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द डा. रवीन्द्र अग्रवालकेन्द्रीय मंत्रिमंडल ने कृषि उपज से सम्बंधित जो महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं, उनमें से कुछ निर्णय तो वर्षों पूर्व ही ले लिए जाने चाहिए थे। ऐसा ही एक निर्णय है किसान को भंडार गृह की रसीद के आधार पर ऋण उपलब्ध कराने का मामला। समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद के कारण बढ़ती सब्सिडी 15 वर्ष पूर्व भी उतनी ही चिंता का विषय थी जितनी कि आज। 1980-81 में जो खाद्यान्न सब्बिडी 650 करोड़ रुपए थी वह 1985-86 में बढ़कर 1650 करोड़ रुपए हो गई थी।तभी यह महसूस किया जाने लगा था कि बढ़ते खाद्यान्न उत्पादन को संभाल पाना भारतीय खाद्य निगम की सामथ्र्य से बाहर है। 1986 में रबी की फसल के बाजार में आने के समय ही खाद्य निगम को यह चिंता सताने लगी थी कि पिछले भण्डारण से कैसे निपटा जाए। कुछ वर्ष पहले केन्द्र सरकार ने भारतीय खाद्य निगम से खाद्यान्नों के भंडारण और विपणन के दायित्व को वापस लेने के सम्बन्ध में श्रीभानु प्रताप सिंह के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय समिति बनाई थी। समिति ने 1990 में अपनी रपट में ग्रामीण गोदामों की श्रृंखला बनाने का सुझाव दिया था, जिसमें जमा अनाज की जमानत के आधार पर उसे ऋण मिल सके। समिति का मानना था कि इस व्यवस्था से खाद्यान्नों के बाजार मूल्य में बड़े पैमाने पर हो रहे उतार-चढ़ाव को नियंत्रित किया जा सकेगा। साथ ही इससे किसानों को घाटे में अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर भी नहीं होना पड़ेगा। गोदाम में रखी फसल पर वह लाभकारी मूल्य प्राप्त कर सकता है।संसाधनों की कमी के नाम पर भानु प्रताप समिति की रपट पर पिछले एक दशक में कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। यह दीगर बात है कि सब्सिडी के नाम पर सलाना अरबों रुपए व्यर्थ खर्च होते रहे।खैर देर आयद दुरुस्त आयद। परन्तु सरकार के इस फैसले के क्रियान्वयन में कई रुकावटें हैं। सबसे बड़ी रुकावट है गोदामों का अभाव। यह गोदाम कौन बनाएगा? क्या निजी क्षेत्र? इस दृष्टि से अभी तक निजी क्षेत्र का व्यवहार संदिग्ध है। और अगर वह गोदाम बनाए भी तो क्या वह पंचायत स्तर पर गोदाम बनाएगा? पंचायत स्तर पर गोदाम बनाए बिना आम किसान को इस सुविधा का लाभ मिल पाना संदिग्ध है। अगर ऐसे गोदाम शहर केन्द्रित रहे तो इस सुविधा का लाभ भी वही किसान उठा पाएगा जिसे हरित क्रांति का लाभ उठाने के लिए आरोपित किया जाता है।किसान को गोदाम सुविधा उपलब्ध कराकर ही यह नहीं मान लेना चाहिए कि किसान को अब उसकी उपज का लाभकारी मूल्य मिल ही जाएगा। बहुत से किसान ऐसे भी होंगे जिनमें इतनी सामथ्र्य नहीं है कि वे अपनी फसल गोदाम में रख सकें। वे अपनी फसल बाजार में बेचना चाहेंगे।यही नहीं मौसम की अनिश्चितता के कारण भी सरकारी खरीद आवश्यक है। मौसम की जरा सी गड़बड़ी या अन्तरराष्ट्रीय परिस्थितियों से किसी भी समय खाद्यान्न की वर्तमान सुविधाजनक स्थिति खतरे में पड़ सकती है। दूसरे कमजोर वर्गों के लिए खाद्यान्न आपूर्ति के लिए भी सरकार अपने दायित्व से नहीं मुकर सकती। देश की खाद्यान्न सुरक्षा को ध्यान में रखकर देश के खाद्यान्न बाजार को बाजारी ताकतों के हवाले नहीं करना चाहिए।15
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