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डा.रवीन्द्र अग्रवालपंचायत बनाम बाजार बने गांवपंचायती राज इन दिनों खासी चर्चा में रहा। अवसर था पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी की 60वीं जन्म जयन्ती। स्व.राजीव गांधी को पंचायती राज व्यवस्था का श्रेय देने का प्रयास है यह। परन्तु किसी के पास यह सोचने का समय नहीं है कि राजीव गांधी ने जिस पंचायती राज का पौधा रोपा था, क्या उससे पंचायती राज व्यवस्था सुदृढ़ और आत्मनिर्भर हुई? राजीव गांधी की पंचायत व्यवस्था और महात्मा गांधी के पंचायत राज में क्या अन्तर है?महात्मा गांधी ने “हरिजन” के 18 जनवरी, 1922 के अंक में लिखा था “प्रत्येक गांव में एक स्वावलम्बी गणतन्त्र बनाना होगा। इसके लिए लम्बे-चौड़े प्रस्ताव पास करने की जरूरत नहीं है। इसके लिए साहसिक, सामूहिक और विवेकपूर्ण कार्य की जरूरत है।” गांधीजी ने यह भी कहा था-“स्वाधीनता नीचे से शुरू होनी चाहिए। तद्नुसार प्रत्येक गांव एक गणतंत्र या पंचायत होगी, जिसे समस्त शक्तियां प्राप्त होंगी। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक गांव को आत्मनिर्भर होना होगा।”परन्तु गांव आत्मनिर्भर हुए क्या? आज केन्द्र व राज्यों से मिलने वाले पैसे पर पंचायतें निर्भर हैं। स्थिति यह है कि पेयजल के लिए भी आज गांवों की दूसरों पर निर्भरता बढ़ गयी है। यह निर्भरता कितनी है इसका अंदाजा मणिपुर में आंदोलनकारियों की उस घोषणा से लगाया जा सकता है जिसमें उन्होंने देश के अन्य राज्यों में बनने वाले उत्पादों का बहिष्कार करने की बात कही है। इस बहिष्कार में फिलहाल केवल दो वस्तुओं को शामिल किया गया है। इनमें एक है शीतल पेय (कोल्ड डिं्रक) और दूसरा बोतल बंद पानी। इस बहिष्कार से मणिपुर में बोतल बंद पानी की अहमियत समझी जा सकती है। मणिपुर के गांवों में कोल्ड डिंरक और बोतल बंद पानी की “मार्केटिंग” से स्पष्ट है कि राजीव गांधी की पंचायत राज व्यवस्था के बाद गांव बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और कार्पोरेट क्षेत्र के लिए मात्र “बाजार” बनकर रह गए हैं। जबकि गांधीजी गांवों को उत्पादन का केन्द्र बनाए जाने के पक्षधर थे। जिन गांवों को आज उपभोक्ता वस्तुओं का बाजार मानकर चला जा रहा है क्या वे गांव कभी स्वत:पूर्ण हो सकेंगे, जिसकी कल्पना महात्मा गांधी ने की थी। वास्तव में बाजार बनने से गांव उसी प्रकार शोषण का शिकार होंगे जैसे जमीदारों के शोषण का शिकार होते थे। गांवों को यदि आत्मनिर्भर बनाना है और वास्तव में पंचायत राज व्यवस्था लानी है तो गांधी जी के ही शब्दों में “इसके लिए लम्बे-चौड़े प्रस्ताव पास करने की जरूरत नहीं”, “जरूरत है विवेकपूर्ण कार्य की।”15
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