथामृत” लिखने में अपना समय खपा रहे थे। एक दिन उस बालक ने पिता से कहा, “अगर आप आज्ञा दें तो मैं भी कुछ कविता लिखकर आपको दूं?” पिताजी ने कहा, “हां! हां! लिख न देखूं क्या लिखता है?” उसी समय उस बालक ने एक दोहा लिखकर पिता को दिया, जो इस प्रकार था-“लै ब्यौंड़ा ठाढ़े भये, श्री अनिरुद्ध सुजान।।बाणासुर की सेन को, हनन लगे भगवान।।”पिता को अपने पुत्र का बनाया यह दोहा इतना अच्छा लगा कि बोले, “मैं तेरे लिखे इस दोहे को अपने ग्रंथ में शामिल करूंगा। वाह! लगता है, तू मेरा नाम आगे बढ़ाएगा।” पिता का यह वचन सत्य सिद्ध हुआ, हालांकि वे अगले वर्ष ही संसार छोड़ गए। किन्तु उस बालक ने ही बड़े होकर हिन्दी साहित्य में “भारतेन्दु हरिश्चन्द्र” नाम से पचासों ग्रंथ लिखे। काशी में ही कई विद्यालय, पुस्तकालय खोले, “कविता-वर्धिनी सभा” कायम की, काशी का “हरिश्चन्द्र कालेज” उन्हीं का खोला हुआ है। लेखकों-साहित्यकारों ने उन्हें “भारतेन्दु” उपाधि से अलंकृत किया। जीवन की शुरुआत हरिश्चन्द्र ने शिक्षक के रूप में ही की थी, साथ ही वे कवि-संपादक-आलोचक के रूप में भी प्रसिद्ध हुए। भारतभर में घूमकर उन्होंने मराठी, बंगला, गुजराती और संस्कृत भाषा सीखी। हिन्दी-उर्दू-अंग्रेजी की शिक्षा तो उन्होंने घर पर ही प्राप्त कर ली थी। राह चलते किसी भिखारी को जाड़े के दिनों में अपनी कीमती शाल ओढ़ा देना, या तो किसी भिखारी को 5 रुपए का नोट थमा देना और किसी गरीब की बेटी के ब्याह में खासी रकम दे देना उनका आयेदिन का काम था। अपने गले में पड़ी कीमती मोतियों की माला तक वे दूसरे को दे देते थे। हिन्दी का दुर्भाग्य यह रहा कि वे केवल 34 वर्ष ही जिए। 9 सितंबर, सन् 1850 को जन्मे थे। सन् 1884 में चल बसे। हिन्दी को शिखर तक पहुंचाने में उन्होंने अपना तन-मन-धन सभी न्योछावर कर दिया।मानस त्रिपाठीबूझो तो जानेंप्यारे बच्चो! हमें पता है कि तुम होशियार हो, लेकिन कितने? तुम्हारे भरत भैया यह जानना चाहते हैं। तो फिर देरी कैसी?झटपट इस पहेली का उत्तर तो दो। भरत भैया हर सप्ताह ऐसी ही एक रोचक पहेली पूछते रहेंगे। इस सप्ताह की पहेली है-अंधे थे वो आंख से, पर मन से लाचार, कैसे फिर सत्ता मिले, रहता भूत सवार।दुर्योधन को आगे कर चालें चलवाईं, सच पूछो उनके ही कारण हुई लड़ाई।।उत्तर: (धृतराष्ट्र)12
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