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माटी का मन

by
Apr 7, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Apr 2004 00:00:00

डा.रवीन्द्र अग्रवालसरकारी चुग्गानई संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने किसानों को लुभाने के नाम पर “कर्ज” का नया पैकेज देने की घोषणा की है। इससे कितने किसानों का कितना लाभ होगा? और क्या केवल कर्ज उपलब्ध करा देने से गांव और किसान की मूलभूत समस्याओं का समाधान हो सकेगा? पहले कर्ज के लुभावने पैकेज की वास्तविकता को देखें। देश में लगभग 12 करोड़ काश्तकार हैं। इनमें से 4.14 करोड़ काश्तकारों के पास “क्रेडिट कार्ड” की सुविधा है। अब सरकार का लक्ष्य इस वर्ष 50 लाख और काश्तकारों को इस ऋण प्रणाली के दायरे में लाना है। इस प्रकार कुल 4.64 करोड़ किसान संस्थापगत ऋण प्रणाली के दायरे में होंगे। यह संख्या कुल काश्तकारों की संख्या से 40 प्रतिशत से भी कम है। यदि यह मान भी लिया जाए कि किसानों को केवल कर्ज उपलब्ध कराकर उसकी सभी समस्याओं का समाधान संभव है तो 60 प्रतिशत से अधिक काश्तकारों की समस्याएं तो इस उदार और लुभावने पैकेज के बाद भी जस की तस रहनी हैं।यह सही है कि किसान को यदि समय पर कृषि कार्यों के लिए ऋण मिल जाए तो उसे बहुत राहत मिलती है, परन्तु क्या इस बात का अध्ययन करने का प्रयास किया गया कि ऋण सुविधा मिलने पर किसान की समस्या का कितना समाधान हुआ? आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल और पंजाब में किसानों की आत्महत्या के जो मामले सामने आए हैं उनमें प्राय: सभी में एक बात सामान्य है- वह है किसान की ऋण ग्रसिता। इन ऋणग्रस्त किसानों में महाजन से ऋण लेने वाले किसानों के साथ-साथ संस्थागत ऋण लेने वाले किसान भी हैं। इसका सीधा-सा अर्थ है कि किसान को अकेले ऋण मिलना उसकी समस्याओं के समाधान की गारन्टी नहीं है। यही नहीं, कभी-कभी तो “क्रेडिट कार्ड” उसके लिए एक नयी समस्या बनकर आता है। राजस्थान में ऐसा ही हुआ। कुछ ट्रैक्टर विक्रेताओं ने ट्रैक्टर की बिक्री के लिए “क्रेडिट कार्ड” को माध्यम बना लिया। किसान को ट्रैक्टर की जरूरत है या नहीं, कर्ज देने के लिए उसे ट्रैक्टर खरीदवा दिया। बिना किसी जरूरत के ट्रैक्टर खरीदने पर वह “कर्जदार” हो गया।किसान को लुभाने के लिए आंध्र प्रदेश में मुफ्त बिजली का जाल फेंका गया। इस जाल में फंसा किसान कितना लाभान्वित हुआ? देश में कुल सिंचित भूमि में लगभग एक तिहाई नलकूप से सिंचित है। इसमें डीजल और बिजली से चलने वाले दोनों ही नलकूप शामिल हैं। कितने गांवों में बिजली है, यह कहने की जरूरत नहीं। थोड़े से किसानों को मुफ्त बिजली देना और शेष किसानों को महंगी दर पर डीजल खरीदने के लिए मजबूर करना क्या किसान-किसान में भेदभाव पैदा करना नहीं?संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के हर घटक में स्वयं को किसान हितैषी सिद्ध करने की होड़ लगी है। फिर रसायन उर्वरक मंत्री रामविलास पासवान इस होड़ में पीछे क्यों रहें। जिस दिन वित्तमंत्री ने किसानों के लिए कर्ज के पैकेज की घोषणा की उसी दिन उन्होंने भी किसानों को दी जाने वाली उर्वरक सब्सिडी में पांच हजार करोड़ रुपए बढ़ाए जाने की मांग की। उर्वरक पर दी जाने वाली 12,500 करोड़ रुपए की सब्सिडी को वे पर्याप्त नहीं मानते। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि अधिकांश उर्वरक की खपत हरितक्रांति वाले क्षेत्रों में ही होती है। जो खेत वर्षा पर निर्भर हैं, वे उर्वरक से दूर ही हैं। सब्सिडी बढ़ाकर उर्वरक की खपत बढ़ाने का अमरीकी सूत्र देश के लिए कितना घातक सिद्ध हुआ यह पंजाब और हरियाणा के बंजर होते खेतों से समझा जा सकता है।”यानी देश के सभी किसानों का लाभ किस बात से होगा इसको सोचने की फुर्सत किसी को नहीं है।22

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