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अनंत पै 75 के हुएबच्चों के प्यारे चाचाअपने देश में अपने संस्कार फैलाने वाले ऋषि-मुम्बई प्रतिनिधिअगर अनंत पै अमरचित्र कथा शुरू नहीं करते तो हम क्या करते? एक अजीब-सा सवाल है लेकिन मैं भरोसे के साथ कह सकता हूं कि उस स्थिति में हम अभी भी। हरकुलिस, हैरी पोटर आर्चिस वगैरह-वगैरह ही पढ़ते होते।बच्चे टीवी पर क्या देखते हैं, उन्हें क्या देखना चाहिए, क्या नहीं देखना चाहिए, इस पर गंभीरता से चर्चा करने की आवश्यकता है। टीवी की वजह से आज बच्चों की किताबें पढ़ने की आदत ही छूट गयी है। बच्चों में अध्ययन-संस्कृति का विकास कैसे हो, इस पर गहरा मंथन होना जरूरी है। क्या करें, घर में आते ही बच्चे टीवी के सामने बैठ जाते हैं। मुश्किल से स्कूल की पढ़ाई करते हैं। पर कहानी या अन्य सामान्य ज्ञान की किताबों को हाथ तक नहीं लगाते। घर से लेकर विद्वान शिक्षाविदों तक यह चर्चा हम सुनते, पढ़ते हैं। पर बिल्ली के गले में घंटी लटकाये कौन? बच्चों में पढ़ने की अभिरुचि बढ़े, यह किसकी जिम्मेदारी है? सरकार की या समाज की? या समाज के हर घटक की? इस बात पर चर्चा होती रहती है। पर अपेक्षानुरूप उसका कभी हल निकलता ही नहीं। सिर्फ जिम्मेदारी टालने का खेल होता है।पर यह मेरा काम है। बच्चों में अच्छे संस्कार हों, इसकी जिम्मेदारी और किसी की हो न हो, मेरी जरूर है और उसके लिए मैं भरसक प्रयत्न करता रहूंगा, इस दृढ़ निश्चय से काम करने वाले व्यक्तित्व विरले ही होते हैं। ऐसे श्रेष्ठ व्यक्तियों में से एक हैं, चाचा पै या अनंत पै। भारत की सभी भाषाओं में पढ़ने वाले बच्चों को हमारी प्राचीन एवं गौरवशाली संस्कृति का परिचय करा देने वाला कोई एक व्यक्ति है तो वह हैं अनंत पै। पिछले लगभग 37 सालों से चल रहा उनका “ज्ञानयज्ञ” आज पहले जैसी ही फुर्ती से धधक रहा है। न यज्ञ खंडित हुआ है न इस यज्ञ का ऋषि हताश-निराश हुआ, न थका-हारा और न ही यश के पायदानों पर चढ़ते-चढ़ते उनके पैर जमीन से ऊपर उठ गये। अनंत पै आज भी उतने ही सादेपन से जिंदगी गुजारते हैं जितना वे लगभग 60-65 साल पहले थे। अपने जीवन का ध्येय अगर निश्चित हो और ध्येय प्राप्ति के लिये हर कष्ट उठाने की तैयारी हो तो मनुष्य क्या कुछ नहीं कर सकता, इसकी एक जिंदा मिसाल चाचा पै ने कायम की है।गत 17 सितम्बर को मुम्बई में श्री अनंत पै के 75वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में अभिनंदन समारोह आयोजित हुआ। समारोह में उपस्थित गण्यमान्यजन (बाएं से) इंडिया बुक हाउस के श्री दीपक मीरचंदानी, प्रसिद्ध लेखिका श्रीमती शोभा डे, प्रसार भारती के अध्यक्ष श्री एम.वी.कामत, श्री अनन्त पै तथा श्री सुब्बा राव।श्री अनंत पै एवं श्रीमती ललिता पै-अनंत लालित्य का संगमश्री अनंत पै के अभिनंदन समारोह में मुम्बई के एक अनाथालय के बच्चे कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुएभारत के बच्चे केवल दो ही चाचाओं को जानते हैं। पहले चाचा नेहरू और दूसरे चाचा पै। आज चाचा पै की लोकप्रियता का आलेख चाचा नेहरू से भी ऊंचा हो तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। चाचा पै अब 75 साल के हो गये इस बात पर सहज विश्वास नहीं होता। जब मैं उनसे मिलने उनके दफ्तर गया तब दोपहर के लगभग चार बज चुके थे। जिसका कार्यालय सुबह साढ़े आठ बजे खुलता हो उसके लिये वह घर जाने का समय होता है। पर अनंत पै इतने फुर्तीले दिख रहे थे मानो वह मेरे साथ ही कार्यालय में पधारे हों। उनका बच्चों जैसा उत्साह देखकर विश्वास ही नहीं होता कि यह आदमी 75 की दहलीज पर खड़ा है। कहां से लाते हैं वे इतना उत्साह और फुर्ती? आंखें मूंदकर और हल्के से हंसते हुए वे स्वयं ही कह देते हैं, “बच्चों में रहकर।”और अनंत पै की सहधर्मिणी श्रीमती ललिता पै का जिक्र किए बिना सब कुछ अधूरा रहेगा। ललिता जी सिंध से हैं और अनंत जी कर्नाटक से। फिर भी दोनों का दाम्पत्य जीवन 200 प्रतिशत एकरूपता और सामंजस्य के साथ बच्चों के लिए समर्पित रहा है।अनंत पै का जन्म कर्नाटक के तटवर्ती इलाके में कारवार के पास कार्कल गांव में हुआ। पर केवल 2-3 वर्ष की उम्र में ही वे अपने माता-पिता खो बैठे और फिर शिक्षा के लिये उन्हें मुंबई आना पड़ा। मुंबई में उनके चचेरे भाई आय.एम. तथा मंजूनाथ पै ने उन्हें अपने पास रखकर पढ़ाया-लिखाया। बचपन से मेधावी छात्र रहे अनंत पै ने इस अवसर का पूरा लाभ उठाया। केवल कारवारी या कन्नड़ जानने वाले अनंत ने मुंबई आकर मराठी, हिंदी तथा अंग्रेजी पर हुकूमत हासिल की। मुंबई के ओरिएंट हाईस्कूल में उन्हें मराठी के विख्यात साहित्यकार पु.ल.देशपांडे अंग्रेजी पढ़ाते थे। अनंत पै को बचपन से ही लेखक, कलाकार, चित्रकार होने की इच्छा थी। पर अपने चचेरे भाई की इच्छा के अनुरूप वे बीएससी और फिर केमिकल टेक्नालॉजी में बी.टेक हुए। पर वे इस क्षेत्र में रमे नहीं। उनके अंतर्मन की पुकार थी कि उनका क्षेत्र यह नहीं बल्कि लेखक, चित्रकार जैसी कला का क्षेत्र है। उन्होंने केवल 18 की उम्र में एक कन्नड़ कादंबरी लिखी। मानव नाम से एक पत्रिका का संपादन भी उन्होंने कुछ समय किया। इसी राह पर चलते हुए वह टाइम्स आफ इंडिया में पहुंचे। वहां पर श्री आर.एन.शुक्ला के साथ उन्होंने इंद्रजाल कॉमिक्स पर काम किया। इंद्रजाल कॉमिक्स पर अपार लोकप्रियता में अनंत पै का बड़ा हाथ रहा। 1961 से 1967 तक अनंत पै टाइम्स आफ इंडिया में रहे।इस दरम्यान का प्रसंग उन्हें अपने ध्येय की ओर खींच ले गया। एक कार्यक्रम में बच्चों से पूछा गया कि, श्रीराम की मां का नाम क्या था? एक भी बच्चा इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सका। थोड़ी देर बाद उनसे ओलम्पिक पर्वत पर रहने वाले किसी देवता का नाम पूछा गया। सवाल पूछते ही अनेक बच्चों ने उत्तर के लिये हाथ ऊपर किए। इस घटना से अनंत पै बहुत ही दु:खी हुए। भारत के बच्चे भगवान श्रीराम के बारे में कुछ नहीं जानते और ग्रीस संस्कृति के बारे में बहुत कुछ जानते हैं। यह तथ्य उन्हें कोसने लगा। ऐसा ही दूसरा प्रसंग हुआ जिसमें बच्चों के स्कूल में जो पाठ था उसमें डफोडिल की सुंदरता का वर्णन करने वाली कविता थी तथा लंदन में जाकर बड़ा आदमी होने के सपने देखने वाले किसी रॉबर्ट की कहानी थी। यह बात भी उन्हें हजम नहीं हुई। इसके बाद भारतीय संस्कृति, भारतीय सभ्यता की झलक दिखाने वाली कहानी, कविता बच्चों को क्यों नहीं सिखायी जाती इस प्रश्न से उनकी खोज शुरू हुई जो अमर चित्रकथा श्रंृखला में परिवर्तित हुई। 1967 में श्री पै की अमर चित्रकथा का पहला चरित्र नायक “भगवान श्रीराम” प्रकाशित हुआ। 37 साल बाद भी वह सिलसिला जारी है। 445 से भी ज्यादा महानुभावों पर उन्होंने कथाएं लिखीं और उन पर चित्र निकालकर बच्चों के सामने प्रस्तुत किए।चाचा पै बताते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण पर निकाली पुस्तक की बिक्री सबसे ज्यादा हुई है। श्रीकृष्ण की अब तक 12 लाख किताबें बिक चुकी हैं। आज तक बिकी अमर चित्रकथा की पुस्तकों ने कितने कीर्तिमान बनाए इसकी, गिनती भी नहीं की जा सकती। एक मोटे अनुमान के अनुसार आज तक अमर चित्रकथा की लगभग साढ़े आठ करोड़ पुस्तकें बिकी हैं। अमर चित्रकथा देश-विदेश की 38 भाषाओं में प्रकाशित हुई हैं। इनमें लेपचा, बोडो, तिब्बती, हलबी जैसी भारतीय जनजातियों की भाषाओं से लेकर जर्मन, फ्रेंच, स्पेनिश, फिजी, स्वाहिली, नेपाली, जापानी, बहासा, मलय आदि विदेशी भाषाएं भी हैं। अनंत पै की विशेषता यह है कि उन्होंने हमेशा भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का परिचय बच्चों को करा देने का प्रयत्न किया। बदलते जमाने को पहचानते हुए उन्होंने अपने माध्यम को बदलने का लचीलापन भी दिखाया है। अमर चित्रकथा को अब सीडी तथा डीवीडी पर लाने की समझदारी उन्होंने दिखाई है। आज 75 वें साल में भी 7 साल के बच्चे जैसा उनका उत्साह देखकर मन अचंभित हो जाता है।32
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