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अरुणाचल-नागालैंड-मिजोरम-मणिपुर-मेघालय-त्रिपुरा-असमउत्तर-पूर्व में राजग काप्रभाव बढ़ा, सहयोग बढ़ा-गुवाहाटी से रमाशंकर राय8 अप्रैल को गुवाहाटी में चुनाव प्रचार के दौरानप्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एवं (दाएं)श्री भूपेन हजारिका20 अप्रैल को शिलांग (मेघालय) में प्रथम चरण मेंमतदान करती हुई खासी जनजाति की एक महिलासिक्किम को मिलाकर उत्तर-पूर्व क्षेत्र के आठ राज्यों में लोकसभा की कुल 25 सीटें हैं। 1999 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को असम में 10, अरुणाचल में 2, नागालैंड में एक और मेघालय में एक यानी कुल 14 स्थान प्राप्त हुए थे। अन्य 11 सीटों में भाजपा को 2, माकपा को 2, एन.सी.पी. को 2 औद निर्दलीय को 5 सीटें प्राप्त हुई थीं। निर्दलियों में कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी), एम.एन.एफ. और एस.डी.एफ. भी शामिल हैं।अरुणाचल प्रदेश1999 के लोकसभा चुनावों के बाद उत्तर-पूर्व क्षेत्र में एक अति महत्वपूर्ण घटना हुई। कांग्रेस के गढ़ अरुणाचल में श्री गेगांग अपांग के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सरकार का गठन हुआ है। यद्यपि अरुणाचल में भाजपा को पिछले लोकसभा चुनावों में सफलता नहीं मिली थी किन्तु इसे 29 प्रतिशत मत मिले थे। एक लोकसभा सीट पर इसे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था। कांग्रेस को यहां से दो सीटें मिली थीं किन्तु इस बार इसे दोनों सीटों से हाथ धोना पड़ेगा। भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के पांच वर्ष के शासन के बाद इन छोटे राज्यों के नेताओं का विश्वास भाजपा के प्रति बढ़ा है।नागालैंडनागालैंड में ऐतिहासिक सत्ता परिवर्तन हुआ। नागालैंड ईसाई बहुल राज्य है। चर्च का बोलबाला इतना है कि आपको प्रमुख स्थानों पर “नागालैंड इज क्रिश्चियन स्टेट” लिखा दिखेगा। मिजोरम के भी “ईसाई राज्य” बनने के बाद अब वे कहते हैं कि वह “प्रथम ईसाई राज्य” है। यहां पर भी कांग्रेस का लंबे समय से राज्य रहा था। गत वर्ष के चुनावों में “डेमोक्रेटिक एलायंस आफ नागालैंड” (डान) की श्री निफ्यू रिओ के नेतृत्व में सरकार बनी। पहली बार भाजपा के सात विधायक चुने गए उनमें से दो मंत्री हैं।मिजोरममिजोरम में कांग्रेस की राज्य सरकार थी। लंबे अंतराल के बाद श्री जोरामथांगा के नेतृत्व वाले मिजो नेशनल फ्रंट (एम.एन.एफ.) ने कांग्रेस को उखाड़ फेंका। उसी के साथ वहां से कांग्रेस के सांसद के जीतने का सिलसिला भी बंद हो गया। यहां पर स्व. राजीव गांधी ने “बाइबिल के अनुसार सरकार” बनाने का वायदा किया था। गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का जादू नहीं चल सका। मिजोरम उत्तर-पूर्व का सर्वाधिक शिक्षित प्रदेश है। एम.एन.एफ. राजग का समर्थक दल है। यहां से भी कांग्रेस के जीतने की संभावना दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती। यहां से एम.एन.एफ. का उम्मीदवार ही मैदान में है। यहां की राजनीति पर चर्च के अलावा हथियार डाल चुके आतंकी हावी हैं।मणिपुरमणिपुर की दोनों लोकसभा सीटों से कांग्रेस पहले ही बेदखल हो चुकी है। श्री इबोबी सिंह के नेतृत्व में सेकुलर डेमोक्रेटिक फ्रंट (एस.डी.एफ.) की सरकार है, किन्तु इसके घटक एक दूसरे के विरुद्ध ही चुनाव लड़ रहे हैं। इधर यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यू.एन.एल.एफ.) ने भाजपा और रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट (आर.पी.एफ.) ने कांग्रेस के चुनाव प्रचार पर जबरन प्रतिबंध लगा रखा है। 20 अप्रैल को बाहरी मणिपुर के निर्वाचन में जिस प्रकार की तोड़-फोड़ की गई और 60 मतदान अधिकारियों को बंधक बनाया, उससे ऐसा नहीं लगता कि राज्य सरकार आतंकवादियों पर प्रभावी नियंत्रण रख पाएगी।भीतरी मणिपुर सीट से भाजपा के चाओबा सिंह चार बार से जीतते आ रहे हैं। आतंकियों के प्रतिबंध के बावजूद भाजपा ने कार्यकर्ताओं की बैठकें की हैं, किन्तु खुला प्रचार प्रभावित हुआ है। भाजपा ने चुनाव आयोग और राज्य सरकार को ज्ञापन देकर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था करने की मांग की है। यदि सुरक्षा व्यवस्था ठीक रही तो भाजपा दोनों सीटों पर जीत हासिल कर सकती है। यह इतना आसान नहीं है। राज्य सरकार आतंकियों के विरुद्ध कार्रवाई करने से डरती है। चुनाव आयोग को ही इस दिशा में प्रभावी कदम उठाना पड़ेगा।मेघालयमेघालय की दोनों सीटों को जीतने की योजना कांग्रेस ने बनाई है। प्रथम दौर के मतदान में शिलांग में 53 प्रतिशत और तुरा में 60 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ। तुरा से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पूर्णों संगमा चुनाव लड़ रहे हैं। वे यहां 1991 से लगातार जीतते रहे हैं। इन्होंने स्थानीय आतंकवादी गुट आचिक नेशनल वालंटियर कौंसिल (ए.एन.वी.सी.) और केन्द्र के बीच वार्ता कराने का प्रयास किया है। इससे कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार नाराज है, किन्तु ए.एन.वी.सी. ने खुलेआम संगमा को समर्थन देने का आह्वान किया है। ऐसी अवस्था में श्री संगमा के जीतने की संभावना प्रबल है।शिलांग सीट से भाजपा ने लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष जी.जी. स्वेल के पोते सांबोर स्वेल लिंग्दोह को उम्मीदवार बनाया है। इस ईसाई बहुल राज्य में भी भाजपा का प्रभाव बढ़ा है। मतदान का प्रतिशत कम होने से जहां कांग्रेस के जीतने के अनुमान हैं वहीं भाजपा उम्मीदवार के जीतने की संभावना देखी जा रही है। गैर खासी मतदाताओं पर भाजपा का प्रभाव है।त्रिपुरात्रिपुरा की दोनों सीटों पर माकपा का कब्जा है। कई बार कांग्रेस प्रयास करके भी इन्हें पराजित नहीं कर सकी है। इसकी सुरक्षित सीट पर भाजपा पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर थी। इस बार इनडिजिनस नेशनल पीपुल्स पार्टी से इसने समझौता कर एक प्रभावी चकमा नेता पुलिन देवांग को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस के बाहुबली संतोष मोहन देव को छोड़कर त्रिपुरा में माक्र्सवादियों का कोई मुकाबला नहीं कर सका है। माक्र्सवादी जहां चुनावों के दौरान सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करते है वहीं लोगों को डराने धमकाने के लिए अपने कार्यकर्ताओं और ए.टी.टी.एफ. जैसे आतंकवादी गुटों का प्रयोग करते हैं।असमअसम में लोकसभा के 14 निर्वाचन क्षेत्र हैं। इनमें से 10 पर कांग्रेस का कब्जा है। 2001 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने तरुण गोगोई के नेतृत्व में सरकार बनाई। 1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में असम गण परिषद (अगप) की सरकार थी। इसलिए कांग्रेस को तब सत्ता विरोधी रुख का लाभ मिला। इस बार राज्य में उसी की सरकार है और इस सरकार ने राज्य के विकास के लिए ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिसको वह अपनी उपलब्धि के रूप में पेश कर सके।इसके 10 सांसदों ने भी राज्य की समस्याओं को लोकसभा में प्रभावी ढंग से नहीं उठाया। भाजपा ने आंकड़े पेश कर जनता को बताने का प्रयास किया है कि केन्द्र ने पैसे दिए किन्तु राज्य सरकार इतनी अक्षम है कि वह उसका उपयोग ही नहीं कर सकी। परिणामस्वरूप वह पैसा केन्द्र के पास लौट गया। राज्य सरकार की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय है कि वह अपने कर्मचारियों के वेतन का समय से भुगतान भी नहीं कर पा रही है। पार्टी के विधायक वर्तमान सांसदों में से 6 को टिकट देने के विरुद्ध थे किन्तु पार्टी उनमें से केवल 2 को ही टिकट से वंचित कर सकी। उनमें से एक नेपाल चन्द्र दास अगप के टिकट पर करीमगंज से लड़ रहे हैं। धुबरी में टिकट से वंचित सांसद कांग्रेस को सबक सिखाने में लगे हैं।उत्तर-पूर्वी राज्यों में 1999 के लोकसभा चुनावों में विभिन्न दलों की स्थितिलोकसभा क्षेत्र विजयी उम्मीदवार द्वितीय स्थान पर रही पार्टीअरुणाचल प्रदेशअरुणाचल पश्चिम जारबोम गामलिन (कांग्रेस) अरुणाचल कांग्रेसअरुणाचल पूर्व वांग्चा राजकुमार (कांग्रेस) भाजपाअसमकरीमगंज (सु) नेपाल चंद्र दास (कांग्रेस) भाजपासिलचर संतोष मोहन देव (कांग्रेस) भाजपाडिफू (अजजा) डा. जयंत रांग्पी (सी.पी.आई.एम.एल.) कांग्रेसधुबरी अब्दुल हमीद (कांग्रेस) भाजपाकोकराझार (अजजा) संसुमा खंगुर बसुमातारी (निर्दलीय) कांग्रेसबरपेटा ए.एफ. गुलाम उस्मानी (कांग्रेस) भाजपागुवाहाटी विजया चक्रवर्ती (भाजपा) कांग्रेसमंगलदोई माधव राजवंशी (कांग्रेस) भाजपातेजपुर मणिकुमार सुब्बा (कांग्रेस) भाजपानगांव राजेन गोहाईं (भाजपा) कांग्रेसकलियाबोर दीप गोगोई (कांग्रेस) अगपजोरहाट विजयकृष्ण हांडिक (कांग्रेस) भाजपाडिब्रूगढ़ पवन सिंह घटवार (कांग्रेस) अगपमणिपुरभीतरी मणिपुर चाओबा सिंह (एमएससीपी) एम.पी.पी.बाहरी मणिपुर हाओकिप (एन.सी.पी.) कांग्रेसमेघालयशिलांग पाटीरिपुल किंडियाह (कांग्रेस) यू.डी.पीतुरा पूर्णो संगमा (एन.सी.पी.) कांग्रेसमिजोरममिजोरम (अजजा) वानलालजावमा (निर्दलीय) निर्दलीयनागालैंडनागालैंड के. असुंगबा सांग्ताम (कांग्रेस) निर्दलीयत्रिपुरात्रिपुरा पश्चिम समर चौधरी (माकपा) कांग्रेसत्रिपुरा पूर्व (अजजा) बाजूबन रियांग (माकपा) भाजपा15
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