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पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले
गोआ-अंक , वर्ष 9, अंक 9, भाद्रपद कृष्ण 3, सं. 2012 वि., 22 अगस्त, 1955, मूल्य 3आने
0 सम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्र
0 प्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊ
गोआ-मुक्ति-संग्राम के रक्त-रंजित इतिहास का एक पृष्ठ
मृत्यु से जूझने वालों में जब होड़ लग गई थी
(श्री वसंतराव गाडगिल: अनु. श्रीरामरूप गुप्त)
14 अगस्त की मध्यरात्रि! भारत के विभिन्न प्रदेशों से गोमांतक विमोचन के लिए एकत्र हुए सत्याग्रही 15 अगस्त के संकल्पित स्वातंत्र्य-संग्राम के चित्र खींचते निद्रादेवी की आराधना में रूकावट डालने वाली स्वप्नसृष्टि में विचरण कर रहे थे। श्री विट्ठल मंदिर में स्वातंत्र्य देवी के इन यात्रियों का मुकाम था। मंदिर के सम्मुख एक दो मंजिली इमारत में गोमान्तक आंदोलन के नेता डा. कुन्हा, श्री बसंतराव ओक तथा कुछ पत्रकार सो रहे थे। रात्रि के बारह बजे के करीब मैं जब वहां पहुंचा उस समय श्री वसंतराव ओक शांत भाव से निद्रालीन थे।
…अचानक बिगुल की ध्वनि हुई और कुछ पत्रकार तथा सत्याग्रही हड़बड़ा कर उठ बैठे। बांदा के नागरिकों ने बिगुल की ध्वनि के बीच जलती मशालें लेकर जुलूस निकाला था। भारत माता की जय-जयकार के गगनभेदी नारों की आवाज वातावरण में गूंज रही थी। ध्वनि दसों दिशाओं में फैलकर पुर्तगाली चौकी पर भी पहुंची और उसने मुक्ति का आश्वासन देकर पुर्तगाली नराधमों को भड़का दिया। रात्रि के 2 बजे तक रणनिनाद जारी था।
पूर्वी बंगाल के शरणार्थियों की समस्या सुलझाई जाए
पटना तथा नवादा गोली-काण्डों की अविलम्ब जांच कराई जाए
गोहत्या निरोध का प्रश्न राष्ट्रीय सम्मान का प्रश्न
(निज प्रतिनिधि द्वारा)
कलकत्ता: “सरकार का कर्तव्य है कि वह सम्मान के साथ विस्थापितों की समस्या सुलझाए क्योंकि उसकी नीति ही उसके लिए उत्तरदायी है। उसका कर्तव्य है कि वह पूर्वी बंगाल से आए हुए हिन्दुओं के पुनर्वास हेतु पूरा-पूरा ध्यान दे और उनकी सहायता करे। अभी तक इस दिशा में सरकार के प्रयास अधूरे रहे हैं।” पूर्वी बंगाल से आए हुए हिन्दू शरणार्थियों की व्यवस्था के सम्बंध में प्रस्ताव स्वीकृत करते हुए अ.भा. जनसंघ की केन्द्रीय कार्य समिति ने उक्त निर्णय व्यक्त किया, जिसकी बैठक 26, 27 तथा 28 अगस्त को यहां हुई थी। इसके अतिरिक्त जनसंघ केन्द्रीय कार्य समिति ने गोआ, अकाली आन्दोलन, पटना गोलीकाण्ड, गोहत्या निरोध, श्रीलंका तथा बर्मा के सम्बंध में भी अनेक महत्वपूर्ण प्रस्ताव स्वीकृत किए।
गोआ हो आजाद
(श्री “समीर”)
हिला हिमालय, कांपा अम्बर, खौल उठी सागर की छाती
धू-धू कर जल रही, दूसरों के हाथों भारत की थाती।
पशुता शरमा गई क्रूरता-नाची नंगी होकर;
गोआ का अस्तित्व कुचलती पुर्तगाल की ठोकर।
ठोकर! जिसके घाव शहीदों के मस्तक पर अब भी;
ठोकर! जिसकी छाप शहीदों की कबरों पर अब भी।
ठोकर! जिसने पोंछी वह सिन्दूर-बिन्दु की रेखा;
ठोकर, जिसकी नर पशुता को अखिल विश्व ने देखा।
बोलो कब तक और सहोगे अपमानों की ज्वाला?
मरते-मरते भी क्या मुख पर पड़ा रहेगा ताला?
उठो, आज फिर तीस कोटि कण्ठों की गूंजे वाणी।
अंगारों से खेल खेलती जलती चले जवानी।
बांध सिरों से कफन रक्त की चलें खेलते होली;
दानवता की क्रीड़ा अब तक होनी थी सो हो ली।
नहीं चलेगा अन्यायी का राज्य तुम्हारे आगे;
पुर्तगाल क्या योरुप वाले सभी यहां से भागे।
किन्तु कमर तो कसो उठा दो तरुणाई में लहरें।
गोआ हो आजाद, देश की ध्वजा गर्व से फहरे।
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