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शोभायात्रा में शामिल एक झांकी का दृश्यगत 30 मार्च को जोधपुर में विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा भगवान श्रीराम का पावन प्रकटोत्सव श्री रामनवमी पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। और चहुंओर “भये प्रकट कृपाला” के बाद आनंद का वातावरण छा गया। इस अवसर पर नगर में भव्य शोभायात्रा निकाली गयी, जिसमें 192 झांकियों, भजन मण्डलियों सहित प्रमुख 10 अखाड़ों ने भाग लिया। इससे पूर्व जोधपुर के महाराजा गज सिंह ने पूजन कर शोभायात्रा प्रारम्भ की। इसमें विश्व विख्यात कथावाचक सन्त किरीट भाई एवं जोधपुर के युवराज भुवराज सिंह ने भी भाग लिया। शोभायात्रा शहर के सभी मुख्य मार्गों से गुजरी, जहां अनेक स्वयंसेवी एवं व्यावसायिक संगठनों ने पुष्पवर्षा कर यात्रा का स्वागत किया। यात्रा में गण्यमान्य नागरिकों सहित बड़ी संख्या में जनता ने भी भाग लिया। प्रतिनिधि2विद्यार्थी कम, उर्दू अध्यापक ज्यादा!!-लखनऊ प्रतिनिधिसमाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का मुस्लिम समुदाय के प्रति विशेष लगाव फिर उमड़ पड़ा है। सभवत: लालू यादव की तर्ज पर मुस्लिम-यादव गठजोड़ मजबूत करने की नीयत से उन्होंने अल्पसंख्यक मतदाताओं को खुश करने के लिए प्रदेश के जर्जर प्राथमिक विद्यालयों की आर्थिक हालत सुधारने के बजाय एक साथ तीन हजार उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति का फरमान जारी कर दिया है।इस निर्णय के अनुसार प्रदेश के उन विद्यालयों में जहां उर्दू के छात्र होंगे और अध्यापकों की कमी होगी, वहां इन उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति होगी। सच तो यह है कि बदलते सामाजिक और शैक्षिक परिदृश्य में उर्दू के विद्यार्थियों की संख्या नगण्य सी है। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व भी मुलायम सिंह ने अपने 1994-95 के मुख्यमंत्रित्वकाल में प्रदेश के विद्यालयों में पांच हजार से अधिक उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति की थी। तब अनेक वर्गों में काफी शोर-शराबा हुआ था। शिक्षा विभाग के सूत्रों के अनुसार इन पांच हजार से अधिक उर्दू अध्यापकों में कुछ को छोड़कर शायद ही किसी के पास कोई काम हो। अध्यापक प्राथमिक विद्यालयों में उपस्थिति दर्ज कराकर केवल वेतन ले रहे हैं। फतेहपुर, रायबरेली, वाराणसी, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, इलाहाबाद समेत पचास से अधिक जिलों में उर्दू शिक्षकों के पास कोई विशेष काम ही नहीं है। सच तो यह है कि मुस्लिम छात्रों की भी अब उर्दू पढ़ने में कोई रुचि नहीं रही। वे भी आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर समाज के साथ चलना चाहते हैं। परिणामस्वरूप पूरे प्रदेश में उर्दू विद्यार्थियों की संख्या गिनी-चुनी रह गई है। इस परिप्रेक्ष्य में तीन हजार उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति के फरमान से मुस्लिम मतदाताओं में सकारात्मक संकेत भले ही जाए लेकिन यह उत्तर प्रदेश के खजाने पर एक बड़ा बोझ साबित होगा।मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव मुस्लिमों को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखते हैं। अपने तीनों कार्यकालों में उन्होंने हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने वाले कई ऐसे फैसले किए जिनसे मुस्लिम साम्प्रदायिकता को बल मिला। 1990 में उन्होंने मुस्लिमों को खुश करने के लिए ही अयोध्या आंदोलन के दौरान कारसेवकों पर गोली चलवायी थी। 1994-95 के दूसरे कार्यकाल में मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए ही पी.ए.सी. (राज्य सशस्त्र बल) से इतर शांति सुरक्षा बल के गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी थी, जिसमें अधिकारियों से लेकर सिपाहियों तक 50 प्रतिशत मुसलमानों को भर्ती किया जाना था। इससे पहले कि इसका क्रियान्वयन हो पाता, उनकी सरकार चली गई। बाद में राज्य में सत्तारूढ़ हुई भाजपा सरकार ने इस पूरी प्रक्रिया को रद्द कर दिया। शांति सुरक्षा बल को भंग कर दिया गया।तीसरे कार्यकाल के शुरुआती दौर में मुलायम सिंह यादव कुछ “मुलायम” दिखे थे। ऐसा लगा था जैसे उन्होंने अतीत की गलतियों से सीखा है, लेकिन ऐसा नहीं है। प्रारंभिक राजनीतिक व्यवधानों से निपटने के बाद उन्होंने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हर शुक्रवार को प्रदेश के विद्यालयों में दोपहर बाद अवकाश की घोषणा की ताकि मुस्लिम छात्र जुमे की नमाज मे शामिल हो सकें। इसका चौतरफा विरोध हुआ था। मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने भी इसे वोट बैंक का हिस्सा मानकर अहितकर बताया। अंतत: मुलायम सिंह को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा। पिछली गलतियों से सीख न लेते हुए उन्होंने अपने ताजा फैसले में तीन हजार उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति की घोषणा कर नए विवाद को जन्म दिया है। दरअसल मुलायम सिंह यादव और कांग्रेस में मुस्लिम वोट बैंक को पक्का करने की होड़ मची है। उधर आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने नौकरियों में मुस्लिमों को पांच प्रतिशत आरक्षण देने का आदेश जारी करके संविधान की मूल भावना के विपरीत कार्य किया तो इधर मुलायम सिंह ने उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति की घोषणा कर कांग्रेस को पीछे धकलने की कोशिश की है।3
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