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संगठित होकर धर्म रक्षा करें-कुप्.सी. सुदर्शनसरसंघचालक, रा.स्व.संघहिन्दू संगम को संबोधित करते हुए श्री कुप्.सी. सुदर्शन, उनके दाएं हैं श्री उत्तम चंद इसराणी और बाएं हैं श्री जुझार सिंह सोलंकीगत 14, 15 एवं 16 दिसम्बर को मध्य प्रदेश के रतलाम नगर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, मध्य भारत प्रान्त के कार्यकर्ताओं का एक सम्मेलन आयोजित किया गया। 15 दिसम्बर की सुबह स्वयंसेवकों ने पथसंचलन भी किया, जिसमें जिले भर के 40पथ संचलन का विहंगम दृश्यहजार से अधिक गणवेशधारी स्वयंसेवकों ने भाग लिया। संचलन की विशेषता यह थी कि इसमें वनवासी स्वयंसेवकों ने भी परम्परागत वाद्य यंत्रों के साथ भाग लिया। बाद में हिन्दू संगम का आयोजन हुआ। संगम में उपस्थित स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन ने कहा कि मजहबी ठेकेदारों को अपने ग्रंथों की व्याख्या को सही रूप में प्रस्तुत करना होगा, तभी दुनिया में शांति स्थापित हो सकती है। दुनिया के दो देश मिस्र एवं ट्यूनीसिया ने इस दिशा में पहल भी कर दी है। अब भारत में भी ईसाई एवं इस्लामिक विद्वानों को शांति, भाईचारे एवं समन्वय स्थापित करने केलिए इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। श्री सुदर्शन ने कहा कि हमारे देश में सभी को अपने मजहब के अनुसार जीने के अधिकार मिले हुए हैं, लेकिन छल कपट से मतांतरण का अधिकार नहीं दिया जा सकता। इस अवसर पर रा.स्व.संघ के प्रांत कार्यवाह श्री उत्तमचंद इसराणी और जिला संघचालक श्री जुझार सिंह सोलंकी भी उपस्थित थे।17 दिसम्बर को रतलाम के आरो आश्रम द्वारा श्री मां के 125वें जन्म दिवस पर आयोजित एक अन्य कार्यक्रम में श्री सुदर्शन ने कहा कि भारत को वैभवशाली बनाने के लिए राष्ट्रवादी शक्तियों को संगठित किए जाने की जरूरत है। महर्षि अरविन्द भी यही चाहते थे, संघ इसी दिशा में कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह समय संघर्ष का है, हमें सक्रिय और संगठित होकर काम करना होगा, निष्क्रिय रहकर किसी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती। निष्क्रिय रहकर हम अपने सिद्धान्तों को भूलकर उसी तरह मिट जाएंगे, जैसे यूनान और मिस्र की संस्कृति मिट गई। द शरद जोशीदीप प्रज्ज्वलित कर सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए श्री जगमोहन सिंह राजपूत (बाएं से हैं) श्री ए.विनोद, डा. कैलाश शर्मा और श्री रमेश पप्पाकोझिकोड में सम्पन्न हुए अ.भा.वि.प. के 48वें राष्ट्रीय सम्मेलन मेंआतंकवाद के विरुद्ध छात्र-शक्ति का आह्वान्अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का 48वां राष्ट्रीय सम्मेलन 28 दिसम्बर, 2002 को केरल के कोझिकोड में सम्पन्न हुआ। केरल में लगभग 30 वर्ष बाद आयोजित इस सम्मेलन में सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों से लगभग 1500 प्रतिनिधियों नेभाग लिया। 26 दिसम्बर को सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् के निदेशक डा. जगमोहन सिंह राजपूत ने कहा कि यूनेस्को की रपट के अनुसार संसार के सभी देश तीन समस्याओं का सामना कर रहे हैं-आर्थिक मंदी, विकास के आदर्श का अभाव तथा नैतिक पतन। यूनेस्को ने इससे निबटने के लिए शिक्षा में सामाजिक चेतना और सह-अस्तित्व का भाव जोड़ने का सुझाव दिया है। परिषद् ने तो भारत में नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने का प्रस्ताव पहले ही रखा था, जिसकाकुछ लोगों द्वारा बहुत विरोध किया गया था। उन्होंने कहा कि आज जबकि समाज में इतनी हिंसा, भ्रष्टाचार और अमानवीयता बढ़ रही है। ऐसे में शिक्षा के सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषायी आयामों की उपेक्षा संभव नहीं है।इस अवसर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के नवनिर्वाचित राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. कैलाश शर्मा ने कहा कि राष्ट्रविरोधी शक्तियों की तमाम धमकियों और आतंक के बावजूद केरल में परिषद् कार्यकर्ताओं ने छात्रों को संगठित करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है।इस अवसर पर अभाविप के महामंत्री श्री रमेश पप्पा, श्री ए. विनोद सहित अनेक लोग उपस्थित थे।सम्मेलन का एक दृश्यसम्मेलन में सर्वसम्मति से कई प्रस्ताव पारित हुए। एक प्रस्ताव में केंद्र सरकार से पाकिस्तान के छद्म युद्ध को दुनिया के सामने प्रगट करने और आतंकवाद के विरुद्ध कड़े कदम उठाने की मांग की गई। सम्मेलन में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के साथ सैन्य बलों के संघर्ष को कमजोर करने की मानवाधिकारवादियों की हरकतों की निंदा की गई। एक प्रस्ताव में शिक्षा क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन करने की मांग की गई है। इसमें शिक्षा का व्यावसायीकरण रोकने, शिक्षा-शुल्कों की पुनर्रचना करने और छात्रवृत्ति को मूल्य-सूचकांक से जोड़ने पर बल दिया गया है। इस अवसर पर केरल में अभाविप की गतिविधियों पर एक प्रदर्शनी लगाई गई, जिसमें कम्युनिस्ट आतंकवादियों के हमले में शहीद हुए छात्रों के चित्र प्रदर्शित किए गए थे।27 दिसम्बर को एक विशाल रैली और जनसभा का आयोजन किया गया, जिसमें विख्यात धाविका पी.टी. उषा ने गैर पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों के व्यावसायिक उपयोग के क्षेत्र में खोज के लिए सुश्री प्रियदर्शिनी कर्वे को यशवंतराव केलकर पुरस्कार प्रदान किया। द प्रदीप कुमारपाञ्चजन्य स्वर्ण-जयन्ती चित्रमाला-273जगद्गुरु स्वामी ब्राह्मानंद सरस्वती जीजन्म- 21 दिसम्बर, 1870, महासमाधि- 20 मई, 1953 जगद्गुरु स्वामी ब्राह्मानंद सरस्वती जीज्योतिर्मठ के उद्धारकमहान वीतरागी तथा तत्वनिष्ठ संत स्वामी ब्राह्मानंद सरस्वती जी महाराज उन दिव्य विभूतियों में थे जिन्होंने सनातन (हिन्दू) धर्म तथा वैदिक परम्पराओं की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया था। स्वामी जी का आविर्भाव अयोध्या के निकट गाना नामक गांव में सरयूपारीण ब्राह्मण कुल में मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी विक्रम सम्वत् 1928 (21 दिसम्बर, सन् 1870) को हुआ था।आठ वर्ष की अल्पायु में ही परिवारजनों ने उनका यज्ञोपवीत संस्कार कर संस्कृत अध्ययन के लिए काशी भेज दिया। धर्म शास्त्रों के गहन अध्ययन के बाद वे ऋषिकेश जाकर साधना करने लगे। वहां से वे उत्तरकाशी पहुंचे जहां श्रृंगेरी पीठ के योगिराज दण्डीस्वामी श्री कृष्णानंद सरस्वती जी महाराजवेदान्त तथा दर्शनशास्त्र का गहन अध्ययन किया। 36 वर्ष की आयु में सन् 1906 में प्रयाग के कुंभ में उन्होंने स्वामी कृष्णानंद जी से संन्यास की दीक्षा ली तथा उनका नाम ब्राह्मानंद सरस्वती रखा गया।काशी के विद्वानों तथा अन्य पीठों के शंकराचार्यों की सहमति से स्वामी ब्राह्मानंद जी को ज्योतिर्मठ का शंकराचार्य मनोनीत किया गया। 1 अप्रैल सन्, 1941 को काशी में आयोजित एक भव्य समारोह में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य के रूप में उनका अभिषेक किया गया।जगद्गुरु स्वामी ब्राह्मानंद सरस्वती जी महाराज के सान्निध्य में दिल्ली, काशी, उदयपुर, मुम्बई आदि में लक्ष चण्डी महायज्ञ आयोजित किए गए। शंकराचार्य जी अपने प्रवचनों में स्वदेशी, स्वभाषा (संस्कृत-हिन्दी) तथा राष्ट्रसेवा की प्रेरणा देते थे।20 मई, 1953 को कलकत्ता में धर्म प्रचार करते हुए उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया। दशिवकुमार गोयल1सम्पादकीयचर्चा सत्रअपनी बातगहरे पानी पैठआख्यानपाठकीयअच्छे काममंथनकही-अनकहीअद्भुत, असाधारण अम्मा!चन्द्रबाबू नायडू पर कम्युनिस्ट आतंकवादी हमलाकौन हैं ये लोग?——————————————————————————–विजयादशमी के अवसर परसरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने कहा-अयोध्या में मन्दिर राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीकतीन मन्दिर मिलें तोतीन हजार नहीं लेंगेअयोध्या, मथुरा, काशीअल्पसंख्यक भी राष्ट्रीय समाज का अंग हैं——————————————————————————–फिल्मी दुनिया का अंधेरा अभी मिटा नहींभरत शाहखलनायक बरीशाहरुख खाननायक से खलनायकभरत शाहशाहरुख खान——————————————————————————–लता 75ज्योति कलश छलके…डा. जोशी के त्यागपत्र के मामले में संघ को घसीटना गलत -श्री कुप्. सी. सुदर्शनविजयादशमी के अवसर पर सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन ने कहा- अयोध्या में मन्दिर राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीकचन्द्रबाबू नायडू पर कम्युनिस्ट आतंकवादी संगठन पीपुल्स वार ग्रुप का रक्तरंजित हमला कौन हैं ये लोग? क्या चाहते हैं?भारत-इस्रायल: सांस्कृतिक सम्बंध हजारों साल पुराना नातापं. दीनदयाल स्मृति व्याख्यान समारोह सम्पन्नलता के गायन में ज्योति कलश छलके…व्यथा का मूलफिल्मी दुनिया का अंधेरा अभी मिटा नहींखलनायक हुआ बरी, नायक हुआ खलनायक2
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