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भूमि क्यों हड़पना चाहते हैं दिग्विजय?
द अनिल सौमित्र
महाकालेश्वर मन्दिर से सटी हुई संघ की भूमि, जिस पर अवरोधक लगे दिखाई दे रहे हैं और कुछ दर्शनार्थी विश्राम कर रहे हैं। संघ ने इसे स्थायी रूप से मन्दिर को नि:शुल्क देने की लिखित स्वीकृति दी हुई है। इसका क्षेत्रफल 0.167 हेक्टेयर है। चित्र में बाईं ओर दिख रहा है महाकाले·श्वर मन्दिर। मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बढ़ते प्रभाव से परेशान मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पिछले कई दिनों से रा.स्व.संघ के विरुद्ध अपप्रचार की मुहिम छेड़े हुए हैं। इसके लिए उन्होंने उज्जैन में महाकाले·श्वर मन्दिर के पास स्थित संघ की भूमि को लेकर विवाद खड़ा करने की कोशिश की है। हालांकि मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने संघ की जमीन को सुरक्षा और सिंहस्थ-2004 के उपयोग हेतु अधिगृहीत करने की बात की है, लेकिन उन्होंने जिस तरीके से इस मामले को विवादित बनाया है, इससे उनके उद्देश्य पर संदेह होना स्वाभाविक है।उल्लेखनीय है कि दिग्विजय सिंह ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री कुप्. सी. सुदर्शन के नाम पत्र लिखकर
मीडिया में प्रसारित कर दिया जिसमें दिग्विजय सिंह ने संघ पर झूठे आरोपों की भरमार कर दी है।
कुछ तथ्य
थ् स्व. ठाकुर मुन्नालाल जमींदार ने 16 मई, 1931 को स्थायी पट्टे पर संघ कार्य हेतु जमीन प्रदान की। तब से लगातार इस भूमि का उपयोग संघ द्वारा किया जाता रहा है।
थ् 18-12-1988 को शिक्षा विभाग द्वारा बाड़ लगाकर जमीन पर अधिकार करने का प्रयास किया गया। संघ द्वारा स्वत्व घोषणा का वाद स्थानीय न्यायालय में 22-12-88 को दायर किया गया। प्रकरण क्रमांक 5ए/90 में दिनांक 25-9-1990 को संघ के पक्ष में निर्णय हुआ।
थ् उक्त फैसले के विरुद्ध शासन द्वारा अपील की गई। प्रकरण क्रमांक 23ए/90 में दिनांक 24-1-91 को अपील निरस्त।
थ् सन् 1988 को उक्त भूमि को अन्य भूमि के साथ सिंहस्थ मेला क्षेत्र में सम्मिलित किया गया।
थ् सन् 1992 के सिंहस्थ में पहली बार संघ की जमीन मांगी गई व संघ द्वारा अनुमति देने के बाद वहां पुलिस शिविर लगाया गया।
थ् 15-10-1998 को महाकाल मंदिर प्रशासन द्वारा संघ को पत्र लिखकर मंदिर के बाहर लगी हुई भूमि सर्वेक्षण क्रमांक 2113 को मंदिर हित में दान करने की मांग की गई। चर्चा हेतु बैठक में संघ पदाधिकारियों के साथ प्रशासन की ओर से तात्कालिक सहायक जिलाधिकारी और अनुमंडलाधिकारी थे। किन्तु बाद में अनेक बार स्मरण कराने पर भी जिलाधीश या अन्य पदाधिकारियों ने आगे चर्चा नहीं की। (उक्त सर्वेक्षण क्रमांक वाली भूमि पर मंदिर प्रशासन द्वारा बाड़ लगाकर उसका उपयोग करने पर भी संघ ने कभी आपत्ति नहीं की। आज भी वह भूमि मंदिर हित में ही उपयोग की जा रही है)
थ् उज्जैन जिला योजना समिति की दिनांक 27-11-2001 की बैठक में कतिपय लोगों के दबाव में संघ की पूरी जमीन अधिगृहीत करने का प्रस्ताव किया गया। 1.566 हेक्टेयर भूमि की मांग की गई।
थ् संघ द्वारा स्थानीय न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर इस पर रोक लगाने की मांग की गई। प्रकरण क्रमांक 2ए/2002 में संघ के हित में निषेधाज्ञा जारी की गई। शासन ने इसके विरुद्ध अपील दायर की जो खारिज हो गई।
थ् दिनांक 12-6-2002 के अपने आदेश द्वारा जिलाधीश, उज्जैन ने संघ की 1.566 हेक्टेयर भूमि के अधिग्रहण हेतु दिनांक 28-6-2002 के राजपत्र में सूचना प्रकाशित करवाई।
वर्तमान स्थिति- संघ द्वारा उच्च न्यायालय, इंदौर में याचिका प्रस्तुत कर अधिग्रहण पर रोक की मांग की गई थी। संघ के पक्ष में न्यायालय द्वारा निषेधाज्ञा जारी कर संघ को बेदखल न करने का अंतरिम आदेश दिया गया है। गत 8 जनवरी को उज्जैन में एक पत्रकार वार्ता कर संघ ने दिग्विजय सिंह सरकार के झूठ की पोल खोल दी। कांग्रेस सरकार की मंशा पर हमला करते हुए संघ के सह प्रांत कार्यवाह श्री अशोक सोहनी ने कहा कि मुख्यमंत्री महाकाले·श्वर मंदिर के समीप संघ के स्वामित्व वाली भूमि के सम्बंध में राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित होकर गलतबयानी कर रहे हैं और समाज में भ्रम फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि संघ ने मंदिर के पास की भूमि सिंहस्थ आदि आयोजनों को देने के लिए कभी मना नहीं किया और न ही इसके लिए कभी किसी तरह की कोई मांग की है। श्री सोहनी के अनुसार-अभी भी तीर्थयात्री ही भूमि का उपयोग करते हैं। मुख्यमंत्री को अगर मंदिर की इतनी ही चिंता है तो मंदिर के पास खाली पड़ी 120 बीघा जमीन की चिन्ता करें जो अतिक्रमणकारियों के कब्जे में है। श्री सोहनी ने कहा कि मुख्यमंत्री को इस मामले का राजनीतिक फायदा उठाना था और इसीलिए उन्होंने ऐसा विवाद खड़ा किया है। मुख्यमंत्री के बयानों को पूरी तरह खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि हालांकि मुख्यमंत्री कहते हैं कि भूमि देने के लिए संघ के अधिकारियों से चर्चा की गई है, जबकि जिलाधिकारी और प्रभारी मंत्री सुभाष सोजतिया ने साफ कहा है कि इस सम्बंध में किसी से कोई चर्चा नहीं हुई है। एक तरफ तो मुख्यमंत्री भूमि को मंदिर की सुरक्षा के लिए आवश्यक मानते हैं, जबकि जिला प्रशासन वाहन- ठहराव और यात्रियों को पंक्तिबद्ध करने के लिए भूमि अधिग्रहण करना चाहता है।
संघ ने दिग्विजय सिंह सरकार को चुनौती दी है कि वह बतलाए कि स्थानीय प्रशासन ने भूमि के लिए संघ से कब संपर्क किया? उल्लेखनीय है कि उक्त भूमि को हड़पने की कोशिश तो कई बार की गई परंतु स्वयंसेवकों के विरोध और जनाक्रोश के चलते वे निष्फल कर दी गईं।
सन् 1994 में महाकाल मंदिर प्रशासन की ओर से मंदिर से लगी भूमि (सर्वेक्षण क्रमांक 2113) की मांग पत्र द्वारा की गई थी। संघ कार्यकर्ताओं द्वारा इसे मंदिर व समाज हित में दान में देने की सहमति भी प्रशासन को दी गई। परंतु कोई कार्यवाही किए बिना प्रशासन ने इसमें रुचि लेना बंद कर दिया। संघ द्वारा कई बार संपर्क करने पर भी बात टाल दी गई। सन् 2001 में पुन: यह विषय जिला योजना समिति के माध्यम से उठाया गया। वहां पूरी जमीन को अधिगृहीत करने का फैसला ले लिया गया।
जिले के प्रभारी वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री की उपस्थिति में हुई चर्चा में संघ ने सर्वेक्षण क्रमांक 2113 की भूमि देने की पेशकश की, परंतु जिलाधीश व अन्य प्रशासनिक अधिकारियों ने आगे चर्चा किए बिना शासन के अधिकार का दुरुपयोग करके भूमि लेने की जिद की।
सरकार की इस जिद के विरोध में स्थानीय न्यायालय में संघ ने वाद प्रस्तुत किया। न्यायालय ने निर्देश दिया कि पूर्ण वैधानिक प्रक्रिया (चर्चा द्वारा हल भी उसके निहित है) का पालन करने के बाद ही अधिग्रहण की कार्यवाही की जाए तथा तब तक संघ के पक्ष में कार्यवाही पर रोक लगा दी गई। शासन ने अपील की, परन्तु वह खारिज हो गई।
शासन ने संघ पदाधिकारियों से चर्चा न करके भूमि अधिग्रहण की धारा 4(1) व 17(1) में अधिग्रहण की सूचना राजपत्र में प्रकाशित कर दी। सन् 2004 में आने वाले सिंहस्थ, मंदिर के लिए दर्शनार्थियों की कतार हेतु व वाहन-ठहराव हेतु जमीन की आवश्यकता बताई गई। संघ द्वारा उच्च न्यायालय, इंदौर में रोक लगवाकर इस कार्यवाही पर स्थगनादेश प्राप्त किया गया। भूमि अधिग्रहण अधिकारी ने संघ को सूचना भिजवाकर भूमि-अधिग्रहण की स्थिति में मुआवजे के बारे में अपना पक्ष प्रस्तुत करने का दिन भी तय कर दिया। संघ ने इस पर उच्च न्यायालय स्थगनादेश का हवाला देते हुए शासन द्वारा निर्धारित दर से मुआवजे की राशि दर्शायी। किन्तु यह कभी भी नहीं कहा गया कि संघ उपरोक्त राशि मिलने पर भूमि सौंपने के लिए तैयार है।
इस पूरे प्रकरण में रा.स्व.संघ के तर्क इस प्रकार हैं:
थ् भूमि मेला क्षेत्र में होने के कारण सिंहस्थ समय में स्वत: ही उपयोग हेतु उपलब्ध है। थ् मंदिर प्रशासन को सिर्फ सर्वेक्षण क्रमांक 2113 की 0.167 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता है। शेष भूमि मंदिर से दूर स्थित होने के कारण मंदिर हेतु अनुपयोगी है। थ् मंदिर के आसपास शासन के अधिकार की पर्याप्त जमीन उपलब्ध है। थ् संघ के आधिपत्य की जमीन मंदिर से सटी होने के कारण कुछ ही दूर पर मंदिर की खाली पड़ी जमीन भी अतिक्रमण से बची हुई है। संघ की जमीन पर समय-समय पर अतिक्रमण के प्रयास हुए जो संघ के स्वयंसेवकों नेे विफल किए। जबकि संघ की जमीन के पास ही नगर निगम के प्रस्तावित सड़क मार्ग पर आज भी अतिक्रमण बरकरार है।
थ् संघ ने उच्च न्यायालय के स्थागनादेश का जिक्र करते हुए इस सम्बंध में शासन के मापदण्डों के अनुसार गणना कर 24.45 रुपए करोड़ का मुआवजा बताया। लेकिन यह कभी नहीं व कहीं नहीं कहा गया कि 24 करोड़ रु. राशि के एवज में संघ भूमि देने के लिए तैयार है।
वस्तुत: मंदिर की आवश्यकता बताना एक बहाना मात्र है। सच्चाई तो यह है कि वर्षों से संघ इस भूमि का उपयोग अपने दैनंदिन कार्यक्रमों व विशिष्ट उत्सवों आदि के लिए करता रहा है। इसलिए यह भूमि संघ विरोधियों की नजर में हमेशा से खटकती रही है। पिछले कुछ समय से इसे मुद्दा बनाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने का प्रयास यहां के स्थानीय विधायक व अन्य लोगों द्वारा किया जा रहा है। इस प्रकार यह प्रकरण मुख्यमंत्री द्वारा पोषित व प्रायोजित है।
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