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-हरीश गुप्ता, सम्पादक, दैनिक भास्कर
2003 में पत्रकारिता के क्षेत्र में कई नए आयाम जुड़े। स्वयं की खोजी पत्रकारिता की बजाय दूसरों की खोजबीन पर आधारित रपटें ज्यादा छायी रहीं, जैसे टेप काण्ड। यह खोजी पत्रकारिता नहीं थी। नए वर्ष में मीडिया अपनी वि·श्वसनीयता पर अंगुली नहीं उठने देगा, ऐसा मुझे विश्वास है। इस काण्ड के बाद यदि इस देश को बचाना है, प्रजातंत्र को बचाना है तो सभी राजनीतिक दलों को यह सोचना होगा कि राजनीतिक चन्दे का हम क्या करें। क्योंकि इन घोटालों का एक ही सन्देश है कि राजनीतिक चन्दों को बन्द करना होगा। इस वर्ष को अटल जी के लिए स्वर्णिम युग कहा जा सकता है। अटल जी पिछले पांच साल से प्रधानमंत्री हैं, पर मेरे विचार से यह वर्ष उनके लिए निष्कंटक रहा, उनकी सारी चुनौतियां समाप्त हो गईं। क्योंकि इस साल के पहले तक लोग अटकलें लगा रहे थे कि पता नहीं अटल जी अपना कार्यकाल पूरा कर पाएंगे या नहीं। लेकिन इस साल सारी अटकलें समाप्त हो गईं और अटल जी के लिए यह वर्ष स्वर्णिम रहा। देश की अर्थव्यवस्था के लिए यह वर्ष अच्छा रहा। विदेशी मुद्रा भण्डार 50 अरब, 60 करोड़ रुपए को पार कर गया है। हां, रोजगार के साधन घटे हैं, पर इस उदारीकरण की दौड़ में जो कमियां हैं उनसे समझौता करके ही चलना पड़ेगा। विदेशी मुद्रा भण्डार में वृद्धि का मुख्य कारण राजनीतिक स्थायित्व है। लोगों ने पहली बार यह महसूस किया कि हमारे यहां गैर कांग्रेसी सरकार न केवल बन सकती है, बल्कि चल भी सकती है।
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