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धूप-छांही जीवन<p style=font-weight:bold;text-align:

by
Jan 8, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Jan 2004 00:00:00

धूप-छांही जीवन

पग-पग पर साथ: श्रीमती वैजयंती अपने पति भगवान सिंह के साथ

प्रिय वैजयंती,

हमारी पहली भेंट 1981 में हुई थी, जब मैं राष्ट्रीय सेवा योजना के अंर्तगत लक्ष्मीबाई महिला कालेज में अध्ययन के लिए आता था। हम नेत्रहीन छात्रों को पढ़ाने वाली छात्राओं में तुम्हारा व्यक्तित्व अलग ही लगा- संकोची, लज्जाशील और सेवाभाव से परिपूर्ण। मैं 11वीं में पढ़ता था और तुम बी.ए. प्रथम वर्ष में। एक बार राष्ट्रीय सेवा योजना शिविर के समापन समारोह में छात्राएं हम नेत्रहीन विद्यार्थियों के साथ फोटो खिंचवा रही थीं। अंत में तुम आयी और तुमने अकेले मेरे साथ फोटो खिंचवाया। वह फोटो आज भी एक धरोहर की तरह मेरे पास है। समय बीतता गया और हम दो साल तक मिले नहीं। फिर एक दिन ऐसे ही शिविर में तुमने मुझे ढूंढ निकाला। फिर तो हम मिलते रहे और बाद में जीवन साथी बनने का निर्णय भी लिया, साथ ही यह भी तय किया कि जब तक हमारे पांव तले जमीन और सिर पर छत नहीं होगी, हम शादी नहीं करेंगे। एक तो मैं नेत्रहीन और फिर तुम्हारी जाति से अलग-तुम्हारे परिवार वालों को यह रिश्ता बिल्कुल स्वीकार न था। लेकिन तमाम उलझनों को नजरन्दाज करते हुए 23 अप्रैल, 1990 को हम आर्य समाज रीति से परिणय सूत्र में बंध गए। 4 दिन बाद तुम्हारे भाई आए और यह कह कर तुम्हें साथ ले गए कि “अब तुमने शादी कर ही ली है तो सामाजिक दृष्टि से समारोहपूर्वक विवाह कर देंगे, उसके बाद हमारा आपस में कोई नाता नहीं रहेगा।” 4 मई, 1990 को हम एक बार फिर परिणय सूत्र में बंधे। तुम्हारे परिवार वालों से 14 साल बाद अब भी कोई नाता नहीं है। अपने माता-पिता, भाई-बहन सबसे नाता तोड़कर तुम एक दृढ़ संबल की तरह मेरा साथ देती रहीं। पहले आर्थिक रूप से सहयोग देने के लिए नौकरी भी की, लेकिन उस दिन तुम स्कूल पढ़ाने गयी थी मैं और बेटे के लिए बोतल में दूध तैयार कर रहा था, बोतल मेरे हाथ से छूट गई। लाख ढूंढने पर भी न मिली, बेटा रोता रहा। तब मैं पड़ोस से किसी को बुलाकर लाया और तब बोतल मिल गई। यह बात तुम्हें पता लगी तो तुमने नौकरी छोड़ दी। और अब जो कुछ मैं कमाकर लाता हूं उसी में घर चलाती हो। दो बेटियों और एक बेटे का हमारा परिवार तुम्हारी सूझ और समर्पण के कारण कितना सुखी है, ईश्वर न करे किसी की नजर लगे। हमारा धूप-छांही जीवन यूं ही बना रहे। इन्हीं कामनाओं के साथ

तुम्हारा,

भगवान सिंह

1045, दिल्ली प्रशासन फ्लैट्स,

गुलाबी बाग, नई दिल्ली-7

मंगलम्, शुभ मंगलम्

इस स्तम्भ में दम्पत्ति अपने विवाह की वर्षगांठ पर 50 शब्दों में परस्पर बधाई संदेश दे सकते हैं। इसके साथ 200 शब्दों में विवाह से सम्बंधित कोई गुदगुदाने वाला प्रसंग भी लिखकर भेज सकते हैं। प्रकाशनार्थ स्वीकृत प्रसंग पर 200 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।

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“स्त्री” स्तम्भ

द्वारा, सम्पादक, पाञ्चजन्य संस्कृति भवन,

देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला, नई दिल्ली-55

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