|
सरसंघचालक कुप्.सी.सुदर्शन का आह्वानजनसंख्या का हमला रोकेंपूरे उपमहाद्वीप में हिन्दुओं की घटती संख्या-तरुण विजयनवीनतम जनगणना में हिन्दुओं की घटती संख्या के प्रति देश के विभिन्न वर्गों में गहरी चिंता उत्पन्न हो रही है। पूरे विश्व में केवल भारत ही हिन्दुओं का एकमात्र आश्रय स्थल है। यदि विभाजन से पूर्व एवं विभाजन के बाद इस क्षेत्र में हिन्दुओं की जनसंख्या के उतार- चढ़ाव पर निगाह डालें तो स्पष्ट होता है कि जहां पहले पाकिस्तान और बंगलादेश में हिन्दू लगातार तीव्र गति से घट रहे थे वहीं अब भारत में भी घटते हुए आंकड़ों की ढलान पर आ पहुंचे हैं। जनगणना विशेषज्ञों को यह जानकर हैरानी और धक्का पहुंचा है, क्योंकि 1947 में पाकिस्तान और बंगलादेश से हिन्दू पलायन कर शरणार्थी के रूप में भारत पहुंचे थे और उनकी अचानक आमद से 1951 में भारत में हिन्दुओं की जनसंख्या का आंकड़ा काफी बढ़ा हुआ दिखा। परंतु 2001 की जनगणना के पांथिक आंकड़ों ने बताया है कि अब पाकिस्तान तथा बंगलादेश वाले हिस्सों से शेष बचे भारत में भी हिन्दुओं की संख्या का असर खत्म हो गया है। यानी लुट-पिटकर आए हिन्दुओं की संख्या से जो वृद्धि दर में इजाफा हुआ था, वह भी अब घटती हुई दर में बदल गया है।एक पुस्तक जो सब बताती हैइसका मूल्य है सिर्फ 25 रुपए। वस्तुत: यह एक लम्बा निबंध है जिसमें चेन्नै स्थित समाजनीति समीक्षण केन्द्र द्वारा 2003 में प्रकाशित वृहद शोध ग्रंथ “रिलिजियस डेमोग्राफी आफ इण्डिया” का सार प्रस्तुत किया गया है। इसे श्री ए.पी. जोशी, श्री एम.डी. श्रीनिवास तथा श्री जितेन्द्र कुमार बजाज ने लिखा है। पुस्तक में पंथानुसार जनसंख्या में पिछले 100 वर्ष से अधिक समय से हो रहे परिवर्तनों का क्षेत्रश: तथ्यात्मक विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक उन सभी के लिए एक जेबी संदर्भ ग्रंथ है जो पंथानुसार जनसंख्या में हो रहे परिवर्तनों के सम्बंध में चिंतित हैं। यह पुस्तक इस पते से मंगवाई जा सकती है-समाजनीति समीक्षण केन्द्र27 राजशेखरन् स्ट्रीट, मयिलापुर,चेनै-600004 (तमिलनाडु)इस संबंध में रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन ने पाञ्चजन्य से एक बातचीत में कहा कि हिन्दुओं की घटती वृद्धि दर सम्पूर्ण भारत के भविष्य के लिए खतरा और आशंकाएं पैदा करती है। इसलिए आवश्यक है कि जिन कारणों से राष्ट्रीय सुरक्षा और जनसांख्यिक संतुलन पर हमला हो रहा है, उन पर गंभीरता से विचार कर समाधान खोजा जाए। उन्होंने कहा कि सीमावर्ती जिलों में बंगलादेश से आने वाले मुस्लिम घुसपैठियों की सघन आबादी का बढ़ना सभी राष्ट्रभक्तों के लिए चिंता का विषय होना चाहिए। सीमांत जिलों में विदेशी आबादी संसार में कोई भी देश सहन नहीं कर सकता। भारत क्यों सहन कर रहा है, यह समझ नहीं आता। यह मुद्दा राष्ट्र के भविष्य और समाज के अस्तित्व के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। हिन्दुओं की जनसंख्या कम होने का परिणाम आज तक देश के लिए घातक ही सिद्ध हुआ है। इस देश में जहां भी हिन्दू कम हुए हैं वहां या तो भारत के खिलाफ विद्रोह पैदा हुआ है या वह क्षेत्र ही भारत से अलग हो गया है। अभी तक यही देखने में आया है कि जहां भी हिन्दू अल्पमत में हो गया वह हिस्सा भारत में नहीं रहा।ये आंकड़े किस भविष्यको दर्शाते हैं?सम्पूर्ण भारत में भारतीय पंथावलम्बियों का घटता अनुपात दीर्घकालिक रुख के ही अनुरूप है। यदि इसी गति से जनसंख्या अनुपात घटता रहेगा तो 21वीं शताब्दी के दूसरे अद्र्धांश में (सन् 2050 के आसपास) भारतीय पंथावलम्बी पूरे उपमहाद्वीप में अल्पसंख्यक हो जाएंगे।विभाजन के बाद के रुझानों में भारत में 0.9 प्रतिशत की यह कमी अब तक की सबसे अधिक है।भारतीय पंथावलम्बियों का भारतीय संघ में अनुपात 1941 में जो था, उससे भी अब घटा है।सीमावर्ती राज्यों, विशेषकर पश्चिम बंगाल और असम में यह अनुपात असाधारण रूप से काफी कम हुआ है।असम के 7 जिले एक प्रकार से मुस्लिमबहुल हो गए हैं। ये जिले हैं धुबरी, गोआलपारा, बारपेटा, नौगांव, हैलाकाण्डी और करीमगंज। धुबरी की कुल संख्या में मुस्लिम 74.5 प्रतिशत है और ये 1991 की तुलना में 4 प्रतिशत अधिक हैं। 1991-2001 के बीच केवल एक दशक में बंगाईगांव में मुस्लिम 6 प्रतिशत अधिक हो गए।पूर्वाञ्चल के सातों राज्यों में, यदि असम को हटा दिया जाए तो, भारतीय पंथावलम्बियों की संख्या 7 प्रतिशत कम हुई है। एक ही दशक में इतनी गिरावट पहले कभी नहीं हुई थी। यह कमी प्रत्येक राज्य में पाई गई है लेकिन अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में स्थिति विशेष भयावह है।अरुणाचल प्रदेश के पापुमपारे जिले में ईसाई अब 30 प्रतिशत हो गए हैं तथा तिरप में 50 प्रतिशत, जहां 1991 में वे मात्र 18 प्रतिशत थे।केरल में उसकी दीर्घकालीन रवैये के अनुरूप भारतीय पंथावलम्बी 1.2 प्रतिशत कम हुए। उल्लेखनीय है कि पिछले 13 दशकों से हर दशक में भारतीय पंथावलम्बी लगभग इसी दर से कम होते आ रहे हैं।एक और चौंकाने वाली जो बात सामने आयी है वह यह है कि हरियाणा में भारतीय पंथावलम्बियों की संख्या में 1 प्रतिशत की कमी आयी है जो कि उत्तर-पश्चिमी राज्यों के लिए एक नई बात है। गुड़गांव में सिर्फ एक दशक में मुस्लिम जनसंख्या 3 प्रतिशत बढ़ी है। पंजाब के भी अनेक जिलों में मुस्लिम जनसंख्या में तीव्र वृद्धि दर्शायी गई है।डांग की चर्चा जब भी होती है, सेकुलर चिल्लाते है कि वहां ईसाइयों का दमन किया गया। किसने किसका दमन किया, यह इन आंकड़ों से पता चलता है। 1981 से 1991 के मध्य डांग जिले में ईसाइयों की संख्या 1.5 प्रतिशत से 5.5 प्रतिशत तक पहुंची थी। अब 2001 में यह संख्या लगभग दोगुनी यानी 9.5 प्रतिशत हो गई है।जम्मू कश्मीर में घाटी को पूरी तरह से हिन्दूविहीन कर दिया गया है। भारतीय पंथावलम्बियों की वास्तविक संख्या ही 1981 की तुलना में 2001 में घट गई है, जबकि मुसलमानों का अनुपात राज्य के हर कोने-किनारे में पहले की तुलना में बढ़ा है।पिछली कई दशाब्दियों से सुनियोजित षड्यंत्र चल रहा है कि किसी प्रकार भारत को ईसाई अथवा इस्लामी वर्चस्व के अन्तर्गत ले आया जाए। इस षड्यंत्र को पूरा करने के लिए मुस्लिम और ईसाई देश अरबों डालर भारत भेजते हैं। हिन्दुओं के मतांतरण, अवैध घुसपैठ तथा हिन्दू लड़कियों को जबरन फंसाकर या फुसला कर उनसे शादियां करके यह जनसांख्यिक आक्रमण किया जा रहा है। कश्मीर, असम तथा पूर्वांचल के अन्य हिस्सों में यही तरीका अपनाया गया। लद्दाख बौद्ध संघ पिछले अनेक वर्षों से गृह मंत्रालय को लिखित ज्ञापन देकर सहायता की गुहार करता आ रहा है कि उनकी युवतियों को मुसलमान भगाकर श्रीनगर ले जाते हैं, उन्हें बचाया जाए। गुजरात और महाराष्ट्र में भी सुनियोजित रूप से हिन्दू लड़कियों के विरुद्ध यह अपमानजनक अभियान चलाया जा रहा है।श्री सुदर्शन ने हिन्दुओं का आह्वान किया कि वे सम्पूर्ण भारत को गैरहिन्दू बनाने के षड्यंत्र के विरुद्ध खड़े हों तथा भारत में समान नागरिक कानून लागू करने की मांग करें। उन्होंने कहा कि हम छोटे परिवार के समर्थक हैं और समझते हैं कि शैक्षिक और आर्थिक प्रगति के लिए आज के युग में सीमित आय वर्ग के लिए बड़े परिवारों के साथ मुश्किल होती है। लेकिन अगर मुसलमान यह कहते हैं कि बड़े परिवार रखना या अधिक बच्चे पैदा करना उनके मजहबी निर्देशों के अन्तर्गत आता है तो उन्हें ध्यान में रखना चाहिए कि यही बात हिन्दू भी कह सकते हैं। श्री सुदर्शन ने कहा कि वेदों में दस पुत्रों को जन्म देने की बात कही गयी है तथा पुराणों में विवाहित स्त्रियों को “अष्ट पुत्र: सौभाग्यवती भव” के आशीर्वाद का विवरण है। लेकिन हिन्दू समाज देश के भविष्य तथा अपने शैक्षिक एवं आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए यदि दो बच्चों के परिवार की बात स्वीकार करता है तो यह बात पूरे देश पर एक समान लागू की जानी चाहिए। यह कहने का अधिकार किसी को नहीं दिया जाना चाहिए कि ज्यादा बच्चे पैदा करना उनके मजहबी कर्तव्य का हिस्सा है। यह स्वागतयोग्य है कि मुस्लिम समाज के शिक्षित वर्ग में इस बारे में बहस चल पड़ी है। इससे समाज में असंतुलन तथा विकास में बाधा पैदा होगी।उल्लेखनीय है कि हाल ही में पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक श्री कंवर पाल सिंह गिल ने भी कहा है कि किसी भी समाज में विभिन्न समुदायों के मध्य बहुत अधिक जनसंख्या असंतुलन नहीं होना चाहिए। इससे पारस्परिक संबंधों में तनाव पैदा हो जाता है।श्री सुदर्शन ने कहा कि श्री जितेन्द्र बजाज और श्री मडम श्रीनिवासन जैसे विख्यात जनगणना विशेषज्ञों ने विश्लेषण किया है कि यदि यही दर रही तो 2050 के आसपास सम्पूर्ण भारतीय उप महाद्वीप में सभी भारतीय पंथावलम्बी (जैन, बौद्ध, सिख, वैदिक आदि उन उपासना पद्धतियों के अनुयायी जिन उपासना पद्धतियों का जन्म भारत में हुआ) अल्पसंख्यक हो जाएंगे। आजादी के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि भारतीय पंथावलंबियों का अनुपात विभाजन पूर्व के आंकड़ों से भी कम हो गया है।पहली बार पूर्वांचल के राज्यों में भारतीय पंथावलम्बियों की संख्या में असाधारण गिरावट आई है। यदि जिलाश: आंकड़ों का अध्ययन करेंगे तो भयंकर झटका लगेगा। असम के धुबरी में 75 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या और अरुणाचल प्रदेश के पापुमपारे में 30 प्रतिशत ईसाई चौंकाने वाले हैं।इससे बढ़कर एक और कष्ट की बात यह हुई है कि आंकड़ों को घुमा-फिराकर, एक खास दृष्टिकोण देने के लिए भारत के जनगणना महापंजीयक श्री बांठिया पर बहुत अधिक दबाव डाला गया। फलत: उन्होंने अगले दिन कश्मीर और असम की जनगणना के आंकड़े हटाकर शेष भारत की जनगणना के आंकड़े दोबारा जारी किए, ताकि मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि और हिन्दू जनसंख्या में कमी को ढका जा सके। इस सरकार ने आंकड़ों के माध्यम से देश का विभाजन पहली बार शुरू किया, जो क्षोभ-जनक है। भारत के जनगणना महापंजीयक का कार्यालय पिछले सौ वर्ष से भी अधिक समय से (1881 से) अपना काम करता आ रहा है। विश्व में भारतीय जनगणना की जितनी साख है, उतनी बहुत कम ही देशों की है। ऐसी स्थिति में इस कार्यालय को भी विवादों के घेरे में लाना दुर्भाग्यपूर्ण है।श्री सुदर्शन ने कहा कि अगर हम अब भी नहीं संभले तो ध्यान में रखना होगा कि हजारों सालों से अपने बल, पराक्रम और धैर्य से जिन पूर्वजों ने इस सभ्यता और संस्कृति को सींचा और बढ़ाया, उस सभ्यता और संस्कृति का नामोनिशान अंतत: मिट जाएगा।9
टिप्पणियाँ