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बेहतर समन्वय, बेहतर संवाद…और बेहतर तालमेल का प्रयास–प्रतिनिधि1 मई को नई दिल्ली में विस्तृत-विशाल चांदीवाला एस्टेट परिसर में रा.स्व.संघ विचार परिवार के वरिष्ठ पदाधिकारियों की तीन दिवसीय चिंतन बैठक शुरू हुई। रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन, सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत, सहसरकार्यवाह श्री मदनदास व श्री सुरेश सोनी, अ.भा. प्रचारक प्रमुख श्री हो.वे. शेषाद्रि, अ.भा.बौद्धिक प्रमुख श्री रंगाहरि, अ.भा. कार्यकारिणी सदस्य श्री मा.गो. वैद्य सहित संघ विचार परिवार के अन्यान्य संगठनों के वरिष्ठ अधिकारी बैठक में उपस्थित थे। भाजपा की ओर से प्रमुख रूप से प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी, केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी, अध्यक्ष श्री वेंकय्या नायडू, महामंत्री श्री राजनाथ सिंह, श्री अरुण जेटली, श्री प्रमोद महाजन व श्री संजय जोशी उपस्थित थे। वि·श्व हिन्दू परिषद् से अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष श्री अशोक सिंहल व महामंत्री डा. प्रवीण तोगड़िया भी वहां थे। पहले दिन के प्रथम सत्र में संघ विचार परिवार में बेहतर समन्वय का एक तंत्र विकसित करने पर बल दिया गया। अगामी तीन दिन की चर्चा में सभी संगठनों के विभिन्न क्षेत्रों में काम करने के दौरान हुए अनुभवों और समस्याओं सहित देशहित से जुड़े सभी विषयों पर विचारों का आदान-प्रदान होना है। पहले दिन यानी 1 मई को पूर्वाह्न सत्र के बाद सरकार्यवाह श्री मदनदास ने एक पत्रकार वार्ता में चिंतन बैठक के आयोजन, कार्यसूची और चर्चा के विषयों की जानकारी दी। अपने वक्तव्य के क्रम में एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने की भारत सरकार की नीति का संघ स्वागत करता है। लेकिन पाकिस्तान के साथ अब तक के अनुभव यही बताते हैं कि उसकी बातों पर वि·श्वास नहीं किया जा सकता। वह अपने इरादे, अपने कार्यों से स्पष्ट करे। उल्लेखनीय है कि चिंतन बैठक में देश से जुड़े सुरक्षा मुद्दों पर भी विचार-विनिमय होना है। श्री मदनदास ने कहा कि भारत-पाकिस्तान के बीच दोस्ती का वातावरण बनना दोनों देशों के हित में है, पर पाकिस्तान को लगता है कि उसका अस्तित्व भारत-विरोध पर ही टिका है। एक अन्य प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए। समन्वय सुधारने के लिए क्या तंत्र हो सकता है, इसका खुलासा करते हुए श्री मदनदास ने कहा कि किसी विषय विशेष के संदर्भ में एक मंत्री की अध्यक्षता में कुछ पार्टी सांसदों की एक समिति उस क्षेत्र की समस्याओं पर विचार कर सकती है और सरकार को उसकी जानकारी दे सकती है। सरकार भी विभिन्न घटक दलों का गठजोड़ है, अत: उसे विभिन्न दृष्टिकोणों पर गौर करना चाहिए। यहां हम श्री मदनदास के इसी वक्तव्य के सम्पादित अंश प्रकाशित कर रहे हैं-रा.स्व.संघ की ओर से प्रतिवर्ष इस प्रकार की बैठक देश में कहीं-न-कहीं होती आ रही है। उसी क्रम में इस बार यह बैठक दिल्ली में हो रही है। प्रधानमंत्री सहित सरकार के अन्य वरिष्ठ मंत्री दिल्ली से बाहर हुई बैठकों में आमतौर पर उपस्थित नहीं हो पाते। दिल्ली में यह बैठक आयोजित होने के कारण और प्रधानमंत्री को इसका समय अनुकूल होने के कारण वे इसमें उपस्थित हुए। संघ विचार परिवार के सभी जनसंगठनों जैसे- भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, विद्यार्थी परिषद्, वि·श्व हिन्दू परिषद्, स्वदेशी जागरण मंच, भाजपा आदि के वरिष्ठ कार्यकर्ता इस बैठक में भाग ले रहे हैं। इस बैठक में देश से जुड़े सभी विषयों पर चर्चा होनी है। इसमें कोई निर्णय नहीं लिया जाता, न ही कोई प्रस्ताव पारित किया जाता है। यह चिंतन बैठक है, इसमें विचारों, जानकारियों का आदान-प्रदान किया जाता है। रा.स्व.संघ देश में सामाजिक समरसता, एकता और शांति चाहता है। इन विषयों पर विचारों का आदान-प्रदान होता है। साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में संघ की प्रेरणा से कार्यरत संगठनों के अध्ययन व समस्याओं पर चर्चा होती है, ताकि हर स्तर पर निर्णय करने वाले लोग इन बातों का उपयुक्त विचार कर सकें। इस बैठक की मूल कल्पना यही है।संघ के संगठन स्वयंसेवकों द्वारा निर्मित हैं, पर सभी स्वतंत्र, स्वायत्त व स्वयंपूर्ण हैं। ये सभी संगठन देश में अपने-अपने क्षेत्रों में सबसे बड़े संगठन हैं। इन संगठनों की अपनी विशिष्टता है। इनमें ग्रामीण और वनवासी क्षेत्रों में काम करने वाले संगठन भी हैं। देश में आज इन संगठनों द्वारा 40,000 सेवा कार्य, 24,000 विद्यालय चलाए जा रहे हैं। इसके साथ ही शिक्षा क्षेत्र में बड़ा रचनात्मक कार्य चल रहा है। इन सब संगठनों के कार्यों को मिलाकर निश्वित रूप से एक शक्ति का निर्माण होता है। यह सतत चलने वाला कार्य है। इस कार्य के विश्लेषण व चर्चा के लिए प्रतिवर्ष संघ की यह बैठक आयोजित होती है। वैसे तो नागपुर की प्रतिनिधि सभा में 1,000-1,200 प्रतिनिधियों के सामने प्रतिवेदन रखा जाता है। पर इस प्रकार की चर्चा नहीं हो पाती। इसलिए इस प्रकार की बैठक आयोजित की जाती है।आज के प्रथम सत्र में प्रधानमंत्री उपस्थित थे। इसमें मुख्यत: संगठनों के बीच बेहतर समन्वय, बेहतर संवाद के लिए आवश्यक तंत्र पर चर्चा हुई। समस्याएं अभी पूरी तरह नहीं सुनी जा रही हैं, पर इसमें सुधार होगा। इसके लिए क्या तंत्र बनना है, इस पर चर्चा होगी। जैसा मैंने पहले बताया, प्रत्येक संगठन स्वतंत्र रूप से कार्य करता है, अपने कार्यकर्ता का प्रशिक्षण आदि भी वह खुद करता है। ये संगठन संघ के सहयोग से अपनी योजनाएं बनाते हैं। अपने-अपने विषयों पर अध्ययन और दृष्टिकोण के आधार पर कार्यरत ये संगठन देश व समाज के प्रति निष्ठावान हैं अत: उनके हित की बातें व्यक्त करते हैं। पर यह बात वैचारिक रूप में बिना किसी कटुता के व्यक्त हो, यही अपेक्षा रहती है। लोकतंत्र में आपस में जानकारी का आदान-प्रदान होना चाहिए, संवाद होना चाहिए। हर संगठन को देशहित का विचार करते हुए अपने वैचारिक पक्ष पर अडिग रहना चाहिए।अगर आपस में किसी तरह की मत-भिन्नता है तो वह संवाद से ही दूर होती है। संघ 77 वर्ष से इसी सिद्धान्त के आधार पर कार्यरत है। लोकतंत्र में विभिन्न मुद्दों पर अपनी बात कहने का अधिकार है, परन्तु भाषा की मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए, अवि·श्वास नहीं होना चाहिए। संवाद का एक व्यवस्थित तंत्र बनने से बहुत सुविधा होगी। उदाहरण के लिए, एक मंत्री की अध्यक्षता में कुछ सांसद संबंधित क्षेत्र, जैसे श्रम क्षेत्र, औद्योगिक क्षेत्र, शिक्षा क्षेत्र से संवाद करें, अन्य संगठन भी ऐसा संवाद कर सकते हैं। इससे प्रतिरोध न्यूनतम हो सकता है। केन्द्र सरकार में भी अनेक दल शामिल हैं जिनके अपने-अपने दृष्टिकोण हैं। सरकार उनके दृष्टिकोणों पर गौर करती ही है, तो इन संगठनों के दृष्टिकोण भी ध्यान में रखे जा सकते हैं।20
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