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पाठकीय

by
Apr 7, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Apr 2004 00:00:00

अंक-संदर्भ- 6 जून, 2004

पञ्चांग

संवत् 2061 वि.,

वार

ई. सन् 2004

शुद्ध श्रावण कृष्ण 2

रवि

जुलाई

,, ,, 3

सोम

5 ,,

,, ,, 4

मंगल

6 ,,

,, ,, 5

बुध

7 “”

,, ,, 6

गुरु

8 जुलाई

,, ,, 8

शुक्र

9 “”

,, ,, 9

शनि

10 “”

कश्मीर में कब खत्म होगा

नरसंहारों का दौर?

आवरण कथा “फिर सुलगा कश्मीर” हम जैसे लोगों को भी सुलगाने वाली है। पता नहीं अब तक कितनी बार हम लोग सुलग चुके हैं, किन्तु हमारी सरकार न सुलगती है और न ही खुलकर कुछ बोल पाती है। इसी का परिणाम है कि आतंकवादी जब चाहते हैं कोई बड़ा नरसंहार कर देते हैं। पर दुर्भाग्य देखिए कि जो मीडिया भारत के किसी कोने में वर्ग विशेष से सम्बंधित किसी एक व्यक्ति की हत्या पर जो तेवर अपनाता है, वह तेवर कश्मीर से जुड़े किसी नरसंहार के प्रति ठंडा पड़ जाता है। ऐसा क्यों होता है? इसका उत्तर खोजना कोई मुश्किल काम नहीं है। बशर्ते आप निष्पक्षता के साथ एक बार सोचें। अपने आप सब कुछ सामने आ जाएगा।

-चन्द्रशेखर साहू

रघुनाथपुर, दुमका (झारखण्ड)

जम्मू-कश्मीर में नरसंहारों का दौर थम नहीं रहा है। जिस दिन घटना होती है, सरकार आतंकवादियों को कुचलने सम्बंधी बयान देती है। फिर दूसरे दिन से सब कुछ सामान्य है, ऐसा मानकर सरकार अपनी चाल पर चलती रहती है। पर आश्चर्य है कि जो लोग दिन-रात मानवाधिकार-मानवाधिकार की रट लगाते हैं, वे जम्मू-कश्मीर से सम्बंधित नरसंहारों पर अपने मुंह सिल लेते हैं। समझ नहीं आता कि ये लोग मानवाधिकारवादी हैं या कुछ और …?

-गणेश कुमार

आशियाना नगर, शेखपुरा, पटना (बिहार)

वामपंथी जाल में कांग्रेस

मंथन स्तम्भ के अन्र्तगत श्री देवेन्द्र स्वरूप का तथ्यपरक आलेख “यह बाजी सुरजीत के नाम” उस तीर के समान है, जो ठीक निशाने पर जाकर लगता है। साम्यवादियों की वैसाखी पर खड़ी कांग्रेस बिल्कुल निर्बल तथा असहाय नजर आ रही है। परन्तु विचित्र एवं हास्यास्पद तो यह है कि वामपंथियों के केवल बाहरी समर्थन के आश्वासन मात्र से ही परिस्थिति का विवेकपूर्ण आकलन किए बिना जिस तीव्रता से कांग्रेस ने सत्ता को हथियाया है, उससे सत्ता के प्रति उसकी भूख की तीव्रता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। वामपंथियों का यह अनैतिक एवं अधूरा समर्थन कांग्रेस गठबंधन सरकार को कितने समय के लिए जीवनदान दे पाएगा, इसका अनुमान लगाना कोई बहुत कठिन काम नहीं है।

-रमेश चन्द्र गुप्ता

नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)

निवर्तमान उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी की चुनाव हारने के बाद पहली पत्रकार वार्ता कार्यकर्ताओं के मनोबल को उठाने का प्रयास जैसी लगी। कार्यकर्ताओं की प्रशंसा में उन्होंने कहा कि उनके काम करने की प्रेरणा मात्र सत्ता नहीं रही, उनका जीवन भारत मां के प्रति समर्पित है। इसके अतिरिक्त उन्होंने एक बार पुन: उस हिन्दुत्व की व्याख्या की, जिसे भाजपा पिछले 6 वर्षों में तो भूल गई थी। आडवाणी जी एक सम्मानित नेता हैं। अच्छी बात है कि चुनाव हारने के तुरन्त बाद ही उन्होंने चिंतन शुरू कर दिया।

-विशाल खेड़ा

रूद्रपुर, ऊधमसिंह नगर (उत्तराञ्चल)

श्री लालकृष्ण आडवाणी ने चुनाव विश्लेषण किया है। परन्तु मेरा मानना है कि भारतीय जनता पार्टी की हार तो हुई ही नहीं है। उसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, उड़ीसा, उत्तराञ्चल, महाराष्ट्र और कर्नाटक में प्रबल समर्थन प्राप्त हुआ है। अन्य राज्यों में भाजपा स्थानीय मुद्दों के कारण हारी है।

-रमेशचन्द्र अग्रवाल

राउरवेडी, मांगलिया, इन्दौर (म.प्र.)

सही विश्लेषण नहीं

“क्यों उलट गई बाजी” शीर्षक से श्री किशोर मकवाणा की, गुजरात के चुनाव परिणामों पर समीक्षा पढ़ी। इसमें तथ्यों का सही विश्लेषण नहीं है। “बाजी उलट गई” तो तब कहा जाता, जब कांग्रेस दो-तिहाई सीटें जीत लेती। वह तो आधे से भी कम पर अटक गई।

-शिव कुमार मिश्र “रज्जन”

नई आबादी-2

मंदसौर (म.प्र.)

विचार करें!

“परिवारों में बढ़ता सत्ता संघर्ष” लेख में डा. अजित गुप्ता ने समाज में प्रचलित विभिन्न गलत धारणाओं को रेखांकित किया है। यह लेख उनकी गहरी सोच को प्रकट करता है। वास्तव में समर्पण एवं मां के रूप में स्त्री की जो गरिमा है, वह भोग्या के रूप में या अंग प्रदर्शन में नहीं है। इसलिए समाज को इस पर गहराई से विचार करना चाहिए।

-भगवत प्रसाद पटेल

खिरहनी, जबलपुर (म.प्र.)

शिक्षा मानवीय मूल्यों पर आधारित हो

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान परिषद् के निदेशक प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत का बयान समयोचित है। आज हमारे यहां जो शिक्षा दी जा रही है, वह मानवीय मूल्यों पर आधारित न होकर व्यक्तिवादी है। यही व्यक्तिवादी भावना लोगों को अवांछनीय कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। इसी से सामाजिक जीवन का पतन होता है। लोगों में मानवीय संवेदनाएं विलुप्त होती जा रही हैं और स्वार्थ की भावना पनपती जा रही है। तभी तो कुछ लोग वातानुकूलित गाड़ियों में कुत्ते को घूमाना अपनी प्रतिष्ठा मानते हैं और सड़क किनारे पड़े भूखे व्यक्ति को भोजन देने के नाम बगलें झांकने लगते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि हमारी शिक्षा पद्धति में परिवर्तन कर उसे मानवीय मूल्यों से युक्त बनाया जाना चाहिए।

-शक्तिरमण कुमार प्रसाद

श्रीकृष्णनगर, पथ सं.-10

पटना (बिहार)

गुजरात

सोनिया-लालू-पासवान

साम्यवादी हो या वी.पी. महान

गुजरात भूलने को तैयार नहीं, पर

गोधरा किसी को याद नहीं

जब मथुरा रिफाईनरी से उड़ने वाला धुआं

आगरा के ताजमहल पर

असर डाल सकता है, तो क्या

सैकड़ों निर्दोष रामभक्तों का कत्लेआम

हिन्दुओं में क्रोध नहीं भर सकता?

हिन्दुओं को पत्थर से भी

बदतर मत बनाइए

सेकुलरवादियो, अगर हो सके तो

थोड़ा मुस्लिम समाज को भी समझाइए

अगर गोधरा की घटना पर

मुस्लिम समाज रोता

तो इस देश में गुजरात नहीं होता

मीडिया और नेताओं से आग्रह है

पहले गोधरा का सत्य जनता को समझाओ

फिर गुजरात पर आओ

केवल वोट के लिए

एक पक्ष की बात बेमानी है

विचार कीजिए

क्या हम सच्चे “हिन्दुस्थानी” हैं?

-राजेश “चेतन”

126, माडर्न अपार्टमेन्ट्स, सेक्टर-15

रोहिणी, नई दिल्ली -85

सूक्ष्मिका

कप और कुल्हड़

“दल-बदल”

श्वेत कपों की अपेक्षा

सौंदर्यहीन

मिट्टी का कुल्हड़

कहीं अधिक अच्छा है

जो…

एक के होठों से

लगता है

और…

एक का ही होकर

टूट जाता है।

-डा. गोविन्द “अमृत”

स्टेशन रोड, पो.-पेन्ड्रा रोड,

जिला- बिलासपुर-495117 (छत्तीसगढ़)

पुरस्कृत पत्र डिब्बे का “ठेका”

रेलगाड़ियों में अनधिकृत रूप से तरह-तरह की वस्तुएं बेचने वाले लोग आम यात्रियों के साथ कैसा दुव्र्यवहार करते हैं, इसका एक उदाहरण मैं यहां बता रहा हूं। बात गत 10 जून की है। मैं जम्मूतवी- सियालदह एक्सप्रेस (3152 डाउन) से बरेली जाने के लिए नजीबाबाद जं. से सामान्य श्रेणी के डिब्बे में बैठा। लगभग साढ़े दस बजे रेलगाड़ी स्टेशन से चली। मुरादाबाद तक सब कुछ ठीक-ठाक था। मुरादाबाद से जब गाड़ी चलने लगी तभी सुरमा बेचने वाला एक लड़का हमारे डिब्बे में सवार हुआ। पहले तो उसने सुरमा बेचने का नाटक किया फिर लाटरी का खेल शुरू किया। बड़े पुरस्कार उसके साथ आए और छुपकर बैठे लड़के लेते रहे, जिसे देखकर भोले-भाले यात्री भी लालच में फंस गए। पहले-पहले तो दांव पर मोटी राशि और कीमती सामान रखा गया। यह देखकर कुछ और यात्री भी उसके खेल में शामिल हो गए। फिर क्या था। लाटरी के नाम पर लूटपाट शुरू हो गई। लूटपाट चल ही रही थी कि ऊपरी शैया पर बैठे कुछ लड़कों ने उनका विरोध किया। इस पर सामान बेचने वाला बिगड़ गया और उनको गालियों के साथ-साथ धमकी भी देने लगा। विरोध करने वाले लड़के कुछ डर गए। वे लड़के, जो वैष्णो देवी की यात्रा से लौट रहे थे, जय भवानी के नारे लगाने लगे। सहयात्री भी उनके साथ हो गए। सामान बेचने वाले भी दस-पन्द्रह के समूह में एकत्र हो गए और यात्रियों को एकजुट होते देख धमकी देने लगे कि इस डिब्बे का “ठेका” हम लोगों के पास है और तुम लोगों को आगे के स्टेशनों पर देख लेंगे। बात बढ़ ही रही थी कि तभी रामपुर स्टेशन आ गया। वहां वे लोग उतरे और रेलवे पुलिस के कुछ जवानों से बात करने लगे। मैंने अन्य यात्रियों के साथ उन लाटरी वालों को पुलिस वालों को पैसे देते हुए देखा, जिससे “ठेके” की बात पुख्ता साबित होती है। जब रेलगाड़ी रामपुर से चलने को हुई तो वे सभी लाटरी वाले हमारे डिब्बे की छत पर बैठ गए। अन्दर बैठे सभी यात्री भयभीत थे। वे सभी अपने सामान और बच्चों की सुरक्षा में लग गए कि न जाने वे दहशतगर्द कब डिब्बे में आ जाएं और मारपीट शुरू हो जाए। वैष्णो देवी से लौट रहे नवयुवकों ने भी हाकी की छड़ी, क्रिकेट के बल्ले आदि निकाल लिए। रामपुर से लेकर बरेली के पहले तक उस डिब्बे के सभी यात्री तब तक भारी तनाव में रहे जब तक कि वे दहशतगर्द एक छोटे से स्टेशन पर उतर नहीं गए। वास्तव में यदि विरोध करने वाले यात्री संख्या में कम होते तो निश्चित रूप से कुछ अनहोनी घटना घट सकती थी।

इस घटना से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उन अपराधी तत्वों के हौंसले बुलन्द क्यों रहते हैं। उन्हें “ठेके” कौन देता है? रेल मंत्री लालू यादव इन तत्वों से कड़ाई से निपटें।

-कुमुद कुमार ए-5, आदर्श नगर, नजीबाबाद, बिजनौर (उ.प्र.)

हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रु. का पुरस्कार दिया जाएगा।सं.

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