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गांव बनेंगे गोकुलधाम
द डा. रवीन्द्र अग्रवाल
गोपालन किस प्रकार से आम किसान के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकता है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण गुजरात में देखने को मिलता है। इसे खेत क्रांति का प्रणेता कहा जा सकता है। राजधानी दिल्ली के लगभग 50 कि.मी. दायरे में बसे गांवों के किसानों के लिए भी पशुपालन लाभकारी सिद्ध हुआ है। इस क्षेत्र के बहुत से सीमान्त किसानों व भूमिहीन मजदूरों के जीवन में पशुपालन से उल्लेखनीय परिवर्तन आया है। लेकिन देश के अधिकांश किसान और वनवासी आज भी खेत क्रांति के लाभ से वंचित हैं। इसका मुख्य कारण अच्छी नस्ल के पशुधन की कमी, पशु स्वास्थ्य सेवाओं का सर्वसुलभ न होना और दूध के विपणन की सुविधा न होना है।
कमजोर वर्ग के लोगों को यदि प्रोत्साहित किया जाए तो गाय उनके लिए कामधेनु सिद्ध हो सकती है। विशेषतौर पर वनवासी क्षेत्रों में गोपालन बहुत लाभकारी हो सकता है, क्योंकि यहां हरे चारे की ऐसी कोई समस्या नहीं जो महानगरों और शहरों के पशुपालकों के सामने आती है। वनवासियों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए छत्तीसगढ़ की नवनिर्वाचित सरकार ने डेयरी उद्योग को गांवों और वनवासी क्षेत्रों में ले जाने का निश्चय किया है। गांवों को गोकुलधाम बनाने की इस योजना के अनुसार वनवासी क्षेत्रों में प्रत्येक वनवासी परिवार को एक-एक गाय दी जाएगी। गोपालन से प्रत्येक परिवार को अतिरिक्त आय होगी जिससे उनका जीवन स्तर सुधर सकेगा। उसका एक लाभ यह भी होगा कि देश में दूध की उपलब्धता बढ़ेगी और कुपोषण के शिकार वर्ग को दूध की आपूर्ति बढ़ायी जा सकती है। गोपालन को बढ़ावा देने के साथ-साथ छत्तीसगढ़ की नव-निर्वाचित सरकार ने गोसंरक्षण को प्रमुखता दी है। राज्य मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ही गोहत्या रोकने और गोहत्या के दोषी को दंडित करने का निर्णय लिया गया। गोसंरक्षण और गोपालन से छत्तीसगढ़ के वनवासी गांवों का कायाकल्प हो सकता है।
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