|
भारत के सूचना-प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों ने कहा-
चीन से सावधानी की जरूरत
भारत अगर चीन के सामने किसी मुद्दे पर सिर ऊंचा करके खड़ा होता है, तो वह क्षेत्र है सूचना प्रौद्योगिकी का। भारत के कम्प्यूटर इंजीनियरों और सूचना वैज्ञानिकों ने बिना सरकारी मदद और कृपा के दुनिया में अपनी धाक जमाई। जब धाक जम गई और सिक्का चल निकला तो सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय बनाया। पर आज स्थिति उतनी आशाजनक नहीं रह गई है जितनी दिखाई जाती है। चीन बहुत तेजी से सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। वर्तमान स्थितियां यदि जारी रहीं तो चीन हमारी मदद से ही कुछ समय में हमसे आगे निकल जाएगा। निम्नलिखित तथ्य हमारी आंखें खोलने के लिए पर्याप्त होने चाहिएं।
1. चीन में कम्प्यूटर साफ्टवेयर का बहुत शक्तिशाली और स्वस्थ बाजार है। यह इसलिए भी स्वाभाविक है, क्योंकि चीन में भारत की तुलना में कई गुणा बड़ा कम्प्यूटर हार्डवेयर बाजार है। चीन में सूचना प्रौद्योगिकी संपूर्णत: चीनी भाषा में है। इसलिए वह अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पद्र्धा में थोड़ा पीछे है। भारतीय साफ्टवेयर इंजीनियरों की विश्वव्यापी सफलता का एक कारण अंग्रेजी भाषा में उनकी स्वाभाविक कुशलता है।
2. सन् 2001-2002 में भारत के कुल 10 अरब डालर मूल्य के साफ्टवेयर उत्पादन में से 75 प्रतिशत निर्यात किया गया और केवल 25 प्रतिशत स्वदेश में इस्तेमाल हुआ।
3. 2000-2001 में चीन का कुल साफ्टवेयर उत्पादन 10 अरब डालर के लगभग था जिसमें से लगभग सारे का सारा चीन में ही खप गया और सिर्फ 7 करोड़ डालर का साफ्टवेयर ही निर्यात हुआ।
4. चीन में साफ्टवेयर का विकास करने वाले भारत की अपेक्षा 20 प्रतिशत सस्ती दरों पर उपलब्ध है। जिस समय चीन के साफ्टवेयर इंजीनियर अंग्रेजी में कुशल हो गए, उसका सीधा असर भारतीय साफ्टवेयर कंपनियों पर पड़ेगा।
5. भारत ने हार्डवेयर उत्पादन को पूरी तरह से उपेक्षित किया है। उल्लेखनीय तथ्य यह है कि चीन में प्रति हजार 20.6 निजी कम्प्यूटर हैं जबकि भारत में प्रति हजार केवल 5.7 कम्प्यूटर हैं।
6. सन् 2001 में चीन में कुल 2 करोड़ 75 लाख निजी कम्प्यूटर थे जबकि भारत में यह आंकड़ा 60 लाख का बताया जाता है।
7. चीन में कम्प्यूटर शिक्षा पर प्रतिव्यक्ति खर्च 8.9 डालर है तो भारत में सिर्फ 2.4। भारत सूचना प्रौद्योगिकी पर सकल घरेलू उत्पाद का 0.5 प्रतिशत खर्च कर रहा है जबकि चीन अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1.1 प्रतिशत खर्च करता है। भारत सरकार सूचना-प्रौद्योगिकी की आवश्यकताओं को उसके समग्र रूप में नहीं ले रही है। यह देश के विख्यात एवं स्वतंत्र विशेषज्ञों का मानना है। कम्प्यूटर हार्डवेयर के प्रति सरकार का सौतेला व्यवहार भारत के सूचना प्रौद्योगिकी शिखर-पुरुषों को समझ नहीं आता। उदाहरण के लिए कम्प्यूटर पर चीन में कुल कर 17 प्रतिशत है जबकि भारत में 32 प्रतिशत। भारत के सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों का स्पष्ट मत है कि चीन सस्ते में भारत से तकनीकी जानकारी और प्रौद्योगिकी प्राप्त कर उससे बहुत आगे निकल जाएगा। कुछ निम्नलिखित तथ्य चौंकाने वाले हैं-
1. बंगलौर में हुआ वेई टेक्नोलॉजी नामक कम्पनी में 50 प्रतिशत कर्मचारी चीनी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दुनियाभर की कम्पनियां उचित दरों पर अच्छा काम करने वाले भारतीय साफ्टवेयर इंजीनियरों की सेवाओं का उपयोग करने बंगलौर आती हैं। स्पष्ट है कि हुआ वेई कम्पनी भारतीयों जैसी विशेषज्ञता के गुर हासिल करने के लिए चीनियों को यहां ला रही है।
2. पिछले वर्ष जब चीन के प्रधानमंत्री जू रांेगजी भारत आए थे तो उन्होंने अपना अधिकतम समय बंगलौर में बिताया था। वहां जब संवाददाताओं ने उनसे पूछा कि साफ्टवेयर क्षेत्र में भारत की ताकत के स्तर तक पहुंचने के लिए चीन को कितना समय लगेगा तो उनका उत्तर था- 5 वर्ष। वास्तव में सन् 2000 तक भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी के लिए चीन के प्रतिनिधिमण्डल शायद ही कभी आते थे। लेकिन सन् 2002 में सिर्फ बंगलौर में ही चीन के 5 प्रतिनिधिमण्डल आए। और अब भारत चीन को सूचना प्रौद्योगिकी में सब कुछ सिखाने में आगे होने के लिए खुद चीन जा रहा है। भारतीय सूत्रों का कहना है कि चीन हमसे नहीं सीखेगा तो किसी और से सीखेगा, उसे सीखने से रोका नहीं जा सकता। हम केवल इस अवसर का इस्तेमाल अपनी कम्पनियों के लाभ के लिए कर रहे हैं।
28
टिप्पणियाँ