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पाठकीय

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Mar 10, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Mar 2004 00:00:00

अंक-संदर्भ, 5 सितम्बर, 2004पञ्चांगसंवत् 2061 वि., वार ई. सन् 2004 आश्विन कृष्ण 5 रवि 3 अक्तूबर ,, ,, 6 सोम 4 अक्तूबर ,, ,, 7 मंगल 5 अक्तूबर ,, ,, 8 बुध 6 अक्तूबर ,, ,, 9 गुरु 7 अक्तूबर ,, ,, 10 शुक्र 8 अक्तूबर ,, ,, 10 शनि 9 अक्तूबर हुबली का चेनम्मा मैदानसेकुलरों के लिए राजनीतिक अखाड़ा”हुबली का सच” श्री डी.एच.शंकरमूर्ति का यह लेख बहुत ही तार्किक और वास्तविक जानकारी पर आधारित था। लेख यह सिद्ध करता है कि भारतीय राजनीति “वोट” के चक्कर में किस तरह मजहब को भुनाती है। लेकिन हमें अपने देश और राष्ट्रध्वज तिरंगे की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। पुलिस गोलीबारी में शहीद हुए देशभक्तों को मेरा शत्-शत् नमन!-ताबीर हुसैन “बेताब”नवापारा, राजिम (छत्तीसगढ़)पुरस्कृत-पत्रप्रेमचंद का अपमानहाल ही में दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर प्रेमचंद के बहुचर्चित उपन्यास “गोदान” पर आधारित एक टेलीफिल्म दिखाई गई। इसका प्रसारण समय, इस पर किया गया व्यय तथा उसमें निर्माता-निर्देशक गुलजार के योगदान को देखकर, यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि इस सारी प्रक्रिया का उद्देश्य क्या था? किसी साहित्यिक कृति पर टेलीफिल्म बनाने की बात अपने-आप में महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय है। किन्तु यह कार्य किस प्रकार हो रहा है, और वह अपने उद्देश्य में कहां तक सफल होगा, यह प्रश्न भी विचारणीय है। गोदान पर टेलीफिल्म बनाने के लिए गुलजार को चुना गया, किन्तु उनके नाम पर जो कुछ देखने को मिला, उसने भी कम निराश नहीं किया।पहली बात तो यही अखरी कि गोदान और उसकी कहानियों पर बने चित्रों का प्रसारण प्रेमचंद के जन्म दिवस 30 जुलाई से ही क्यों नहीं प्रारम्भ किया गया, उसके लिए नौ दिन बाद की तिथि ही क्यों मिली? और इससे भी बढ़कर आपत्ति की बात यह है कि गोदान का प्रसारण रात 10 बजे से किया गया। रात 10 बजे से साढ़े बारह बजे तक जागकर गोदान देखने वाले कितने बचे होंगे? यह सहज ही समझा जा सकता है। लगता है कि प्रेमचंद को दिखाने की औपचारिकता मात्र होनी थी, जो हो गई।इस औपचारिकता के पीछे कोई षड्यंत्र भी सम्भव है। कुछ ही दिन पहले दूरदर्शन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा था कि साहित्यिक कृतियों को दूरदर्शन पर प्रसारित करने के लिए सौ करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। यद्यपि यह ज्ञात नहीं हो पाया कि यह राशि किस अवधि में, किस-किस साहित्यकार की किन रचनाओं के लिए दी गई है, किन्तु सम्भावना यही है कि प्रेमचंद की रचनाओं के लिए, किसी भी दृष्टि से, अनुपात से कम धन आवंटित नहीं किया गया होगा। यही कारण है कि उनकी कहानियों के लिए धारावाहिकों का उत्तरदायित्व किसी “साधारण” निर्देशक को नहीं सौंपा गया- चुनकर अनुभवी एवं विख्यात निर्देशक को लाया गया। किन्तु आशा के विपरीत, जो टेलीफिल्म बनकर तैयार हुई, उसने बहुत निराश किया। पात्रों के चयन से लेकर, गांव के वातावरण और चरित्र-चित्रण तक, लगा सभी कुछ मात्र करने के लिए कर दिया गया। पात्रों का चयन करते समय गुलजार का सारा ध्यान कलाकार के व्यक्तिगत कौशल एवं अनुभव पर ही केन्द्रित रहा, चरित्र की व्यक्तिगत मांग की ओर गया ही नहीं। सम्भवत: यही कारण है कि होरी तथा धनिया के लिए उन्होंने पंकज कपूर तथा सुरेखा सीकरी को चुना। किन्तु गुलजार यहां एक बात पूरी तरह भूल गए कि होरी एक गरीब किसान है, जो बाद में भूख और अत्यधिक श्रम के कारण दम तोड़ता है। ऐसे चरित्र के लिए पंकज कपूर जैसे दोहरे बदन वाला कलाकार किसी भी दृष्टि से उपयुक्त नहीं था।गांव के वातावरण की बात की जाए तो लगेगा कि गुलजार ने सम्भवत: कभी कोई गांव देखा ही नहीं…। तब किसान की गरीबी क्या होती थी, यह बात वह सपने में भी नहीं सोच पाए। इसीलिए गुलजार के “गोदान” में सभी गांव वाले सफेद धोतियों में दिखाई दिए। पश्र्व-संगीत के नाम पर लगभग निरन्तर जोर-जोर से कुत्ते भौंकने और मुर्गियों के बोलते रहने का स्वर सुनाई देता रहता है। कुल मिलाकर, भले ही दूरदर्शन को साहित्य कृति की ओर ध्यान देने का यश मिल जाए और गुलजार को प्रचुर धन-लाभ हुआ हो, दर्शकों को तो कोई लाभ नहीं हुआ। हां, प्रेमचंद को अकारण यह अपमान क्यों झेलना पड़ा? यह प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाएगा।-डा. सीतेश आलोकप्राचार्य निवासइन्द्रप्रस्थ कालेज, दिल्ली-54हुबली प्रकरण की असलियत जानी। इससे पहले लगता था कि किसी ईदगाह मैदान पर उमा भारती जबरदस्ती झंडा फहराना चाहती थीं लेकिन अब उद्देश्य स्पष्ट हो गया। कांग्रेस राष्ट्र-विरोधी बातें कर रही है। उसे सावरकर की देशभक्ति दिखाई नहीं देती, संघ का आजादी की लड़ाई में योगदान नहीं दिखाई देता, जबकि स्वयं गांधी जी व नेहरू जी की सुरक्षा संघ ने की थी। वे संघ के ही कार्यकर्ता थे, जिन्होंने समय रहते पाकिस्तानी षड्यंत्र बेनकाब करके दिल्ली की रक्षा की थी अन्यथा कांग्रेस और कांग्रेसी कहां होते और क्या करते। इसलिए देशवासियों को संगठित होकर इन प्रयासों का प्रतिकार करना पड़ेगा।-डा. नारायण भास्कर50, अरुणा नगर, एटा (उ.प्र.)तिरंगा फहराने के आरोप में साध्वी उमा भारती का जेल जाना ब्रिटिश हुकूमत की याद दिला देता है, क्योंकि उस समय कोई भी व्यक्ति तिरंगा फहराता था तो अंग्रेज उसे अपने ऊपर हमला समझकर कारावास भेज देते थे। लेकिन जब वहीं कार्रवाई स्वतंत्र भारत में हो तो उसे क्या कहा जाए?-शक्तिरमण कुमार प्रसादश्रीकृष्णानगर, पटना (बिहार)हुबली स्थित रानी चेनम्मा मैदान में तिरंगा फहराना अपराध नहीं है। कांग्रेस हिन्दू-विरोधी अभियान के तहत जो गलतियां कर रही है, उनका परिणाम तो उसे भुगतना ही पड़ेगा। पहले से ही अर्जुन सिंह और मणिशंकर अय्यर जैसे वरिष्ठ मंत्रियों ने अपने बयानों से हिन्दुओं को आहत कर रखा था और अब इस मुद्दे ने तो हिन्दुओं को सजग कर दिया है। हिन्दू अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा अवश्य करेंगे।-मनीष शर्माकनखल, हरिद्वार (उत्तराञ्चल)साध्वी उमा भारती ने राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान की रक्षा के लिए मुख्यमंत्री का पद त्यागकर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। यह विडम्बना ही है कि तिरंगा फहराने के अपराध में एक देशभक्त को जेल भेजा जाता है, वहीं कश्मीर में पाकिस्तानी झंडा फहराने वालों के प्रति ढुलमुल नीति अपनाई जाती है।-दिनेश गुप्तकृष्णगंज, पिलखुवा,गाजियाबाद (उ.प्र.)इस महान राष्ट्र की लोकतांत्रिक सरकारों पर तरस आता है। यहां पाकिस्तानी ध्वज फहराना, भारतीय ध्वज जलाना और भारत माता को “डायन” कहना अपराध नहीं, बल्कि भारतीय ध्वज फहराना अपराध है। जबकि इस पवित्र तिरंगे की शान के लिए हजारों क्रांतिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। वास्तव में यह दु:खद स्थिति है।-सूर्य प्रताप सिंह सोनगराडाक-कांडरवासा-457222 (म.प्र.)हुबली प्रकरण के सम्बंध में मन में अनेक प्रकार के प्रश्न थे। परन्तु इस अंक से सभी प्रश्नों के उत्तर मिले। वास्तव में यह अंक संग्रहणीय है। स्वतंत्र भारत की यह पहली घटना है कि किसी को तिरंगा फहराने के आरोप में जेल भेजा गया।-बृज कुमार शर्मामहेन्द्र निकेतन,जौरा अलापुर, मुरैना (म.प्र.)क्या सेकुलर तालिबान यह बताएंगे कि राष्ट्रीय ध्वज, जो राष्ट्रीय सम्मान और स्वाभिमान का प्रतीक है, उसे फहराने से एक वर्ग विशेष की भावनाएं क्यों आहत होती हैं? अथवा किसी सार्वजनिक स्थान पर राष्ट्र ध्वज फहराना अपराध क्यों है?वास्तविकता यह है कि रानी चेनम्मा मैदान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने पर एतराज मुसलमानों को नहीं था, बल्कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को था, जो उन्हें मोहरा बनाकर अपना मुस्लिम वोट बैंक सुदृढ़ करने का खेल-खेल रही थी।-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)हुबली प्रकरण से एक बार पुन: यह साबित हो गया कि कांग्रेस अपने आपको सेकुलर, देशप्रेमी और न जाने कितने गुण अपने लिए बताती है, उनमें से एक भी उसके पास नहीं है। वह सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक के लिए वर्षों से इस मैदान का उपयोग कर रही है। अब तो उसके साथ कम्युनिस्ट भी आ गए हैं।-आर.एन. अन्हालेपाटबंधारेनगर, नांदेड़, (माहाराष्ट्र)तिरंगा ध्वज फहराने के लिए अपनी जान देने वालों की एक लम्बी सूची है। पर अभी भी हमारे यहां कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें तिरंगा फहराना अच्छा नहीं लगता। इसी मानसिकता के कारण साध्वी उमा भारती को कटघरे में खड़ा किया गया। पर उमा जी ऐसे लोगों के ऊपर भारी पड़ रही हैं।-सैयद जाफर हसन बेलग्रामीग्रा व पो.-सेमरीजिला- रोहतास (बिहार)फर्क संप्रग और राजग मेंगैर जमानती वारंट जारी होते ही म.प्र. की मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती ने पद- त्याग कर दिया। इसे कहते हैं नैतिक मूल्यों का पालन करना। पर संप्रग सरकार के कई दागी मंत्री गंभीर आरोपों के बाद भी अपने पद पर जमे हुए हैं। इसके कारण संसद अभी तक भी सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है। यही फर्क है संप्रग और राजग के नेताओं में।-विशाल कुमार जैन1/2096, गली. सं.-21पूर्वी रामनगर, शाहदरा (दिल्ली)षड्यंत्र”सोनिया-वामपंथी सरकार ने थोपा जजिया” शीर्षक से प्रकाशित रपट आंखें खोलने वाली है। सैन्य अधिकारियों एवं सैनिकों को धार्मिक प्रतीक चिन्हों के प्रयोग से रोकना कतई उचित नहीं है। अवश्य कोई षड्यंत्र है। इस प्रकार का हिन्दू-विरोधी नीतिगत प्रहार तो कोई अभारतीय ही कर सकता है।-श्रीनिवास प्रसादमहाराणा प्रताप नगर, आरा (बिहार)साधुवाद!श्री भगीरथ चौधरी का आलेख “सब बाबा की किरपा” पढ़ा। इसमें अमरनाथ यात्रा से सम्बंधित अच्छी जानकारी मिली थी। लेखक को साधुवाद! अमरनाथ यात्रा के बारे में और सुधार हो तो अच्छा रहेगा। इसके लिए जो भी लोग कार्य कर रहे हैं, उनसे यही अपेक्षा है कि वे अमरनाथ यात्रा को और अधिक सुगम बनाने का यथासंभव प्रयास करें।-इन्दुप्रकाश उपाध्यायदसनाम संन्यास आश्रमभूपतिवाला, हरिद्वार (उत्तराञ्चल)उनका सांचफिर से होगी गोधरा, अग्निकांड की जांचलालू सम्मुख लाएंगे, जो उनका है सांच।जो उनका है सांच, मगर हमको समझाओअंदर से खुद आग लगा करके दिखलाओ।यदि “प्रशांत” घावों को तुम फिर से छेड़ोगेअपनी कब्रों जीते जी तैयार करोगे।।-प्रशांतसूक्ष्मिकासमस्याएंदेश के पचास वर्षीयविकास गंधाते पोर-पोर हैंसमस्याएंडायनासोर हैं-मिश्रीलाल जायसवालसुभाष चौक,कटनी, (म.प्र.)29

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