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मुस्लिम वोटदेने की शुरुआत-सईद नकवीवरिष्ठ स्तंभकार एवं सम्पादक,वल्र्ड रिपोर्टनिश्चित रूप से इस बार मुसलमानों के भी भाजपा को वोट देने की शुरुआत होगी। अगर गुजरात प्रकरण न हुआ होता तो यह सिलसिला बहुत आगे बढ़ चुका होता। गुजरात काण्ड की वजह से अभी भी कुछ लोगों के मन में शंका है, अन्यथा इस बार बहुत बड़ा परिवर्तन देखने को मिलता। फिर भी पिछले एक दशक की भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन आया है और आगामी कुछ वर्षों में इसका व्यापक प्रभाव दिखने लगेगा। पहले मुस्लिम समाज एकजुट होकर अपना वोट कांग्रेस को दे देता था, क्योंकि और कोई विकल्प भी नहीं था। इससे यह भी कहा जाने लगा कि मुसलमानों का तुष्टीकरण होता है इसीलिए वह कांग्रेस का वोट बैंक बना हुआ है। 1989 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मण्डल की राजनीति खेली तो जातिवादी राजनीति में तेजी से उभार आया और जातिवादी नेताओं ने मुस्लिम समाज को यह कहकर धोखा दिया कि तुम हमारे साथ आ जाओ तो हम कायापलट कर देंगे। मंदिर आंदोलन के कारण कांग्रेस से आहत मुस्लिम समाज दलित-मुस्लिम गठजोड़ अथवा यादव-मुस्लिम गठजोड़ की राजनीति में उलझ गया। लेकिन उसने पाया कि जातिवादी पार्टियां और उसके नेता वोट तो ले लेते हैं पर उसके काम नहीं करते। इधर श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में जो सरकार चली उसने देश की राजनीति को एक नई दिशा दी, इससे सबकी सोच में एक परिवर्तन आया। इसका परिणाम सब तरफ दिखायी दे रहा है। आज कहीं भी साम्प्रदायिक तनाव नहीं दिखायी देता। और तो और विकास को मुद्दा बनाकर भाजपा ने चुनाव लड़ा और तीन राज्यों में जबरदस्त सफलता भी हासिल की। मुसलमानों की सबसे बड़ी चिंता होती है सुरक्षा, और वह उसके प्रति आश्वस्त होने लगा है। इन सब कारणों से यह बहुत बड़ा परिवर्तन आया है कि मुसलमान अब एकजुट होकर किसी एक पार्टी को वोट नहीं दे रहा है।13
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