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न किंचिद्दीर्घसूत्राणां सिध्यत्यात्मक्षयादृते।जो दीर्घसूत्री होते हैं, उनका, अपने नाश को छोड़कर कोई कार्य सिद्ध नहीं होता।-योगवासिष्ठ (3/78/8)आई बरखा बहारइस बार जमकर पानी बरसा और यूं बरसा कि पिछले सारे कीर्तिमान बहते-से नजर आए। झूमकर और कुछ मस्ती के साथ मौसम कुछ इस तरह बदला कि आंखों में रौनक लौट आई और चेहरे पर खुशी। तपती गर्मी में झुलसते लोगों और सूखे की मार से बहाल किसानों ने राहत की सांस ली। परंतु साथ ही मुंबई, दिल्ली और कोलकाता जैसे बड़े शहरों के बड़े-बड़े दावे भी इस वर्षा में बह गए। शहरों में पानी भर गया और लोगों को खासी परेशानियां भी उठानी पड़ीं। परंतु कुल मिलाकर देश की जनता प्रसन्न है। गांवों में बसने वाले एक देश में जहां की अस्सी प्रतिशत जनता अभी भी खेती पर निर्भर हो, बरसात का महत्व क्या होता है, यह कहने की आवश्यकता नहीं है। और वह भी तब जब हमारी खेती का एक बड़ा भाग इस मानसून पर ही निर्भर है। गत वर्ष समय पर बारिश नहीं होने के कारण जो सूखा पड़ा तो देश के कृषि उत्पादन में काफी कमी आई। अनाज के उत्पादन में जहां 295 लाख रु. की कमी हुई, वहीं दलहनों में 18.8 लाख रु. की। इसलिए देश के किसान प्रसन्न हैं कि इस वर्ष समय से बरसात आई है तो खेती अच्छी होगी। जब खेती अच्छी होगी और भरपूर अन्न उपजेगा तो देश की अर्थव्यवस्था भी अच्छी होगी। देश का विकास होगा। परंतु इस वर्षा के एक और उपयोग पर भी ध्यान देना भविष्य के लिए अच्छा होगा। निरंतर नीचे जा रहे भूजल-स्तर, सूखते कुंओं, तालाबों और शुद्ध पेयजल की बढ़ती कमी को ध्यान में रखते हुए इस वर्षा के जल को सुरक्षित रखने के उपाय किए जाने चाहिए। गुजरात में इस पर काफी अच्छे प्रयोग हुए हैं और सफलताएं भी मिलीं हैं। यदि ऐसे प्रयोग व्यापक तौर पर किए जाएं तो इस बरसात ने हमारे चेहरों पर जो मुस्काल ला दी है, वह लंबे समय तक बनी रहेगी।फ्रांस में मुसलमान और यहां…आतंकवादी छवि के कारण मुसलमानों का यूरोप में हर दिन जीना दुश्वार होता जा रहा है। अभी पिछले दिनों एक भारतीय मूल के हिन्दू को अमरीका में इराकी मुसलमान होने के भ्रम में बुरी तरह पीट दिया गया था। अमरीका इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस जैसे देशों में सिर्फ मुसलमान होना ही आतंकवाद का समर्थक होना मान लिया जाता है, जबकि वहां एक ही बड़ी घटना- 11 सितंबर की हुई है। अभी कुछ दिन पहले फ्रांस में एक बार फिर विद्यालयों में मुस्लिम छात्राओं द्वारा स्कार्फ पहने जाने का विवाद गरमा गया। पेरिस के पास लियोन के एक विद्यालय में 16 साल की फातिहा जब अपने स्कूल में स्कार्फ पहन कर गई तो उसकी अध्यापिका ने उसे विद्यालय में आने से मना कर दिया। अभी तक इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकल पाया है, क्योंकि फ्रांस की सरकार ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि जो भी फ्रांस का नागरिक बनना चाहता है, उसे सरहद पर ही अपनी पहचान छोड़कर आना होगा तथा फ्रांस गणराज्य का अविभाज्य एवं पूर्णत: विलीन सदस्य बनकर ही रहना होगा। फ्रांस अपने संविधान के अंतर्गत केवल और केवल फ्रांसीसी नागरिकों को ही मान्यता देता है। वहां अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक जैसी कोई अवधारणा नहीं है। यहां तक कि वहां की जनगणना में भी अल्पसंख्यकों की संख्या का कोई विवरण तक नहीं दिया जाता। फ्रांस में ज्यादातर मुसलमान अल्जीरिया, ट्युनीशिया और मोरक्को जैसे देशों से आए हैं जो कि पूर्व फ्रांसीसी उपनिवेश थे। फ्रांस के अधिकारियों को सबसे ज्यादा दिक्कत इस बात की हो रही है कि जहां-जहां मुस्लिम आबादियां बसी हैं, वहीं-वहीं अपराध के अड्डे पनप गए हें। फ्रांस की छह करोड़ की आबादी में मुसलमान 8 प्रतिशत हो गए हैं परंतु वहां की सरकार को मुस्लिमों से इतना परहेज है कि फ्रांस में एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है और न ही किसी फ्रांसीसी मुसलमान को राजदूत या उच्च प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किया गया है। यूरोपीय देशों में मुस्लिम छात्राओं द्वारा सर पर दुपट्टा ओढ़कर आना स्थानीय सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति मुस्लिम आक्रामकता का प्रतीक माना जाता है। एक अत्यंत सहनशील हिन्दूबहुल देश में रहने और यूरोप में रहने में यह फर्क समझना चाहिए।3
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