मुशर्रफ पर दूसरा जानलेवा हमला
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मुशर्रफ पर दूसरा जानलेवा हमला

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Apr 1, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Apr 2004 00:00:00

अमरीका और पश्मिचम को प्रभावित करने के लिए सोची-समझी चाल भी हो सकती है

-लेफ्टिनेंट जनरल (से.नि.) शंकर प्रसाद

रक्षा विश्लेषक

एक पखवाड़े में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ पर दो बार जानलेवा हमले हुए और दोनों बार वे बच गए। इन हमलों से कुछ स्पष्ट संकेत हमें मिलते हैं। जैसे पाकिस्तान में कट्टरपंथी यह बिल्कुल नहीं चाहते कि आतंकवाद खत्म हो। और यह सच है कि पाकिस्तान में आतंकवादियों के अभ्यारण्य हैं। कट्टरपंथी यह नहीं चाहते कि ये अभ्यारण्य ध्वस्त कर दिए जाएं। इस समय राष्ट्रपति मुशर्रफ एक तरह से दोराहे पर खड़े हैं। उन पर अमरीका का बहुत दबाव है कि आतंकवाद को खत्म किया जाए। अमरीका को खुश करने के लिए मुशर्रफ कहते हैं कि हम आतंकवाद खत्म करेंगे, भारत के साथ दोस्ती करेंगे और सीमा पार आतंकवाद बंद करेंगे। लेकिन पाकिस्तानी कट्टरपंथी कुछ और ही चाहते हैं। वे चाहते हैं कि भारत में खून-खराबा चलता रहे।

अब इस्लामाबाद में दक्षिण एशियाई देशों का शिखर सम्मेलन होने वाला है। इसलिए भी मुशर्रफ पर बाहरी दबाव कुछ ज्यादा है। अमरीकी दबाव में पिछले दिनों उन्होंने बयान भी दिए। उन्होंने कहा था कि वे कश्मीर में जनमत संग्रह की बात नहीं करेंगे, लेकिन अगले ही दिन उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया। इससे स्पष्ट हो जाता है कि मुशर्रफ अमरीका और इस्लामी कट्टरपंथियों दोनों के दबाव में हैं। अमरीका के दबाव में उन्होंने जनमत संग्रह न कराने की बात कही और कट्टरपंथियों के दबाव में उस बात से मुकर गए।

यह तो पूरी दुनिया को मालूम है कि आतंकवाद की जड़ें पाकिस्तान में हैं और हो सकता है कि ओसामा बिन लादेन भी पाकिस्तान में ही कहीं न कहीं हो। अगर वह पाकिस्तान में है तो यह मानना बहुत मुश्मिकल है कि राष्ट्रपति मुशर्रफ को इसकी जानकारी नहीं हो। वह दिन भी आ सकता है, जब अमरीका मुशर्रफ पर दबाव डाले कि सद्दाम हुसैन को हमने पकड़ लिया है, अब आप ओसामा बिन लादेन को पकड़वाइए या फिर भरोसा दिलाइए कि उसे पकड़वाने में हमारी मदद करेंगे।

मुशर्रफ की स्थिति काफी कमजोर होती दिखाई दे रही है। हालांकि सेना पर अभी उनका पूरा नियंत्रण है, लेकिन इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि सेना के 6-7 कोर कमांडरों में से एकाध उनके खिलाफ हों, क्योंकि हर कोर कमांडर पदोन्नति चाहता है, सेनाध्यक्ष बनना चाहता है। लेकिन मुशर्रफ के सेनाध्यक्ष पद पर रहते हुए तो यह सम्भव नहीं है। हालांकि उन्होंने घोषणा की है कि वह दिसम्बर, 2004 तक सेनाध्यक्ष का पद छोड़ देंगे। लेकिन वास्तव में वे यह पद छोड़ते हैं या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा। क्योंकि पाकिस्तान में सेनाध्यक्ष का पद बहुत शक्तिशाली होता है। अगर उन्होंने यह पद छोड़ा तो उनकी ताकत काफी कम हो जाएगी। उनका तख्ता पलट भी हो सकता है।

इस संदर्भ में एक और बात उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी सेना में आने वाले नए अधिकारियों में अनेक कट्टरपंथी हैं। वे चाहते हैं कि मुशर्रफ को हटाया जाए। इस प्रकार मुशर्रफ की हालत बहुत खराब है और दक्षेस शिखर सम्मेलन के लिए उन्हें कई काम करने हैं। जिससे वहां उनका प्रभाव बना रहे। राष्ट्रकुल देशों में पाकिस्तान को प्रवेश नहीं मिला, क्योंकि यू.के. ने उसका समर्थन नहीं किया। इसका कारण पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन देना है।

इन दोनों प्राणघाती हमलों में मुशर्रफ बच गए, क्योंकि उनकी सुरक्षा पंक्ति काफी मजबूत है। ऐसा लगता है कि उनकी सुरक्षा में अमरीका भी मदद करता है। यह भी संभव है कि अमरीकी सुरक्षा अधिकारी मुशर्रफ के निजी सुरक्षा दल में शामिल हों, क्योंकि अमरीका भी नहीं चाहता कि मुशर्रफ दृश्य पटल से हट जाएं। यह पाकिस्तान, अमरीका, आतंकवाद विरोधी अभियान और भारत के लिए अच्छा नहीं होगा। मुशर्रफ कम से कम दोनों तरफ की बात सुन तो रहे हैं। दिल से भले ही कुछ और सोचें, कुछ और करने की ठानें लेकिन बाहरी तौर पर वे भारत की तरफ मित्रता का हाथ बढ़ा ही रहे हैं। हमें मुशर्रफ के पैंतरों से बहुत सावधान रहना होगा। उनकी बातों का भरोसा करना मुश्मिकल है। मुशर्रफ खुद कट्टरपंथी हैं, और पिछले चार वर्ष से आतंकवाद उनकी ही छत्रछाया में फल-फूल रहा है। लेकिन अब अमरीका की नजरें इराक में सद्दाम हुसैन के बाद पाकिस्तान की ओर लगी हैं, क्योंकि दुनियाभर के कट्टरपंथी जिहादियों का गढ़ तो पाकिस्तान ही है। इन हमलों में एक आशंका और भी उभरकर आती है कि कहीं अपने पक्ष में प्रचार पाने के लिए ये हमले स्वयं मुशर्रफ ने ही तो नहीं कराए। सहानुभूति पाने के लिए वे ऐसा कर सकते हैं। हो सकता है कि ये हमले कराकर वे अमरीका को जताना चाहते हों कि मैं आतंकवाद के विरुद्ध खड़ा होना चाहता हूं लेकिन स्वयं मेरी जान खतरे में है। फिलहाल उनकी स्थिति पर यह कहावत ठीक बैठती है-“भई गति सांप-छछूंदर केरी। (वार्ता पर आधारित) (लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद इन्फैंट्री के पूर्व महानिदेशक, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एन.एस.जी.) के पूर्व ब्रिगेडियर इंचार्ज और नेशनल एंटी हाइजैक फोर्स के पूर्व कमांडर रहे हैं।)

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