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मेरी सास, मेरी मां
मेरी बहू, मेरी बेटी
जब भी सास- बहू की चर्चा होती है तो लगता है इन सम्बंधों में सिर्फ 36 का आंकड़ा है। सास द्वारा बहू को सताने, उसे दहेज के लिए जला डालने के प्रसंग एक टीस पैदा करते हैं। लेकिन सास-बहू सम्बंधों का एक यही पहलू नहीं है। हमारे बीच में ही ऐसी सासें भी हैं, जिन्होंने अपनी बहू को मां से भी बढ़कर स्नेह दिया, उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। और फिर पराये घर से आयी बेटी ने भी उनके लाड़-दुलार को आंचल में समेट सास को अपनी मां से बढ़कर मान दिया। क्या आपकी सास ऐसी ही ममतामयी हैं? क्या आपकी बहू सचमुच आपकी आंख का तारा है? पारिवारिक जीवन मूल्यों के ऐसे अनूठे उदाहरण प्रस्तुत करने वाले प्रसंग हमें 250 शब्दों में लिख भेजिए। अपना नाम और पता स्पष्ट शब्दों में लिखें। साथ में चित्र भी भेजें। प्रकाशनार्थ चुने गए श्रेष्ठ प्रसंग के लिए 200 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।
देवालय तुल्य घर-आंगन
डा. मधु जोशी
डा. मधु जोशी अपनी सासू मां
श्रीमती कौशल्या जोशी के साथ
अन्तर्जातीय विवाह होते हुए भी आशा के विपरीत मेरी सासू मां ने मुझे मन से स्वीकारा और एक बेटी की तरह प्यार किया। जब मैंने और मेरे पति डा. अनिल जोशी ने अपना “नर्सिंग होम” शुरू करने का फैसला किया तो मेरी सासू मां (श्रीमती कौशल्या जोशी) ने हमारे फैसले का पूरी तरह से समर्थन किया। यह सच जानते हुए भी कि हम दोनों मरीजों के साथ उलझे रहेंगे तो बच्चों को कौन देखेगा। मां ने ही चुटकियों में हमारी समस्या सुलझा दी। बच्चों को संभालने का दायित्व अपने उपर ले लिया। हम अपने कार्य में व्यस्त हो गए और मां बच्चों की परवरिश में जुट गईं। अगर वह हमारा सहयोग नहीं करतीं तो शायद हम कुछ न कर पाते।
मां एक अच्छी सास होने के साथ-साथ एक अच्छी इंसान भी हैं। वे अक्सर कहती हैं कि यदि तुम्हें किसी रोगी का इलाज नि:शुल्क भी करना पड़े तो हिचकिचाना मत। उन्होंने मुझे हमेशा एक बेटी की तरह समझा।
उनकी करुणा और प्यार को स्मरण कर मेरा मन आज भी भाव-विभोर हो उठता है। मेरी सास ने एक मां जैसा प्यार दिया। उनका ऋण शायद मैं कभी नहीं चुका पाऊंगी। पर कोशिश करती हूं, उनके जैसी प्रकृति में खुद को ढाल संकू।
डा. मधु जोशी
जोशी नर्सिंग होम
पीर खाना रोड़, खन्ना
जिला लुधियाना, पंजाब
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