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आरोग्य और कृषि में पंचगव्य का अमूल्य योगदानगत दिनों नागपुर में एक अत्यंत रोचक व ज्ञानवर्धक संगोष्ठी सम्पन्न हुई। पंचगव्य-आयुर्वेद और कामधेनु कृषि तंत्र पर आधारित इस संगोष्ठी का आयोजन गो विज्ञान अनुसंधान केन्द्र, देवलापार (नागपुर), केन्द्रीय औद्योगिक अनुसंधान परिषद् और महात्मा गांधी ग्रामीण अनुसंधान परिषद् (वर्धा) ने संयुक्त रूप से किया था। संगोष्ठी में देशभर के 150 से अधिक वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों एवं कृषि विद्वानों ने भाग लिया। इसमें 40 से अधिक शोध-निबंध प्रस्तुत किए गए। संगोष्ठी के माध्यम से पंचगव्य के औषधीय गुणों की खोजपूर्ण जानकारी का प्रसार हुआ। कृषि तंत्र में गोबर-गोमूत्र के महत्व का विधिवत वैज्ञानिक विश्लेषण हुआ और गोवंश के प्रति शा·श्वत संदेश की जानकारी प्राप्त हुई। इस बात की आवश्यकता महसूस की गई कि इस विषय पर जागरूकता बढ़ाई जाए और इस क्षेत्र का विकास हो।असाध्य रोगों के इलाज में पंचगव्य और आयुर्वेद के सफल प्रभाव की आज चहुंओर स्वीकार्यता है। इनकी गुणवत्ता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगा है। गांव-गांव में गोबर-गोमूत्र की उपयोगिता और कृषि क्षेत्र में इनकी क्षमता का सदुपयोग करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। संगोष्ठी में कृषितंत्र में गोवंश की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया। आज इस क्षेत्र में कार्यरत वैज्ञानिकों एवं संस्थाओं में एक नया विश्वास जगता दिखाई दे रहा है।राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान में आयोजित हुई इस संगोष्ठी का उद्घाटन शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय (नागपुर) के संस्थापक वैद्य नरहरि मंगोले ने किया। उद्घाटन कार्यक्रम में वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. आर. गहूकर व राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. ऋषि नारायण सिंह उपस्थित थे।संगोष्ठी में मुख्य वक्ता थे वैद्य शेलोटे, श्री ओम प्रकाश गुप्त, श्री भंवरलाल कोठारी, डा. आर.के. गुप्ता, डा. तपन चक्रवर्ती, डा. हेमन्त पुरोहित, डा. रामस्वरूप चौहान, अधिवक्ता मोहन परचुरे, वैद्य श्री छंगाणी तथा आसाराम बापू केन्द्र के डा. मोहन। कार्यक्रम का संचालन गोविज्ञान अनुसंधान केन्द्र के संचालक श्री सुनील मानसिंगका ने किया। (वि.सं.के., नागपुर)26
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