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नयी दिल्ली में सम्पन्न हुई दो दिवसीय प्रथम हिमालयी संस्कृति संसद

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Apr 5, 2003, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Apr 2003 00:00:00

दिल्ली के द्वार पर हिमालय की दस्तक–विनीता गुप्तादिल्ली में दो संसद एक साथ। एक में राजनीतिक उठा-पटक और बहस। और दूसरी संसद में देश के सुरक्षा प्रहरी हिमालय की चिंता। गत 19-20 अप्रैल को नई दिल्ली के चांदीवाला एस्टेट परिसर में प्रथम हिमालयी संस्कृति संसद का आयोजन किया गया। इस संसद के माध्यम से जैसे सम्पूर्ण हिमालय अपनी समस्याएं लेकर स्वयं दिल्ली के द्वार पर दस्तक देने आ पहुंचा था। देश की रक्षा करनी है तो हिमालय को बचाना होगा और इस अभियान में प्राणपण से जुटा है, हिमालय परिवार। वर्ष 2002-2003 को हिमालय वर्ष घोषित कर हिमालय परिवार ने जनजागरण का जो अभियान शुरू किया, उसी श्रृंखला की एक कड़ी थी प्रथम हिमालयी संस्कृति संसद।हिमालयी संस्कृति संसद में न सिर्फ देशभर से अपितु विदेशों से आए विद्वानों ने भी भाग लिया। संसद में हिमालय परिवार के सदस्य देशों-नेपाल, तिब्बत, भूटान और अफगानिस्तान से आए प्रतिनिधि मंडलों ने भाग लिया। नेपाल के प्रतिनिधि मंडल में 17, तिब्बती प्रतिनिधि मंडल में 38, भूटान से 6 और अफगानिस्तान से 2 प्रतिनिधि आए थे। संसद में देश-विदेश से कुल मिलाकर 550 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।संसद के उद्घाटन सत्र में कार्यक्रम की रूपरेखा और पृष्ठभूमि बताते हुए हिमालय परिवार के संयोजक श्री इंद्रेश कुमार ने कहा कि हिमालय परिवार कोई आंदोलन नहीं, बल्कि एक विचार है, यज्ञ है, राजनीति से परे सबको साथ लेकर चलने वाली संस्था है जिसमें हिन्दू, बौद्ध, सिख, ईसाई और मुसलमान सभी के प्रतिनिधि साथ मिलकर हिमालय संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिमालय पर सांस्कृतिक आक्रमण की शुरुआत 1850 में ही हो चुकी थी जब इसके सागर माथा शिखर का नाम माउंट एवरेस्ट रख दिया गया था।संसद को सम्बोधित करते हुए विश्व हिन्दू परिषद् के अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष श्री अशोक सिंहल ने कहा कि हिमालय की वर्तमान स्थिति देखकर लगता है, विश्व की वे शक्तियां जो पूरे विश्व पर अपना आधिपत्य जमाना चाहती हैं, हिमालय क्षेत्र में पैठ बनाने लगी हैं। इन विदेशी शक्तियों से हिमालय और भारत की रक्षा करनी है तो हिमालय में रहने वाले हिन्दू और बौद्ध समाज के लोगों को मिलकर कार्य करना होगा। हमारा यह समाज चट्टान की तरह खड़ा हो जाए तो विदेशी शक्तियों की मंशा कभी पूरी नहीं होगी। श्री सिंहल संसद के समापन सत्र को सम्बोधित कर रहे थे.इसी सत्र को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन ने हिमालय को पूरे राष्ट्र के पर्यावरण का नियंत्रक बताया। उन्होंने कहा कि हिमालय हमारा पिता भी है और माता भी है। पिता की भांति वह हमारी रक्षा करता है, तो माता की भांति हमारा पोषण। हिमालय से निकलने वाली नदियों का जल पूरे देश का पोषण करता है। किन्तु आज चिन्ता का विषय है कि हिमालय की दैवी शक्तियों पर आसुरी शक्तियों का आक्रमण हो रहा है। इन आसुरी शक्तियों का सामना करने के लिए हमें वहां साम्राज्यवाद, साम्यवाद के खिलाफ जनजागरण करना होगा।संसद को संबोधित करते हुए शारदा पीठाधीश्वर द्वारिका के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम ने कहा कि हिमालय पर विचार करने का अर्थ सम्पूर्ण मानवता पर विचार करना है, क्योंकि हिमालय से मिलने वाली ऊर्जा मनुष्य की आध्यात्मिक और भौतिक विकास का अजस्र स्रोत है, इस स्रोत की रक्षा करनी होगी। केन्द्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री जगमोहन ने हिमालय को भारतीय संस्कृति का पर्याय कहा। उन्होंने बताया कि सरकार देशभर में कुछ सांस्कृतिक केन्द्र विकसित कर रही है। ये सांस्कृतिक केन्द्र देश को एक सूत्र में बांधने के कार्य में महती भूमिका निभाएंगे। उन्होंने लालकिले में एक ऐसा संग्रहालय बनाने की घोषणा की, जिसमें भारतीय संस्कृति की रक्षा और विकास के लिए मर मिटने वाले शहीदों के चित्रों की स्थायी प्रदर्शनी लगायी जाएगी।नेपाल से आए श्री किशोरी महतो ने हिमालय पर हो रहे सांस्कृति आक्रमण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि विदेशी स्वयंसेवी संगठन हिमालय पर हमला कर रहे हैं, इसका कारण है कि हम ओंकार परिवार अर्थात् हिमालय परिवार के सदस्य एकसूत्र में बंधकर नहीं रहे। यह संसद हमारे बीच खड़ी दीवारों को ढहाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।बौद्ध, वैदिक विद्वान एवं निर्वासित तिब्बती संसद के प्रमुख प्रो. सामदांग रिन्पोचे ने कहा कि यदि हम अब नहीं संभले तो हिमालय नहीं रहेगा। हिमालय को बचाने के लिए हमें वै·श्वीकरण का रास्ता छोड़कर स्वदेशी और स्वावलंबी रास्ता अपनाना होगा।संसद को संबोधित करते हुए केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्री आई.डी.स्वामी ने सीमाओं पर हो रही घुसपैठ रोकने के लिए सीमा प्रबंधन पर विशेष बल दिया। दो दिवसीय हिमालयी संस्कृति संसद में हिमालय की सुरक्षा एवं पहचान को बढ़ते खतरे- कारण एवं उपाय, हिमालय में प्राकृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक समस्या एवं समाधान, हिमालय में उपलब्ध ऊर्जाओं का संरक्षण, संवद्र्धन एवम् उपयोग आदि विषयों पर तीन अलग-अलग सत्रों में विस्तार से चर्चा हुई। श्री कुप्.सी.सुदर्शन उद्घाटन से लेकर समापन समारोह और सभी चर्चा सत्रों में दोनों दिन उपस्थित रहे। सत्रों को श्री बद्रिका श्रमपीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम, प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान भंत्ते ज्ञानजगत, महाबोधि सोसायटी (सारनाथ) के श्री सुमेधा थ्योरो, वि·श्व हिन्दू परिषद् के विदेश विभाग के प्रभारी श्री भूपेन्द्र कुमार मोदी, भारतीय बौद्ध विद्वान श्री टी.के. लोचन टुल्कू रिन्पोचे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख श्री श्रीकान्त जोशी, तिब्बत की निर्वासित संसद की उपसभापति सुश्री डोल्मा गेरी, बौद्ध मत के करमा करग्युद सम्प्रदाय के प्रमुख पू. ताई सीतू रिन्पोचे, वरिष्ठ पत्रकार श्री नन्द किशोर त्रिखा, विजय क्रांति सहित अनेक विद्वानों ने सम्बोधित किया।संसद ने निम्न तीन मुद्दों पर विशेष बल दिया गया-1. पाकिस्तान के कब्जे वाली शारदा पीठ की मुक्ति।2. कैलास-मानसरोवर और तिब्बत की स्वायत्तता।3. हिमालयी संस्कृति की पहचान बचाओ, विदेशी भगाओ।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार प्रमुख श्री श्रीकांत जोशी के शब्दों में इस संसद के माध्यम से स्वयं हिमालय ने दिल्ली के द्वार पर दस्तक दी है। इस दस्तक से ही हिमालय को देखने की हमारी दृष्टि बदलेगी। लोग शांति के लिए हिमालय की तरफ जाते हैं, लेकिन आज हिमालय स्वयं ही अशांत है, इसलिए हिमालय की तरफ ध्यान देना आज हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। दिल्ली के द्वार पर दस्तक देकर हिमालयी संस्कृति संसद तो समाप्त हो गयी, लेकिन इससे तमाम ऐसे प्रश्न उठ खड़े हुए जिनका शीघ्र उत्तर खोजना और उस दिशा में प्रयास करना आवश्यक है।24

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