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पाञ्चजन्य, माघ शुक्ल 8, 2059 वि. (9 फरवरी, 2003)कुत: कृतघ्नस्य यश: कुत: स्थानं कुत: सुखम्।अश्रद्धेय:

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Sep 2, 2003, 12:00 am IST
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दिंनाक: 02 Sep 2003 00:00:00

पाञ्चजन्य, माघ शुक्ल 8, 2059 वि. (9 फरवरी, 2003)कुत: कृतघ्नस्य यश: कुत: स्थानं कुत: सुखम्।अश्रद्धेय: कृतघ्नो हि कृतघ्ने नास्ति निष्कृति:।।कृतघ्न को यश कैसे प्राप्त हो सकता है? उसे कैसे स्थान और सुख की उपलब्धि हो सकती है? कृतघ्न वि·श्वास के योग्य नहीं होता। कृतघ्न के उद्धार के लिए शास्त्रों में कोई प्रायश्चित नहीं बताया जाता है।-वेदव्यास (महाभारत, शांतिपर्व, 173/20)बंगलादेश समझ ले!भारत में बंगलादेशी घुसपैठियों की बढ़ती संख्या भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए किस प्रकार खतरा बनी हुई है, यह बात अब किसी से छिपी नहीं है। लेकिन पिछले दिनों नई दिल्ली में उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने जब घोषणा की कि अवैध रूप से भारत में रह रहे बंगलादेशी व पाकिस्तानियों को खदेड़ने का अभियान चलाया जाएगा तो इसका असर भारत में तो हुआ ही, साथ ही साथ विदेशों में भी इस घोषणा का असर हुआ। अमरीका ने बंगलादेशी नागरिकों पर अंगुली उठाना शुरू कर दिया, कड़ी नजर रखनी शुरू कर दी। अब हालत यह है कि अमरीका में अस्थायी रूप से रह रहे या किसी भी काम से वहां जाने वाले बंगलादेशियों के अंगुली के निशान और चित्र पंजीकरण कार्यालय में रखना आवश्यक कर दिया गया है। अमरीका ने बंगलादेश को उन 25 देशों की सूची में शामिल कर लिया है, जिनसे उसे अपनी सुरक्षा को खतरा है। बंगलादेश से इतनी दूर अमरीका में बसे कुछ बंगलादेशियों को जब अमरीकी सुरक्षा संस्थाएं खतरा मान रही हैं, तब भारत की स्थिति की कल्पना की जा सकती है, जहां 2 करोड़ से ज्यादा बंगलादेशी घुसपैठिए हैं। इनमें एक करोड़ तो सिर्फ असम और पश्चिम बंगाल में हैं। आंकड़ा सचमुच चौंकाने वाला है। सरकार ने इन घुसपैठियों की पहचान करने और इन्हें वापस बंगलादेश भेजने के लिए मुहिम छेड़ दी है। इनकी पहचान हो सके, इसके लिए सरकार ने राष्ट्रीय नागरिकता पहचानपत्र और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी बनाने का काम जल्दी ही शुरू करने के संकेत दिए हैं।भारत सरकार के इन संकेतों और अमरीका के बंगलादेशियों के बारे में फैसले से बौखलाए बंगलादेश ने भारत-विरोधी प्रचार कर खुद भारत को अपराधी के कठघरे में खड़ा करने की मुहिम शुरू कर दी है। बंगलादेश ने आरोप लगाया है कि भारत ने पिछले कुछ दिनों में सैकड़ों बंगलाभाषी मुसलमानों को उसकी सीमा में जबरन खदेड़ना शुरू कर दिया है। उसका कहना है कि भारतीय सीमा सुरक्षा बल ने 30 बार ऐसे प्रयास किए और 4,000 बंगलादेशी मुसलमानों को जबरन खदेड़ा, लेकिन बंगलादेश राइफल्स ने भारत के इरादे कामयाब नहीं होने दिए। कैसी विडम्बना है कि सैकड़ों, हजारों नहीं, लाखों में भी नहीं, करोड़ों की संख्या में बंगलादेशी भारत में अवैध रूप से रह रहे हैं और उन्हें वापस अपने देश भेजे जाने की मुहिम को बंगलादेश राजनीतिक रूप दे रहा है। क्या दुनिया में और भी कोई ऐसा देश है जो अपने ही नागरिकों को पहचानने और देश में रहने से रोके? बंगलादेश अपने करोड़ों नागरिकों को पहचानने से इंकार कर रहा है। बंगलादेश अपने नागरिकों को उनकी अपनी जमीन पर नहीं रहने देगा तो क्या भारत उनका बोझा ढोएगा? भारत यह बोझा तो 1971 से ढोता चला आ रहा है, लेकिन जब इससे देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा पैदा होने लगा तो कान खड़े होने स्वाभाविक ही थे। इन बंगलादेशी घुसपैठियों ने न केवल भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का जनसांख्यिक संतुलन बिगाड़ा, अपितु वहां अलगाव का भाव भी पैदा किया और अर्थव्यवस्था तो बिगाड़ी ही। लेकिन इनका एक और खतरनाक चेहरा सामने आया, आतंकवादियों के दाएं हाथ के रूप में। पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आई.एस.आई. भारत को अस्थिर करने के लिए इनका जमकर इस्तेमाल कर रही है। सीमा पार बंगलादेश में स्थापित आतंकवादी शिविरों में इनके प्रशिक्षण के सबूत भी मिले हैं। भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसक और विद्रोही गतिविधियों में भी इनका हाथ पाया गया है। बंगलादेशियों को वापस उनके देश भेजने की भारत की इस मुहिम को बंगलादेश भारत सरकार का खालिदा जिया सरकार से व्यक्तिगत विरोध बता रहा है। खालिदा जिया सरकार के शासन में वहां अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर जिस तरह कहर बरपाया जा रहा है, वह अकल्पनीय है। उस पर यह भारत-विरोधी प्रचार। भारत तो इस खतरे का अहसास बहुत पहले ही कर चुका था। 11 सितम्बर के बाद अमरीका को भी इसका अहसास हुआ, लेकिन अमरीकी कार्रवाई के लिए भी वह भारत को ही दोषी ठहरा रहा है। आतंकवाद का नाम आते ही विश्व में इस्लामी जिहाद का बर्बर चेहरा सामने आ जाता है। और भारत तो इस जिहाद का एक लम्बे अरसे से शिकार बना हुआ है। बंगलादेश बौखला क्यों रहा है? वह भारत की सुरक्षा सम्बंधी चिंताओं को समझने की कोशिश क्यों नहीं कर रहा? क्या वह हिन्दू-धैर्य की परीक्षा ले रहा है? माना हिन्दू मानस स्वभाव से शांत है, लेकिन सहनशीलता की भी एक सीमा है, बंगलादेश को समझ जाना चाहिए।3

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