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द दीनानाथ मिश्र
दिल्ली पर मुझे गर्व है। दिल्लीवासी होकर इसलिए गर्व नहीं है कि दिल्ली हरी-भरी है, विशाल है, यहां राजघाट, इंदिरा गांधी विमान पत्तन है, राजीव चौक है, सब्जी मंडी है, पराठे वाली गली है, राम कृष्ण पुरम है, अरविन्द मार्ग है। इसलिए भी गर्व नहीं है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दो करोड़ लोग रहते हैं। मेरे गौरवान्वित होने का तो बस एक ही कारण है कि यहां औरंगजेब रोड है। आप कहेंगे कि यहां बाबर, हुमायूं, जहांगीर, अकबर, शाहजहां वगैरह के नाम पर भी रोड हैं। इन नामों पर सड़क होने का कोई खास मतलब नहीं। वे शासक थे उनमें से एक आक्रमणकारी भी था। उसने मुगल खानदान के शासन की नींव रखी थी मगर औरंगजेब की बात ही कुछ और है। वह श्रेष्ठ कोटि का ओसामा-बिन-लादेन था। तालिबानों से पहले का तालिबान। उसकी क्रूरता की नफासत लाशानी है। उसने अपने परिवारजनों के साथ भी खूबसूरती के साथ बेमिसाल क्रूरता निभाई।
मेरा अपना ख्याल है कि तलवार के बल पर धर्मान्तरण करने में उसने जो रिकार्ड बनाया है, किसी दूसरे बादशाह ने नहीं बनाया। आज कश्मीर में जो धर्मान्तरित गूजर राजपूत और दूसरी जातियां रहती हैं, वे सब उसकी तलवार के बनाए मुसलमान हैं। उसने हिन्दू बने रहने का जुर्म करने वालों पर जजिया लगा दिया। मंदिरों पर तो वह बेतरह मेहरबान था। काशी और मथुरा के मंदिर पर बनी मस्जिदें उसी की मेहरबानी है। वह दयालु शासक था। उसने अपने बाप की जान ही नहीं बख्शी बल्कि कैदखाने में रहने की छूट भी दे दी थी। उससे बस एक चूक हुई। संगीत को उसने दस फीट की कब्रा खुदवाकर दफना दिया। काश वो चालीस फीट के गड्ढे में दफन करता तो आज संगीत ने इतना उत्पात न मचाया होता। वह अपने खानदान का सबसे महान हिन्दू दमनकारी था। औरंगजेब को ही गौरवान्वित करने के लिए हमने आजादी के बाद औरंगजेब रोड का नामकरण किया। मुझे इस पर गर्व है। यह तथ्य हमारे सेकुलरवाद का सबसे बड़ा प्रमाण है। मुगल शासकों में दो तरह के शासक थे। एक तो अकबरवादी और दूसरे औरंगजेबवादी। मुसलमान भी दो तरह के होते हैं। अकबरवादी मुसलमान शांतिपूर्वक साथ-साथ रहना जानते हैं। लेकिन औरंगजेबवादी मुसलमानों को साथ-साथ रहना गवारा नहीं रहा है। पाकिस्तान इसी का प्रमाण है। आज भी औरंगजेबवादी मुसलमान केवल कश्मीर में ही नहीं, देश के दूसरे भागों में भी हैं। कश्मीर में अकबरवादियों पर वे कई बार भारी पड़ते हैं। बाकी जगह वे भारी नहीं पड़ते। सिर्फ जहां तहां दंगाई बन जाते हैं। मुझे औरंगजेब रोड पर फक्र इसलिए है, क्योंकि इस नामकरण से हम देशभर में औरंगजेबवादी मुसलमानों को प्रेरणा प्रदान करते हैं। औरंगजेब मार्ग पर चलने की छूट देते हैं। यहीं कारण है कि कुछ लोग धड़ल्ले से औरंगजेब पथ पर चल रहे हैं। यह हमारे सेकुलरवाद के विस्तार की सीमा है। हिन्दू द्रोह से लेकर हिन्दू दमन तक, सब कार्यकलापों को औरंगजेब रोड मान्यता प्रदान करता है। भला ऐसे औरंगजेब रोड पर मुझे गर्व क्यों नहीं होगा? उस तरफ से आते-जाते मैं इसीलिए औरंगजेब रोड को नमन करना नहीं भूलता।
औरंगजेब रोड का एक सिरा जनपथ से भी जुड़ता है। जनता के इस पथ को किसी गुणी ने ही औरंगजेब रोड से जोड़ा होगा। ताकि औरंगजेबवादियों को जनता का बेफिक्र समर्थन मिल जाए। जब औरंगजेब रोड स्वीकार हो सकता है तो औरंगजेबी भी स्वीकार हो सकते हैं। औरंगजेबवादी भी स्वीकार्य हो सकते हैं। हो क्या सकते हैं? हो रहे हैं। यह हमारी सहिष्णुता की पराकाष्ठा है। कुछ लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति होती है। कुछ समाजों में भी होती है। कुछ कौमों में भी होती है। कुछ सभ्यताओं में भी होती है। हम किस्तों में आत्महत्या कर ही रहे हैं। इसीलिए मैं अपनी सहिष्णुता पर गर्व करता हूं। अपने सेकुलरवाद पर गर्व करता हूं। अपने औरंगजेब रोड पर गर्व करता हूं। बल्कि हमारा तो इरादा है कि हम इस पर गर्व करते रहें इतना गर्व करें कि किस्तों में होने वाली आत्महत्या की आखिरी किस्त भी चुका दें। शर्म से डूब मरने के बजाय गर्व से डूब मरना अच्छा है।
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