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माओवादी कम्युनिस्टों द्वारा काठमाण्डू कीनाकाबंदीकुछ हटी, पर दहशत और अनिश्चितता कायमकाठमाण्डू से राकेश मिश्रनाकाबंदी के दौरान काठमाण्डू घाटी के नागधुंग में चौकस सुरक्षाकर्मीनेपाल में गत 9 वर्षों से सशस्त्र आन्दोलन करती आ रही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने 17 अगस्त से नेपाल की राजधानी काठमाण्डू की अनिश्चितकालीन नाकाबंदी कर राजधानी के जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया था। नाकाबंदी के विरोध में जनता की ओर से आवाज उठने के बाद माओवादियों ने नाकाबंदी समाप्त कर फिलहाल एक महीने तक के लिए अपना निर्णय वापस ले लिया है। इस नाकाबंदी के चलते काठमाण्डू का अन्य भागों से सम्पर्क प्राय: टूट चुका था। सड़क यातायात बंद था। हां, शाही नेपाली सेना की देखरेख में कुछ बसें और ट्रक अवश्य चल रहे थे। नाकाबंदी के कारण दैनिक उपयोग की वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगी थी।माओवादियों द्वारा काठमाण्डू की नाकाबंदी के साथ-साथ एक अन्य संगठन अखिल नेपाल ट्रेड यूनियन महासंघ (क्रान्तिकारी) ने 12 प्रमुख उद्योगों को बंद करने का फरमान जारी कर दिया था। माओवादियों ने जिन उद्योगों को बंद करने की धमकी दी थी, वे सभी उद्योग बंद किए जा चुके हैं। सोल्टी होटल और सूर्य टोबैको कम्पनी, जिनका मालिक नेपाल नरेश ज्ञानेन्द्र को माना जा रहा है, वे भी बंद किए जा चुके हैं। नेपाल सरकार उद्योगपतियों से उद्योग चलाने का आग्रह करने के साथ ही आवश्यक सुरक्षा मुहैया कराने का आश्वासन अवश्य दे रही है, लेकिन उद्योगपति किसी भी सूरत में अपने प्रतिष्ठानों को चलाने के लिए तैयार नहीं हैं।माओवादियों ने नाकाबंदी को सफल बनाने और व्यापारियों एवं उद्योगपतियों में दहशत फैलाए रखने के लिए काठमाण्डू के अति व्यस्त इलाके डिल्ली बजार स्थित मालपोत कार्यालय में बम विस्फोट किया था और सुरक्षाकर्मी की भी गोली मारकर हत्या की थी। उसी दिन त्रिभुवन अन्तरराष्ट्रीय विमान स्थल के सीमपवर्ती कौशलटार पुलिस चौकी को भी माओवादियों ने बम से उड़ा दिया था। दूसरे दिन गोपीकृष्ण सिनेमा हाल के परिसर में सैकड़ों लोगों की उपस्थिति में माओवादियों ने दिनदहाड़े एक पुलिस उप निरीक्षक की गोली मार कर हत्या कर दी थी। इस घटना के साथ ही अफवाह फैल गयी कि काठमाण्डू घाटी में 1 हजार से अधिक माओवादी गुरिल्ला घुस आए हैं। नाकाबंदी के चलते काठमाण्डू का जनजीवन अस्त-व्यस्त हो ही गया था निकटवर्ती क्षेत्रों में भी इसका असर पड़ा। काठमाण्डू से सटे धादिंग जिले के मवेशी पालक और दूध विक्रेता दूध को नाले में बहाने पर मजबूर थे। प्रधानमंत्री देउबा के नेतृत्व वाली वर्तमान साझा सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि माओवादियों से वार्ता करने के लिए सरकार आवश्यक तैयारी में जुटी है और अप्रत्यक्ष रूप से माओवादियों से सम्पर्क जारी है। दूसरी ओर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के अध्यक्ष एवं जनमिलिसिया के सर्वोच्च कमाण्डर पुष्प कमल दहल (प्रचण्ड) ने भी एक विज्ञप्ति प्रकाशित कर कहा था कि वार्ता द्वारा समस्या का समाधान करने के लिए माओवादी पक्ष तैयार है किन्तु वार्ता संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता में होनी चाहिए। वार्ता के प्रति माओवादियों के झुकाव को देख नेपाल सरकार ने वार्ता का दरवाजा खुला रखने के लिए शान्तिवार्ता सचिवालय की भी स्थापना की है। लेकिन माओवादियों ने कुछ होटलों और उद्योगों को बंद करने की चेतावनी देकर लोगों को किंकर्तव्यविमूढ़ बना दिया है। विशेष बात यह है कि इस बार माओवादियों ने उन होटलों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों को अपना निशाना बनाया है, जिनमें राजपरिवार व भारतीय मूल के लोगों की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी रही है। माओवादियों ने ऐसा कर एक ओर सरकार पर वार्ता के लिए दबाव डालना चाहा है तो दूसरी ओर यह भी दिखाना चाहा कि माओवादी इतने शक्तिशाली हैं कि राजदरबार को भी उनके आगे झुकना पड़ रहा है।नेपाल के कुछ राजनीति विश्लेषकों ने “पाञ्चजन्य” को बताया कि राजधानीवासी पिछले दिनों जिन परिस्थितियों से दो-चार हो रहे थे, वैसी परिस्थितियों को नेपाल के दूसरे भागों के लोग वर्षों से झेलते आ रहे हैं। बंद, नाकाबंदी, अपहरण, हत्या एवं तोड़फोड़ का ताण्डव नृत्य कोई नई समस्या नहीं है। इन समस्याओं का बीजारोपण आज से 9 वर्ष पहले हुआ था और अब यह भयानक रूप धारण कर चुका है। 9 वर्ष की अवधि में 12,000 से अधिक लोगों की जानें गयीं हैं। घायलों और विस्थापितों की संख्या अनगिनत है। नेपाल हथियारों का बाजार बनता जा रहा है। एक ओर माओवादी अवैध तरीके से हथियार प्राप्त कर रहे हैं, तो सरकार भी माओवादियों को दबाने के नाम पर हथियार खरीद रही है। माओवादियों ने सैकड़ों छात्र-छात्राओं का अपहरण कर उन्हें अपने चंगुल में फंसा लिया है। आतंक के कारण दुर्गम क्षेत्र के विद्यालयों में कोई पढ़ने नहीं जाता। साम्यवाद के नाम पर माओवादी नेपाली रीति-रिवाज और संस्कृति को नष्ट करने पर तुले हैं।औद्योगिक प्रतिष्ठानों के बंद होने से नेपाल के बाजारों में विदेशी उत्पादों का एकाधिकार हो चला है। नेपाल-उद्योग वाणिज्य संघ के अध्यक्ष विनोद बहादुर श्रेष्ठ ने चेतावनी दी है कि उद्योग-व्यापार के क्षेत्रों को शीघ्रातिशीघ्र सहज बनाने की कोशिश नहीं हुई तो देश गंभीर आर्थिक संकट में फंस सकता है।नेपाल मानव अधिकार संगठन के अध्यक्ष सुदीप पाठक का कहना है कि सरकार और माओवादियों बीच के द्वन्द्व में जिस प्रकार निर्दोष जनता पिस रही है, वह चिंता का विषय है। नेपाल के उपप्रधानमंत्री भरतमोहन अधिकारी ने कहा कि हम माओवादियों से वार्ता के लिए तैयार हैं और माओवादियों को भी चाहिए कि वे शालीन व्यवहार करें, ताकि वार्ता का दौर शुरू हो सके। वैसे माओवादियों ने काठमाण्डू से तराई को जोड़ने वाली सड़कों पर से नाकाबंदी उठा ली है लेकिन काठमाण्डू से कुछ पहाड़ी जिलों को जोड़ने वाली सड़कों की नाकाबंदी अभी भी जारी है। इसलिए काठमाण्डू की स्थिति सामान्य हो गई, यह नहीं कहा जा सकता। क्योंकि माओवादियों ने पूर्व-पश्चिम राजमार्ग और त्रिभुवन राजपथ की नाकाबंदी सिर्फ 1 महीने के लिए हटायी है।23
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