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मगर वजह क्या थी? बाल दिवस या कुछ और?
हिमालय परिवार द्वारा 14 नवम्बर का दिन संकल्प स्मरण दिवस के रूप में मनाया गया। इस अवसर पर एक संगोष्ठी आयोजित की गई। उल्लेखनीय है कि सन् 1962 में इसी दिन भारतीय संसद द्वारा एक प्रस्ताव पारित कर चीन द्वारा हड़पी गई भारतीय भूमि की वापसी हेतु संकल्प लिया गया था। गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए राज्यसभा सदस्य श्री भारतेन्दु प्रकाश सिंहल ने कहा कि आज देश को शक्तिशाली बनाने की आवश्यकता है, तभी हम किसी से बातचीत कर सकते हैं और अपने अधिकार मांग सकते हैं। अन्यथा कोई भी संकल्प केवल कागजी बनकर रह जाएगा।
हिमालय के आस-पास के क्षेत्रों पर मंडरा रहे खतरों के प्रति आगाह करते हुए हिमालय परिवार के संयोजक और रा.स्व.संघ के सह-सम्पर्क प्रमुख श्री इन्द्रेश कुमार ने कहा कि कैलास-मानसरोवर यात्रा मार्ग के व्यवधानों को समाप्त करने की दिशा में संयुक्त राष्ट्र संघ को ठोस कदम उठाना चाहिए।
गोष्ठी में पंजाब पुलिस के पूर्व महानिदेशक श्री पी.सी. डोगरा ने कहा कि भारत सरकार चीन सरकार पर दबाव बनाए कि वह तिब्बत की निर्वासित सरकार से बातचीत कर समस्या का मानवीय समाधान निकाले तथा संयुक्त राष्ट्र संघ तिब्बत को शांति क्षेत्र घोषित कर वहां की सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा एवं संवद्र्धन की व्यवस्था सुनिश्चित करवाए।
गोष्ठी में एयर मार्शल (सेवानिवृत्त) रमेश चन्द्र वाजपेयी ने कहा, 1899 में सीमा निर्धारण के लिए मेकमोहन रेखा खींची गयी। ब्रिटिश सरकार ने चीन को नोटिस देकर बुलाया। चीन ने न उत्तर दिया और न उसमें शामिल हुआ। ब्रिटिश सरकार ने स्वयं अपनी ओर से उस रेखा को मान्यता प्रदान कर दी। और इस पर न कोई चौकी बनाई और न किसी को देखरेख के लिए रखा गया। यह काम केवल कागजों और नक्शों पर होता रहा। किसी ने भी सीमा पर जाकर नहीं देखा कि यह रेखा कहां से खींची गयी तथा कहां-कहां से होकर गुजरती है। द प्रतिनिधि
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