|
तिरंगा भारती!विदेशी मूल की नेता और विचारधारा ने आजाद देश मेंतिरंगा फहराने पर एक साध्वी को जेल भेजा-दु.गु. लक्ष्मणमध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद सुश्री उमा भारती भोपाल से चलकर 25 अगस्त को हुबली पहुंचीं। उनके साथ पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री शाहनवाज हुसैन भी थे। 30 घण्टे की यात्रा के बाद जब उनकी गाड़ी 25 अगस्त की सुबह 9 बजे हुबली स्टेशन पहुंची तो सारा स्टेशन तिरंगे झण्डों से पटा पड़ा था। हजारों लोग हाथ में तिरंगा लिए “भारत माता की जय” का उद्घोष कर रहे थे। भारतीय जनता पार्टी, कर्नाटक प्रदेश के अध्यक्ष श्री अनंत कुमार ने उनकी अगवानी की। स्टेशन से वे श्री कृष्ण मंदिर गईं जहां प्रभु के दर्शन करने के बाद वे न्यायालय की ओर रवाना हुईं। उन्हें न्यायाधीश मोहम्मद इस्माइल के समक्ष प्रस्तुत होना था। मार्ग के दोनों ओर सुश्री उमा भारती के स्वागत में हाथ में लोग तिरंगा लिए खड़े थे। भारतीय जनता पार्टी, भा.ज. युवा मोर्चा, बजरंग दल, दुर्गावाहिनी सहित अनेक संगठनों के हजारों कार्यकर्ता उनके साथ प्रदर्शन करते हुए न्यायालय की ओर चल दिए।हालांकि सुश्री भारती के विरुद्ध न्यायाधीश मोहम्मद इस्माइल ने गैर जमानती वारंट जारी किया था। 15 अगस्त, 1994 को कित्तूर रानी चेन्नमा मैदान में तिरंगा फहराने के आरोप में उन पर यहां के न्यायालय में आपराधिक मामला चल रहा था। पुलिस ने सुश्री उमा भारती पर आपराधिक मामला इसलिए दर्ज किया था कि प्रशासन के अनुसार उनके द्वारा तिरंगा फहराए जाने के बाद वहां हिंसक वारदातें हुई थीं। कर्नाटक के पुलिस महानिदेशक श्री सुभाष भरणी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि सुश्री उमा भारती को गिरफ्तार करने का कोई विचार नहीं है और उन्हें न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होने दिया जाएगा। सुरक्षा की दृष्टि से हुबली शहर में 4 हजार से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया गया था और सभी विद्यालयों-महाविद्यालयों में एक दिन का अवकाश भी किया गया था। हुबली में भारी भीड़ के कारण एक दो स्थानों पर पुलिस को हल्का बल प्रयोग करना पड़ा।न्यायालय में प्रस्तुत होने से पूर्व सुश्री उमा भारती ने वहां उपस्थित कार्यकर्ताओं और जनसामान्य को सम्बोधित करते हुए कहा, “मैंने राष्ट्रध्वज फहराने का परम पुनीत कार्य किया है। मुझे इस बात का गर्व है। इस कार्य के लिए भले ही मुझे जेल भेज दिया जाए पर मैं जमानत के लिए कोई प्रयत्न नहीं करूंगी। मैं न्यायालय के आदेश का पूरा सम्मान करती हूं। राष्ट्रध्वज के सम्मान के लिए जेल तो बहुत कम है, मैं अपने प्राण भी न्योछावर कर सकती हूं।” इसके बाद वे न्यायमूर्ति मोहम्मद इस्माइल के न्यायालय में प्रस्तुत हुईं, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। न्यायालय ने उनके निजी सहायक सिद्धार्थ तथा निजी सेविका भूरी को उनके साथ रहने की अनुमति भी दे दी। जितनी देर न्यायालय की कार्यवाही चली उतनी देर न्यायालय परिसर के बाहर हाथों में तिरंगा लिए हजारों लोग नारे लगाते रहे।जेल भेजे जाने से पूर्व वहां उपस्थित पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए सुश्री उमा भारती ने एक बार फिर स्वदेशी-विदेशी का मुद्दा उठाया और इस राजनीतिक षडंत्र के लिए कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी और उनके विदेशी मूल को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि सोनिया और कांग्रेस राष्ट्रध्वज को लेकर राजनीति कर रहे हैं। मैं इस विदेशी मानसिकता का विरोध प्रकट करने के लिए ही जेल जा रही हूं। देश को स्वतंत्र हुए सत्तावन वर्ष बीत गए और तब भी किसी को तिरंगा फहराने के लिए अपराधी बनाकर जेल भेजा जाए, इससे अधिक दु:ख की बात और क्या हो सकती है। सोनिया गांधी प्रतिशोध की भावना से ऐसा करवा रही हैं और इस क्रम में उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने से भी परहेज नहीं किया। सुश्री उमा भारती ने कहा कि अब वे तिरंगा यात्रा निकालकर कांग्रेस की विदेशी मानसिकता का प्रतिकार करेंगी।हाथ-पांव फूल गए थे प्रशासन के25अगस्त की सुबह 7 बजकर 18 मिनट पर गोवा एक्सप्रेस जब अल्नावार रेलवे स्टेशन पहुंची तो वहां उपस्थित धारवाड़ जिले की पुलिस अधीक्षक सुश्री डी. रूपा व पुलिसकर्मियों ने यह प्रयत्न किया कि वे सुश्री उमा भारती को गिरफ्तार कर सड़क मार्ग से हुबली तक ले जाएं। परन्तु सुश्री भारती ने सड़क मार्ग द्वारा जाने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि वे उन्हें गिरफ्तार कर कैसे भी ले जा सकती हैं पर वे स्वयं रेल द्वारा ही हुबली तक जाएंगी। सुश्री डी. रूपा ने केवल इतना भर कहा कि वे उन्हें गिरफ्तार कर रहीं हैं, पर गिरफ्तारी की कोई प्रक्रिया नहीं की गई। केवल रेलगाड़ी में साथ जा रहे पत्रकारों को बताया गया कि उमा जी को गिरफ्तार किया जा रहा है। अल्नावार से चलकर गाड़ी जब धारवाड़ पहुंची तो वहां रेलवे स्टेशन पर हाथ में तिरंगा लिए सैकड़ों लोगों को सुश्री उमा भारती ने सम्बोधित किया। 20 मिनट की सभा के बाद रेलगाड़ी धारवाड़ से चलकर सुबह 9 बजकर 5 मिनट पर जब हुबली रेलवे स्टेशन पहुंची तो वहां अद्भुत दृश्य था। 15 मिनट तक धारवाड़ और हुबली के पुलिस अधीक्षकों में सुश्री उमा भारती की गिरफ्तारी को लेकर बहस और खींचतान होती रही। हजारों लोगों की उपस्थिति में न वे सुश्री भारती की गिरफ्तारी की घोषणा कर पा रहे थे और न अपने अधिकारी के आदेश की अवहेलना। अंतत: घोषणा की गई कि उनके पास सुश्री भारती की गिरफ्तारी का कोई आदेश नहीं है।आखिरकार 15 मिनट बाद सुश्री उमा भारती रेलगाड़ी से उतरीं। हवा में तिरंगा लहराया। उपस्थित लोगों को सम्बोधित किया। पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए और स्थानीय श्रीकृष्ण मंदिर में दर्शन, पूजन के लिए चली गयीं। मंदिर से सुश्री उमा भारती 12 बजे न्यायालय गयीं। हालांकि न्यायालय परिसर को पुलिस छावनी में बदल दिया गया था और 200 मीटर की परिधि में किसी आम आदमी के आने की मनाही थी। पर उस दायरे के बाहर हजारों लोग “भारत माता की जय” के नारे गुंजा रहे थे। मात्र 1 घण्टे की कानूनी प्रक्रिया के बाद 14 दिन की न्यायिक हिरासत की सजा सुनकर जब सुश्री भारती बाहर आयीं तो उनके चेहरे पर विजय का भाव था। उन्होंने वहां उपस्थित पत्रकारों के प्रश्नों के जबाव दिए। उन्हें हुबली स्थित उप कारागार ले जाया गया तो वहां के कारागार अधीक्षक के हाथ-पांव फूल गए। उन्होंने बताया कि यह “सी” श्रेणी का कारागार है और यहां अतिविशिष्ट व्यक्ति के लिए कोई सुविधा नहीं है। इसलिए वे उमा जी को अपने यहां नहीं रख सकते। उमा जी और उनके समर्थकों सहित पुलिसकर्मियों को 1 घण्टे कारागार के बाहर ही बैठना पड़ा। फिर अगली व्यवस्था होने तक कारागार के भीतर बैठने की व्यवस्था करनी पड़ी, जिसके लिए वहां पर्याप्त कुर्सियां तक नहीं थीं और आस-पास के घरों से कुर्सियां लानी पड़ीं। आखिरकार 3 बजे उन्हें धारवाड़ ले जाया गया, जहां कृषि विश्वविद्यालय के अतिथि गृह को उनके लिए अस्थायी जेल बनाया गया है। हुबली से अमृत जोशीकानून विरोधी कर्नाटक सरकार-एस. गुरुमूर्ति26 जनवरी, 1992 और 15 अगस्त, 1994 के बीच हुबली में जो कुछ भी घटा, वह ऐसा शर्मनाक था कि जिसे भारतवासी भूल जाना चाहेंगे।26 जनवरी, 1992 को हुबली के नागरिकों ने राष्ट्रीय ध्वज फहराने का निर्णय किया था। लेकिन कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंगारप्पा ने पुलिस को ऐसी किसी भी कोशिश को नाकाम करने के आदेश दिए। कारण, इससे अल्पसंख्यकों की भावनाओं को ठेस पहुंचती! देश के ज्यादातर लोग शायद नहीं जानते होंगे कि 1971 में इंदिरा गांधी ने एक कानून पारित करके स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराने से रोकने वाले को तीन साल की सजा का प्रावधान किया था। लेकिन राज्य सरकार ने तिरंगा फहराने के अधिकार की रक्षा करने के बजाय प्रत्यक्ष रूप से तिरंगा फहराने पर रोक लगा दी। 26 जनवरी, 1992 से हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर चेनम्मा मैदान में तिरंगा फहराने की कोशिशें की जातीं, मुस्लिम आपत्ति जताते और सरकार उस पर रोक लगा देती। आखिरकार 15 अगस्त, 1994 को उमा भारती किसी तरह मैदान जा पहुंचीं और निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए राष्ट्रीय ध्वज फहरा दिया। (द न्यू इंडियन एक्सप्रेस, 24 अगस्त, 2004 में छपे आलेख का अंश)उमा भारती से विदेशी नेता, विदेशी विचारधारा का प्रतिशोध”मुख्यमंत्री का पद तिरंगे की शान से बड़ा नहीं”-उमा भारतीनिवर्तमान मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश”मेरे इस्तीफे से दो पहलू जुड़े हैं, पहला- क्या देश में राष्ट्रीय ध्वज फहराना अपराध है? दूसरा-स्तरहीन राजनीति। इसीलिए मैंने भाजपा संसदीय बोर्ड से आग्रह किया कि मुझे इस्तीफा देने की अनुमति दें ताकि मैं इन मुद्दों पर कांग्रेस को चुनौती दे सकूं।” सुश्री उमा भारती ने भोपाल में पाञ्चजन्य संवाददाता से बातचीत में कहा कि जिस तरह की स्तरहीन राजनीति कांग्रेस द्वारा की जा रही है, वे उससे लड़ने जा रही हैं। मुख्यमंत्री का पद तिरंगे की शान से बड़ा नहीं है। तिरंगे की शान के लिए वे पद ही नहीं, प्राण भी दे सकती हैं।मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर हुबली के लिए रवाना होते समय सुश्री उमा भारती ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ आर-पार की लड़ाई की घोषणा करते हुए कहा कि क्या इस देश में तिरंगा फहराना अपराध माना जाएगा? इस मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री धरम सिंह “जयचंद” तथा श्रीमती सोनिया गांधी “औरंगजेब” की भूमिका में हैं।उन्होंने एक राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए मुख्यमंत्री पद का त्याग किया है, जबकि भ्रष्टाचार में डूबे दागी मंत्री न त्यागपत्र दे रहे हैं और न कांग्रेस उन्हें निकाल रही है। केन्द्र में शामिल मंत्रियों पर हत्या, भ्रष्टाचार, जालसाजी, धोखाधड़ी और गबन जैसे गंभीर मामले हैं। -हरिमोहन मोदीउमा भारती के वकील दोराईस्वामी ने कहा-फैसला हमारे पक्ष में होगाहबली सत्र न्यायालय में सुश्री उमा भारती की ओर से पैरवी करने वाले वकील श्री दोराईस्वामी को पूरी उम्मीद है कि देशभर में इस प्रकरण पर छिड़ी बहस और अभियोग में कर्नाटक सरकार की खामियों की वजह से फैसला उनके पक्ष में होगा। पाञ्चजन्य को 15 अगस्त “94 को तिरंगा फहराए जाने के प्रकरण के कानूनी पक्ष की जानकारी देते हुए श्री दोराईस्वामी ने बताया कि 14, 15, 16 अगस्त, 1994 को हुबली शहर में राष्ट्र ध्वज फहराने के भाजपा के आह्वान पर सैकड़ों लोग इकट्ठे हुए थे। शहर में कुछ अप्रिय घटनाओं के बाद राज्य सरकार ने भाजपा कार्यकर्ताओं के विरुद्ध कुल 10 अभियोग दायर किए थे। उन्हीं में से एक अभियोग सुश्री उमा भारती के विरुद्ध था। जिस समय सरकार ने न्यायिक दण्डाधिकारी (द्वितीय श्रेणी), हुबली की अदालत में अभियोग पत्र दाखिल किया तो भारतीय दंड विधान की दो नई धाराएं 306 और 436, जो गंभीर अपराधों पर लगाई जाती हैं, भी जोड़ दीं। हालांकि सरकार ने 5-6 हजार लोगों के विरुद्ध प्रथम दृष्टा रपट दायर की थी, पर अभियोग केवल 21 लोगों पर ही लगाए गए, जिनमें मारे गए 6 लोगों को भी आरोपी बनाया गया था। जनवरी, 2002 में कर्नाटक मंत्रिमंडल ने उमा भारती के विरुद्ध अभियोग को छोड़कर शेष 9 अभियोग वापस लेने का फैसला किया था। सुश्री भारती की ओर से सत्र न्यायालय, हुबली में अपील संख्या 88/04 दायर की गई। न्यायाधीश श्री जान माइकल डी कुना की अदालत में इस पर बहस होनी थी।श्री दोराईस्वामी का कहना था कि “कर्नाटक पुलिस सुश्री भारती को गिरफ्तार नहीं कर सकती थी, क्योंकि सत्र न्यायाधीश ने अपने पूर्व के एक फैसले में इसकी व्यवस्था नहीं दी थी। सत्र न्यायालय ने तो अभियोग पक्ष को निर्देश दिया था कि वह न्यायिक दण्डाधिकारी (प्रथम श्रेणी) हुबली के सामने नई याचिका दायर करके इस मामले को बंद करवाए, जबकि कर्नाटक सरकार की कथित सलाह के बाद उसके वकील ने इस ओर कार्रवाई नहीं की।” इस दुर्भावनापूर्ण कृत्य में वह कानूनी तौर पर भी कमजोर स्थिति में है। प्रतिनिधिबाबू लाल गौरमजदूर से मुख्यमंत्री तकजनसेवक और श्रमिक नेता की छवि वाले बाबू लाल गौर की मुख्यमंत्री पद तक की यात्रा अद्भुत जीवट की कहानी है। अति साधारण परिवार में 2 जून, 1930 में जन्मे श्री बाबू लाल गौर ने तमाम आर्थिक संकटों से जूझते हुए कला स्नातक और विधि स्नातक की उपाधियां प्राप्त कीं। जमीन से जुड़े श्री गौर आम आदमी के जीवन में आने वाली कठिनाइयों को अच्छी तरह समझते हैं, क्योंकि उन्होंने भी वैसा ही साधारण जीवन जिया है। 16 वर्ष की आयु में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और संघ के समर्पित स्वयंसेवक का उदाहरण प्रस्तुत किया। पाञ्चजन्य से श्री गौर का बड़ा पुराना रिश्ता रहा है। इस रिश्ते को एक उदाहरण से समझता जा सकता है। वे अपनी साइकिल पर पाञ्चजन्य और आर्गेनाइजर के बंडल लेकर घर-घर ये अखबार पहुंचाते थे। मजूदरों की तरह पसीना बहाने वाले श्री गौर भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक सदस्य रहे। 1956 में वे भारतीय जनसंघ के प्रदेश सचिव रहे। श्री गौर जन-जन में कितने लोकप्रिय हैं, यह इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि 1974 से वे गोविन्दपुरा विधानसभा क्षेत्र से लगातार विधायक चुने जा रहे हैं। दसवीं विधानसभा (1993-98) में वह भाजपा विधायक दल के मुख्य सचेतक और सभापति रहे। 1993-2003 में 11वीं विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने से पूर्व वह भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष रहे। दिसम्बर, 2003 में उन्हें नगरीय प्रशासन एवं विकास, विधि एवं विधायी कार्य, आवास एवं पर्यावरण मंत्रालयों का दायित्व सौंपा गया। श्रमिक संगठन के नेता होने के कारण आम आदमी की चिंता और उसी के अनुरूप कार्य उनकी सोच का हिस्सा बन गए हैं। शहरी विकास उनका प्रिय विषय रहा है। उनके प्रयासों से भोपाल का स्वरूप काफी बदल चुका है।मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर ने कहा-मध्य प्रदेश बढ़े,बस यही चाहमध्य प्रदेश के नवनियुक्त मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल गौर शपथ ग्रहण के बाद जब नई दिल्ली आए तो पाञ्चजन्य ने उनसे बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उस बातचीत के मुख्य अंश:–जितेन्द्र तिवारीअचानक मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी पाकर कैसा महसूस कर रहे हैं?पूर्व राष्ट्रपति स्व. शंकर दयाल शर्मा का जन्म समारोह मनाने हेतु राज्य सरकार का प्रतिनिधि बनकर गत 19 अगस्त को ही मैं दिल्ली आया था। तब मेरी कल्पना में भी नहीं था कि 3-4 दिन बाद ही मैं मुख्यमंत्री बनकर पुन: दिल्ली आऊंगा। मुझे तो स्वयं आश्चर्य हुआ। मुझे अपनी पार्टी पर गर्व है, जिसकी वजह से मैं एक दिहाड़ी मजदूर से प्रदेश के मुख्यमंत्री तक का सफर तय कर सका।कैसी रही मजदूर से मुख्यमंत्री तक की यात्रा?मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में सांगीपुर थानान्तर्गत एक छोटे से गांव औरीपुर नौगीर में हुआ था, जिसमें केवल 10 घर थे। अभी भी हमारी वहां 10-12 बीघा खेती है, छोटे भाई वहीं खेती करते हैं। कच्चा खपरैल का मकान है, 2 गाय, 2 बैल और 1 भैंस है। पर मेरे पिता जी बहुत पहले वहां से काम की तलाश में म.प्र. आ गए थे। यहां आकर विद्यार्थी जीवन में मेरा सम्पर्क रा.स्व.संघ से हो गया, मैं शाखा जाने लगा। इसलिए मेरी शिक्षा-दीक्षा में संघ का बहुत प्रभाव रहा। उस समय मेरे पिता जी के पास शराब का ठेका था, उससे 40-50 रुपए प्रतिदिन की आमदनी होती थी। चूंकि पिताजी का व्यवसाय था इसलिए मैं भी कभी-कभी वहां बैठता था। पर जब संघ की शाखा में जाने लगा तो जीवन में तेजी से परिवर्तन आया। मैंने अपने पिताजी से भी कहा कि यह व्यवस्था छोड़ दें, पर वे कहते थे, इससे 40-50 रुपए रोज की आमदनी होती है, छोड़ देंगे तो क्या खाएंगे? भोपाल में तो 50 पैसे रोज की मजदूरी भी नहीं मिलती। 1946 में जब पिताजी का देहांत हुआ तब मैं 18 वर्ष का था और नौवीं में पढ़ता था। पिताजी का शराब का व्यवसाय मुझे संभालने को कहा गया तो मैंने मना कर दिया। तब उस शराब कम्पनी ने हमारी 5000 रुपए की सुरक्षा राशि वापस कर दी। मैंने वापस अपने पैतृक गांव आकर खेती करने का प्रयत्न किया। मन नहीं लगा तो भोपाल आकर एक कपड़े की मिल में 50 पैसे प्रतिदिन की मजदूरी शुरू की। वहीं से उप लिपिक बना, फिर लिपिक और बाद में मिल के कानूनी विभाग का प्रभारी। इस बीच संघ फिर जनसंघ और भारतीय मजदूर संघ में सक्रियता बढ़ती रही। 1974 के चुनाव में जयप्रकाश जी के कहने पर चुनाव लड़े और तब से प्रारंभ हुई राजनीतिक यात्रा आज यहां तक पहुंच गई।मुख्यमंत्री बनने के बाद अब आपकी प्राथमिकताएं क्या हैं, कौन-कौन सी चुनौतियां हैं?उड़ीसा और बिहार के बाद मध्य प्रदेश तीसरा सर्वाधिक पिछड़ा राज्य है, जबकि यहां विकास की अपार सम्भावनाएं हैं। अब हम नई संरचना कर रहे हैं। इस पहले वर्ष में ही हम 2000 कि.मी. नई सड़क बनाएंगे। प्रतिवर्ष 500 मेगावाट बिजली का उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य है। हम राज्य का पिछड़ापन दूर करने और विकास के कार्यों को तेजी से पूरा करने पर जोर देंगे। प्रदेश में 7 करोड़ की लागत से नया सूचना प्रौद्योगिकी उद्यान बनने जा रहा है। इसी के साथ यहां भारत का सबसे बड़ा 5000 शैय्याओं वाला चिकित्सालय बनने जा रहा है, जो 300 करोड़ रुपए की लागत से 200 एकड़ में बनेगा।7
टिप्पणियाँ