शिबू सोरेन प्रकरण पर दो टिप्पणियां
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शिबू सोरेन प्रकरण पर दो टिप्पणियां

by
Jan 8, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Jan 2004 00:00:00

दागी की सहभागी सरकार-अजय मारू, सांसद (राज्यसभा)भारत के इतिहास में किसी मंत्री के इस तरह गायब होने का प्रकरण पहली बार देखने में आया। इस पूरे प्रकरण से साफ छवि वाले प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की साख को बहुत धक्का लगा है। सरकार की छवि बहुत धूमिल हुई है। एक मंत्री का इस तरह कानून से भागते रहना शर्मनाक है। शिबू सोरेन के विरुद्ध सामूहिक हत्या का मामला है। यह मामला 1975 का है जो बहुत दिनों तक इसलिए उजागर नहीं हो पाया था, क्योंकि 1986 में इस मामले से संबंधित एक फाइल न्यायालय से गायब हो गई थी। यह मामला तब उजागर हुआ, जब पिछले लोकसभा चुनावों में नामांकन के समय शिबू सोरेन ने अपना विवरण दिया। इस विवरण में उन्होंने इस मामले की चर्चा की। जब यह विवरण देखा गया तो पता चला कि 1975 में भी उनके विरुद्ध एक मामला था। 30 जनवरी, 1975 के दिन हुए उस हत्याकांड में 10 लोग मारे गए थे। सोरेन 1981 में चिरुडीह में चार लोगों की हत्या के भी आरोपी हैं। उस समय भी उनके खिलाफ वारन्ट जारी हुआ था, जो अभी तक लम्बित है।1975 में हुए हत्याकांड मामले को कुछ लोग झारखण्ड आंदोलन से जोड़ते हुए इसे वापस लेने की मांग कर रहे हैं। लेकिन यह मामला झारखण्ड आंदोलन से जुड़ा नहीं है, इसे वापस लेने की बात व्यर्थ है। गृह मंत्रालय ने भी इस मामले की जांच के लिए एक दल गठित किया गया था, उसे भी खत्म कर दिया गया था। अब जब इस मामले में शिबू सोरेन के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी हो गए तो वे भागे फिर रहे हैं और सरकार इसका कोई जवाब नहीं दे रही है।शिबू सोरेन का आपराधिक इतिहास रहा है। जनवरी, 1975 का यह मामला तो अभी सामने आया है, इससे पहले उनके खिलाफ अपने सचिव शशिकांत झा की हत्या का मामला भी चल रहा है। नरसिम्हा राव की सरकार बचाने के मामले में भी उन पर रिश्वत लेने का आरोप है। एक शिबू सोरेन क्या संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में और भी दागी मंत्री हैं, जिनके खिलाफ हत्या के मामले चल रहे हैं। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने उन्हें मंत्री बनाया, इससे ज्यादा घातक क्या हो सकता है। ये खुद दागी के सहभागी हैं और चाहते हैं कि सत्ता में बने रहें, चाहे इसके लिए कितने भी अपराधियों को मंत्री बनाना पड़े। अभी तो एक शिबू सोरेन का प्रकरण सामने आया है। एक-एक कर अन्यों के मामले भी पता चलेंगे। लालू यादव, तस्लीमुद्दीन, प्रेमचंद गुप्ता, जयप्रकाश आदि मंत्रियों के खिलाफ मामले चल ही रहे हैं। यह बड़ी घातक परिपाटी शुरू हुई है और कम्युनिस्टों सहित पूरा सत्ता पक्ष शिबू सोरेन के बचाव में आगे आ गया है। इस तरह भ्रष्टाचार और हत्याओं के आरोपी अगर मंत्री बनेंगे तो वे जनता के सामने न्याय कैसे कर पाएंगे।(विनीता गुप्ता से बातचीत पर आधारित)सोरेन को बर्खास्त नहीं किया तोरही-सही साख भी जाएगी सरकार की-ए. सूर्यप्रकाश, वरिष्ठ विश्लेषकशिबू सोरेन प्रकरण से राजनीति के अपराधीकरण पर चल रही एक लम्बी बहस फिर से सतह पर आ गई है। सबसे पहले तो दागी सांसदों को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में शामिल करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था। मुझे याद है कि करीब 10 साल पहले विधि आयोग की एक रपट आई थी जिसमें “रीप्रेजेन्टेशन आफ पीपुल्स एक्ट” में बदलाव की बात की गई थी। उसमें साफ कहा गया था कि जिन व्यक्तियों के खिलाफ कुछ विशेष मामलों (जैसे बलात्कार, अपहरण, हत्या आदि कुछ बड़े अपराध) में आपराधिक अभियोग चल रहे हों, उन्हें चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाया जाना चाहिए। चुनाव आयोग ने इसी रपट के आधार पर चुनाव सुधार संबंधी एक सुझाव प्रस्तुत किया। इस पर दिल्ली उच्च न्यायालय और उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय में मामला चला था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को चुनाव सुधारों के दिशानिर्देश तैयार करके इसे लागू करने को कहा था।लेकिन बाद में मामला उलटा ही हो गया। पिछले वर्ष राजग सरकार के शासनकाल के दौरान सभी दलों ने सरकार पर दबाव बनाया और न्यायालय के आदेश की धार कुंद करते हुए संसद में एक चुनाव सुधार कानून पारित करवा दिया। इस सब में विधि आयोग का मूल सुझाव कि “जिनके विरुद्ध आपराधिक मामले चल रहे हैं, आरोप पत्र दाखिल हो चुके हैं, वे चुनाव में उम्मीदवार नहीं बन सकते” कहीं खो गया। उसकी अनदेखी कर दी गई। सभी राजनीतिक दलों की आम सहमति थी। चूंकि उस समय अपराधीकरण के उस दरवाजे को हम बंद नहीं कर पाए, इसीलिए आज ऐसी स्थिति दिख रही है। हत्या के अपराधी, अपहरणकर्ता, फिरौती वसूलने जैसे अभियोग होने के बावजूद ये लोग सांसद बन बैठे। हम देश के नागरिकों को शर्म आनी चाहिए कि हमने कैसे-कैसे लोगों को सांसद और फिर मंत्री बनाया। हमने कितने अपराधियों को संसद में बिठा दिया है। विडम्बना है कि उम्मीदवार अपने नामांकन के समय अपने विरुद्ध चल रहे मामलों की जानकारी देता है, तब भी इस देश के नागरिक उसे चुनकर संसद में भेज देते हैं!शिबू सोरेन की गिरफ्तारी का वारंट निकल जाने के बाद दागी मंत्रियों के कारण कटघरे में खड़ी सरकार की छवि और धूमिल हो रही है। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के बारे में हम कहते रहे कि वे बड़े पढ़े-लिखे, ईमानदार और बेदाग व्यक्ति हैं। लेकिन खुद ईमानदार रहते हुए भी वे किन लोगों की संगत में घिरे हैं? प्रधानमंत्री की अपने मंत्रियों के बारे में पूरी जवाबदेही होती है। हमारे संविधान ने मंत्रिमण्डल के गठन का अधिकार केवल एक व्यक्ति, प्रधानमंत्री को दिया है। इसलिए संवैधानिक तौर पर प्रधानमंत्री की ही जवाबदेही है। देखा जाए तो सरकार बने अभी दो महीने ही हुए थे कि इतना बड़ा प्रकरण हो गया। प्रधानमंत्री का नैतिक कर्तव्य बनता था कि दागी सांसदों को मंत्रिमण्डल में शामिल न करते।शिबू सोरेन की गिरफ्तारी का मुद्दा उछलने से पहले कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने कहा था कि “अरे, यह (शिबू सोरेन के विरुद्ध हत्या का मामला) तो 29 साल पुराना मामला है।” यह कैसी बेतुकी बात है। हत्या तो हत्या ही होती है, 29 साल पहले हो तो क्या उसे अपराध नहीं कहेंगे? आनंद शर्मा के वक्तव्य की भत्र्सना की जानी चाहिए।सोरेन के मामले में प्रधानमंत्री ने बड़ी हताशाभरी प्रतिक्रिया व्यक्त की कि “हम, क्या कर सकते हैं?” इसका क्या अर्थ है? प्रधानमंत्री इतने लाचार हो गए कि कुछ कर नहीं सकते? प्रधानमंत्री सोरेन से समर्पण करने को कहते और उनके ऐसा न करने पर आधा घंटे बाद राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर सोरेन को बर्खास्त करने की सिफारिश करते। अगर डा. मनमोहन सिंह सत्यनिष्ठा और नैतिकता का भाव रखते हैं तो उन्हें सोरेन को तुरंत बर्खास्त करना चाहिए। अगर डा. मनमोहन सिंह ऐसा नहीं करते तो पिछले 30-40 वर्ष में उनकी जो व्यक्तिगत साख बनी थी, वह दो महीने में जाती रहेगी। अपराध में लिप्त मंत्री को बर्खास्त करना उनका नैतिक दायित्व भी है और संवैधानिक भी। राजनीति के अपराधीकरण पर इस देश के नागरिक ही लगाम लगा सकते हैं। न्यायालयों में जनहित याचिकाएं दाखिल करके न्यायमूर्तियों से कहना चाहिए कि वे सरकार पर कानून की सही व्याख्या करने की जिम्मेदारी डालें। नहीं तो आने वाले कुछ ही समय में दागी मंत्रियों का मुद्दा मनमोहन सिंह सरकार की रही-सही छवि भी खराब कर देगा।(आलोक गोस्वामी से बातचीत पर आधारित) हकबकाई कांग्रेस के सकपकाए जवाबसरकार के एक मंत्री के बचाव में कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा किस हद तक हल्केपन से बातें कर रहे हैं, इसका अंदाजा 21 जुलाई को दिए उनके वक्तव्य से हो जाता है। संसद में भाजपा द्वारा शिबू सोरेन मामले पर सरकार को घेरे जाने के बाद बौखलाए आनंद शर्मा ने पत्रकार वार्ता में कहा, “सोरेन के खिलाफ पूरा मामला राजनीति से प्रेरित है। भाजपा हार को पचा नहीं पा रही, इसलिए संसदीय परंपराओं को तोड़ रही है।” उधर संसदीय कार्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने कहा कि सोरेन का इस्तीफा देने का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि वे तो 29 साल पुराने मामले में झारखण्ड में भाजपा सरकार की बदले की राजनीति के शिकार हुए हैं।10

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