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-पंकज परिमलसूत सूत ही काता हमने जीवन भरअगर जुलाहे होते तो बिनना आता।कितने तार उठाने और दबाने हैंकाश हमें यह सही-सही गिनना आता।मौसम में देखो कुछ ज्यादा सरदी हैतन पे अपने झीनी-झीनी वरदी हैमहंगाई को खुली छूट भी बढ़ने कीफिर तनख्वाह बढ़ाने को हां कर दी है।सुविधा
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