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प्रदर्शन कर रही भीड़ पर पथराव, अश्रु गैस और गिरफ्तारियांसाधु-संतों ने मोर्चा संभालागोहत्या करने वाले ने अपराध कबूला, लेकिन पुलिस नेगोहत्या का विरोध करने वाले 30 लोगों को गिरफ्तार कियाद आनन्द गुप्तागोहत्या के विरोध में साधु-संतों एवं ग्रामीणों का विशाल प्रदर्शन पिछले वर्ष बाड़मेर जिले की बामणोर ग्राम पंचायत के दूधिया गांव के कुछ मुसलमानों द्वारा गाय का वध करके उसका मांस अनुसूचित जनजाति (भील) के कुछ लोगों को बकरे का मांस बताकर परोसा गया। बात खुलने पर धोरीमन्ना पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज हुआ। किंतु पुलिस की निष्क्रियता से मामला रफा-दफा हो गया। किंतु गांव की पंचायत में अभियुक्तों ने अपना अपराध स्वीकार किया तथा दंडस्वरूप एकमुश्त राशि गोशालाओं में दी गई। तीन माह पूर्व धनाऊ ग्राम में निर्माण कार्य में सहायता करने के नाम पर अनुसूचित जाति के कुछ लोगों को बुलाया गया एवं उनका धर्म भ्रष्ट करने की नीयत से एक गाय का कान काटकर उसके खून से चाय बनाकर पिलाई गई।बाड़मेर में इस तरह की छिटपुट घटनाएं हो रही थीं, किंतु बाड़मेर के तहसील चौहटन की ग्राम पंचायत सांवलासी के गांव तड़ला में 11 जून को हुई एक घटना ने पूरे जिले के गोभक्तों को हिलाकर रख दिया।देर से प्राप्त समाचार के अनुसार पुलिसथाना बाखासर के गांव सांवलासी में 10 जून को पीरू खान के मरने के बाद हुए घटनाक्रमों ने आग में घी डालने का कार्य किया। हुआ यूं कि सरदार खान के पिता पीरू खान के मरने पर मौलवी अलूदा ने उससे कहा कि पीरू खान तभी जन्नत में जा सकता है जब तुम जनाजे की दावत में शामिल हुए लोगों को गाय का मांस परोसो। 11 जून के दिन जब सरदार खान अपने सहयोगियों के साथ अपने घर में गाय काट रहा था तो अचानक उसी गांव के एक व्यक्ति भेराराम प्रजापत ने यह सब देख लिया। भेराराम ने अपने ही गांव के सवाई सिंह राजपूत को पूरी घटना बता दी। यह सुन कर सवाई सिंह, जीवा सिंह, जीवा रबारी, मोहन सिंह, कला जाट व खुद भेराराम प्रजापत सरदार खान के घर गये। घर के पास कुएं पर सरदार खान की बेटी सोढ़ी ने पूछने पर बताया कि गाय काटने की बात सही है और हमने गाय की हड्डियां कुएं में डाल दी हैं। सरदार खान ने सबके सामने अपनी गलती स्वीकार की और दण्ड कबूलने को राजी हो गया। गांव के लोगों ने कहा कि दण्ड ऐसे नहीं देंगे, तड़ला गांव की पंचायत में दोनों पक्षों के लोगों को बुलाकर पंचों द्वारा इस मामले का निपटारा होगा। मगर निश्चित दिन मुसलमानों की तरफ से कोई नहीं आया। चार दिन तक सामाजिक स्तर पर समझौता करने का कार्य चलता रहा। इस दौरान इस सम्बंध में बखासर में मुकदमा संख्या 21/2002 भी दर्ज करवाया गया। पुलिस के सामने गांववासियों ने स्वयं यह कबूला कि 11 जून को सरदार खान के घर पर 18 व्यक्तियों को गाय का मांस दावत में दिया गया था। मौलवी अलूदा ने बताया कि वह यह कार्य दो अन्य घरों पर पहले भी करवा चुका है। किंतु पकड़े गए दोषियों में मौलवी अलूदा को नाटकीय ढंग से पुलिस ने रिहा कर दिया। इस बात को लेकर 17 जून को तड़ला में चक्का जाम किया गया और मौलवी अलूदा को पुन: गिरफ्तार करने, दोषी व्यक्तियों को गिरफ्तार करने, गोहत्या की सी.बी.आई. से जांच करवाने और निर्दोष आन्दोलनकारियों के खिलाफ किए मुकदमे वापस लेने की मांग की गई।तड़ला में चक्का जाम को देखते हुए अतिरिक्त जिलाधीश महेन्द्र पारख, उपाधीक्षक कुंवर व अन्य पुलिस उच्चाधिकारियों के साथ वहां पहुंचे। उनके साथ बाड़मेर के तारातारा मठ के महाराज मोहन पुरी के शिष्य प्रतापपुरी महाराज (जो सांवलासी गोहत्या प्रकरण विरोधी समिति के संरक्षक भी हैं) व खुशालगिरी महाराज और उनके साथ 200 गोभक्त भी सांवलासी गये। गांववालों ने अधिकारियों के समक्ष कहा कि मुसलमानों द्वारा यह तर्क देना कि गऊएं आपस में लड़ते हुए 70 फुट गहरे कुंए में गिर गईं, बेबुनियाद है। यदि ऐसा हुआ होता तो गिरी गाय का मृत शरीर फूला होना चाहिए था? किंतु कुएं से केवल हड्डियां निकली थीं। हिन्दुओं का कहना था कि सरदार खान और उसके साथियों ने गाय का मांस खाकर हड्डियां गांव के कुएं में फेंक दी थीं।प्रशासन के वरिष्ठ अफसरों के आने के बावजूद इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई, जिससे नाराज होकर साधु-संतों को सड़कों पर आना पड़ा। तड़ला गांव में एक सभा के दौरान वहां आये चौहटन के पुलिस उपाधीक्षक मदन मेघवाल द्वारा डण्डे बरसाये गए। इसके जवाब में सभा में शामिल गोभक्तों ने भी पुलिस पर पथराव किया जिससे मदन मेघवाल के सर में चोट आयी। यह देखकर बाड़मेर के अतिरिक्त जिलाधिकारी महेन्द्र पारख ने लाठी, अश्रु गैस व गोली चलाने का आदेश दे दिया और 23 लोगों को गिरफ्तार किया गया तथा 30 लोगों के खिलाफ मुकदमे चलाये गये। गोभक्तों द्वारा इस संबंध में एक प्राथमिकी दर्ज करवाई गयी थी।हतोत्साहित करने वाले प्रशासन के रवैये को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी, वि·श्व हिन्दू परिषद, भारतीय जनता युवा मोर्चा, शिव सेना व साधु-संतों के आह्वान पर बाड़मेर जिले का हर कस्बा व गांव ऐतिहासिक रूप से बन्द रहा। 20 जून से 3 जुलाई तक चौहटन में एवं 28 जून से बाड़मेर में क्रमश: धरना व क्रमिक अनशन करके उक्त मांगों के ज्ञापन राज्यपाल के नाम दिए गए हैं। 4 जुलाई को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बाड़मेर आगमन पर बाड़मेर बन्द रखा गया। 17 जुलाई से बाड़मेर में जिलाधिकारी कार्यालय के सामने क्रमिक अनशन शुरू हुआ। 20 जुलाई को प्रदर्शन हुआ जिसमें भगवा वस्त्र पहने हजारों साधु-संत व 3000 से अधिक पुरुष व महिलाएं शामिल हुईं। जिलाधिकारी कार्यालय के सामने एक सभा के पश्चात 21 जुलाई से साधु-संतों व गोभक्तों का आमरण अनशन शुरू हो गया। विरोध प्रदर्शन कर रहे साधु-संतों ने प्रशासन से सांवलासी गोहत्या प्रकरण की सी.बी.आई. जांच, 30 लोगों पर गलत तरीके से लगाई गई धाराओं को वापस लेने तथा गोवध करने वाले मुसलमानों को गिरफ्तार करके कड़ा दण्ड देने की मांगें रखी हैं। इतना कुछ होने के बावजूद भी राजनीतिक नेताओं के दबाव में आकर प्रशासन एवं पुलिस गोहत्या प्रकरण को झूठा साबित करने पर तुली हुई है। गवाहों के बयान उनके कहे अनुसार नहीं बल्कि पुलिस की मर्जी से दर्ज किये जा रहे हैं।26
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