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नेताओं और सरकारी अधिकारियों के कारण उपेक्षित आतंकवाद पीड़ित

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Oct 11, 2002, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Oct 2002 00:00:00

कहां की राहत, कैसी राहत?यह एक कटु सत्य है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं के शिकार आज भी उपेक्षित हैं, जबकि रक्षा संबंधी खर्चों के लिए केन्द्र सरकार से उसे विगत छ: वर्षों में 2000 करोड़ रुपये की विशाल राशि प्राप्त हुई है। 500 से अधिक आतंकवाद-पीड़ित अभी भी सहायता-राशि के लिए राज्य सरकार का मुंह देख रहे हैं, वहीं आतंकवादी घटनाओं में मारे गए लोगों के ऐसे सैकड़ों परिवार हैं, जिन्हें सरकारी नौकरी दी जानी अभी बाकी है। यह एक सामान्य नियम है कि आतंकवादी घटनाओं में मृतकों के संबंधियों को राज्य सरकार एक लाख रुपये और किसी एक को एक सरकारी नौकरी देगी। विगत छ: वर्षों में 5000 से अधिक नागरिक आतंकवादी हिंसा में मारे गए। उनमें से 500 से अधिक पीड़ित अभी भी सहायता राशि प्राप्त नहीं कर पाए हैं। इस विलंब में मुख्य कारण संबंधित अधिकारियों द्वारा मामले को लटकाए रखना ही है। हालांकि पुलिस और राजस्व अधिकारियों ने सभी मामले अपने स्तर पर निबटा दिए हैं, किंतु राजनीतिक हस्तक्षेप और उपेक्षा के कारण मामला लटका हुआ है। इसी प्रकार 3000 से अधिक लोग अभी नौकरियों के लिए प्रतीक्षारत हैं।सरकार ने इस विलंब के लिए रोजगार की कमी होने की बात कही है। परंतु नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कुछ और ही दावा किया है। उसके अनुसार गत छ: वर्षों में उनकी सरकार ने डेढ़ लाख से अधिक बेरोजगार नवयुवकों को नौकरियां दी हैं। फिर क्या कारण है कि आतंकवाद-पीड़ितों को प्राथमिकता नहीं दी गई। उल्लेखनीय है कि राज्य में केंद्र सरकार द्वारा रक्षा संबंधी खर्च के लिए दी जाने वाली राशि में निरंतर वृद्धि हो रही है। 1995-96 में जहां यह राशि 129.15 करोड़ रुपए थी, वहीं 2002 में यह 500 करोड़ से भी अधिक पहुंच गई। केंद्र द्वारा दिए गए धन को रक्षा संबंधी लगभग दो दर्जन प्रमुख मदों में खर्च करना होता है। जैसे आतंकवाद पीड़ितों को सहायता राशि प्रदान करना, शरणार्थियों की व्यवस्था, सशस्त्र बलों की व्यवस्था, पुलिस सैनिक अधिकारियों की व्यवस्था आदि। किंतु नियंत्रक और महालेखाकार, भारत सरकार ने 2001 की अपनी रपट में इसमें हुई अनेक अनियमितताओं का उल्लेख किया है। रपट में कहा गया है कि रक्षा संबंधी यह धनराशि अनावश्यक और रक्षा से इतर कार्यों में खर्च की जा रही है। इस राशि से कूलर, वातानुकूलन यंत्र, फ्रिज, रंगीन टी.वी., कालीन, विद्युत उपकरण आदि खरीदे जा रहे हैं। सैनिकों या पुलिस चौकियों के लिए नहीं, बल्कि राजनीतिज्ञों और अन्यान्य प्रभावी लोगों जैसे मंत्रियों, वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों, विधायकों आदि के निजी घरों को सजाने के लिए।17

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