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अब नागालैंड में आई.एस.आई.हालांकि यह सरकार कह रही है और हम मान भी रहे हैं कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जबरदस्त ढंग से छेड़ी जा रही है और उसमें भारी सफलता भी मिल रही है। लेकिन बुरा हो इन जिहादियों का, जहां मौका मिलता है, वहीं पैर पसार लेते हैं। अब नागालैंड से खबर आई है कि वहां आई.एस.आई. और अन्य जिहादी संगठनों का क्षेत्रीय अड्डा बन रहा है। नागालैंड के गृहमंत्री टी.एम.लोथा ने कहा है कि बंगलादेश अभी भी इस्लामी जिहादियों का मुख्य केन्द्र बना हुआ है और नागालैंड में असम से बंगलादेशी घुसपैठिए बड़ी संख्या में आए हैं। दीमापुर तथा उसके आसपास के इलाकों में स्थिति शीघ्र ही नियंत्रण से बाहर होने की आशंका है क्योंकि जिस भी संदिग्ध विदेशी को यहां पकड़ा जाता है, वह असम सरकार से प्राप्त अपनी नागरिकता के कागज दिखा देता है। ऐसी स्थिति में नागालैंड सरकार के लिए उनके विरुद्ध कार्रवाई करना बड़ा मुश्किल हो जाता है।पिछड़ों के पीछेमध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इन दिनों जमकर लोक लुभावनी घोषणाएं कर रहे हैं। कभी वे नौकरियों में पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की सीमा 27 प्रतिशत घोषित करते हैं तो कभी कहते हैं कि कांग्रेस में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को उचित स्थान नहीं मिल रहा है, इसलिए यह वर्ग कांग्रेस से दूर हो रहा है। पर लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर उन्हें इस चुनावी वर्ष में ही इन वर्गों की चिन्ता क्यों हो रही है, जबकि वे लगभग 10 साल से मुख्यमंत्री हैं? पहले क्यों उन्होंने कभी ऐसी बातें नहीं कहीं, उल्टे इन वर्गों पर चोट ही की? क्या उन्हें चुनावी भूत सता रहा है?उल्लेखनीय है कि दिग्गी राजा ने अपने शासनकाल में 10-12 साल से सरकारी नौकरी कर रहे लगभग 28 हजार लोगों की छंटनी की है। इनमें से अधिकांश पिछड़े वर्ग के थे। इस समय ये लोग दर-दर भटक रहे हैं। अब जब वे इस वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की बात करते हैं तो लोग पूछते हैं, नौकरी के लिए आरक्षण या छंटनी के लिए? यही हाल अनुसूचित जाति एवं जनजातियों का है। बीते दस वर्षों में इस वर्ग को मिलने वाली सुविधाओं में भारी कमी आयी। सरकारी अनुदान के अभाव में इस वर्ग के छात्रों के लिए चल रहे कई छात्रावास बन्द हो चुके हैं। इतना ही नहीं, अपने शासनकाल में उन्होंने इस वर्ग के अधिकांश नेताओं को भी कोई भाव नहीं दिया।खतरे का निशानदेश के पिछड़े राज्यों में से एक उड़ीसा में अवैध शराब का धंधा जोरों पर है। एक ओर जहां शराब से होने वाली आय के लालच में राजनीतिज्ञों ने शराब बिक्री को खुली छूट दी है, वहीं दूसरी ओर आबकारी विभाग की ढिलाई के कारण पूरे राज्य में अवैध शराब के ठेके धड़ल्ले से चल रहे हैं। अवैध शराब को पीने से निरन्तर लोगों की मौतें भी हो रही हैं। वस्तुस्थिति तो यह है कि शराब से राज्य के राजस्व में जितने प्रतिशत की वृद्धि हुई, उससे दस गुणा लोगों की अवैध शराब के कारण मृत्यु हो चुकी है। 1992 में कटक में 206 लोगों की अवैध शराब के कारण मृत्यु होने के बाद से यह सिलसिला अभी भी जारी है। हालांकि कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने इस ओर ध्यान दिया है और कुछेक गांवों में स्थानीय लोगों की जागरूकता के कारण शराबबंदी करवाने में सफलता भी मिली है परन्तु सरकार द्वारा इस पर ध्यान न देने के कारण आज भी अवैध शराब के कारण मौतें हो ही रही हैं।एक गाय की हत्याबिहार में पूर्वी चम्पारण जिले में दरियापुर निवासी शंकर साह की गाय की कुछ स्थानीय मुसलमानों ने चोरी के बाद हत्या कर दी। इस घटना से उत्तेजित लोगों ने अरमान खां नामक एक व्यक्ति को शक के आधार पर पकड़ा। उसने पूछताछ में बताया कि इसमें मुख्य अभियुक्त पंचायत समिति का सदस्य हैदर खां है। इसी के नेतृत्व में करमतुल्लाह खां के घर में उक्त गाय की हत्या की गई। उसने यहां तक कहा कि उसी आंगन में सींग और खाल जमीन के अन्दर दबा दी गई है। इस घटना की रपट दर्ज करने के साथ ही अपराधियों को गिरफ्तार करने की मांग की गई। पर पुलिस ने उल्टे हिन्दुओं पर ही आरोप लगाया कि तुम लोग साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाते हो। एक गाय की हत्या हो गई तो क्या आफत आ गई? पुलिस के इस व्यवहार से हिन्दू समाज का आक्रोश और बढ़ा। हिन्दू अनुमण्डलाधिकारी के पास गए, पर उन्होंने भी उन्हें झिड़क कर भगा दिया।6
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