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उ.प्र. में तीसरी बार

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Oct 3, 2002, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 03 Oct 2002 00:00:00

खण्डित जनादेशद सर्वेश कुमार सिंहउत्तर प्रदेशकुल सीटें …………………………403समाजवादी पार्टी ………………….143बहुजन समाज पार्टी ………………..98भारतीय जनता पार्टी ……………….88कांग्रेस ……………………………….25लोकदल ……………………………..14राष्ट्रीय क्रांति पार्टी ……………………4अपना दल …………………………..3जनता दल (यू) …………………….2माकपा ………………………………2लोकतांत्रिक कांग्रेस ………………….2लोकतांत्रिक जनता पार्टी ……………..1परिवर्तन दल ………………………….1नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी …………….1जनता पार्टी ………………………….1हिन्दू महासभा ……………………….1लोक परिवर्तन दल …………………1निर्दलीय……………………………….13उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में सरकार बनाने का स्वप्न देख रही भाजपा को प्रदेश के मतदाताओं ने पहले से तीसरे नम्बर पर पहुंचा दिया है। भाजपा गत तीन विधान सभा चुनाव 1991,1993 एवं 1996 से पहले स्थान पर थी। आज वह बसपा से भी पीछे हो गई है। लगातार दूसरे स्थान पर रही सपा प्रदेश में सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई है जबकि बसपा तीसरे से दूसरे स्थान पर आ गई है। कांग्रेस अभी भी पूर्व की भांति चौथे स्थान पर है। प्रदेश में इस तरह का खण्डित जनादेश लगातार तीसरी बार आया है। इस स्थिति में जहां सपा, बसपा उल्लसित हैं, वहीं भाजपा अपने खराब प्रदर्शन का विश्लेषण कर रही है। प्रदेश में इस तरह का जनादेश जातिवादी वर्चस्व और एक वर्ग के साम्प्रदायिक आधार पर मतदान के कारण आया है। प्रदेश में लगातार राजनीतिक अस्थिरता के लिए ये दो कारण जिम्मेदार हैं।उत्तर प्रदेश में इस बार के चुनाव परिणाम ने जो स्पष्ट संकेत दिया है, वह है जातिवादी राजनीति का वर्चस्व। हालांकि पहले भी मतदाता जाति के अनुसार मतदान करता था किन्तु इस बार तो प्रदेश की राजनीति का पूरी तरह जातीयकरण ही हो गया। इसके लिए राजनीतिक दल भी जिम्मेदार हैं जिहोंने मुद्दों की बजाय जातियों को प्राथमिकता दी। मतदाता ने भी अन्ततः किसी के किसी भी मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया और प्रत्याशी की पार्टी न देखकर उसकी जाति देखकर मत दिया। इस जातिवादी राजनीति का सबसे ज्यादा नुकसान भाजपा को उठाना पड़ा। जाति के आगे भाजपा का आतंकवाद, आन्तरिक सुरक्षा और विकास का मुद्दा नहीं चला।भारतीय जनता पार्टी को अयोध्या मुद्दा छोड़ने का भी नुकसान उठाना पड़ा है। सहयोगियों के दबाव व अल्पसंख्यक मतों का दिवास्वप्न देखकर भाजपा ने पूरे चुनाव के दौरान अयोध्या मुद्दे से दूरी बनाए रखी। जिस भाजपा ने पूरा एक चुनाव अयोध्या मुद्दे पर लड़ा और प्रदेश में 1991 में स्पष्ट बहुमत प्राप्त किया। उस भाजपा ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में उसका नाम तक लिखने से परहेज किया। प्रदेश के चुनाव घोषणा पत्र में अन्तिम पृष्ठ पर इसे स्थान दिया तथा अयोध्या विवाद के रूप में इसका उल्लेख किया। इस कारण भी भाजपा के परम्परागत व हिन्दुत्वनिष्ठ मतदाता ने मतदान में रुचि नहीं दिखाई, जिसका असर मतदान प्रतिशत पर पड़ा और भाजपा 88 सीटों पर सिमट गई।इन चुनावों को साम्प्रदायिक रंग भी दिया गया। कथित सेकुलर दलों के पक्ष में साम्प्रदायिक आधार पर मतदान की अपील जारी की गई। मिल्ली कौंसिल ने प्रदेश में विधिवत तीनों चरणों में प्रत्येक विधान सभा क्षेत्रवार प्रत्याशियों को चयनित कर मुसलमानों से समर्थन देने के लिए अपील जारी की। मिल्ली कौंसिल ने अपनी अपील में साफ कहा था उनका प्रत्याशी चयन का आधार भाजपा को हराने में सक्षम होना है। इसके लिए मिल्ली कौंसिल ने पूरे प्रदेश में प्रत्याशियों का सर्वेक्षण किया, कहां कौन सी पार्टी का प्रत्याशी भाजपा से सीधे मुकाबले में है।उधर समाजवादी पार्टी ने पहले की भांति मुस्लिम मतों की राजनीति की और उसमें सफलता भी पायी। उन्होंने अपनी कई सभाओं में सिमी पर प्रतिबंध का विरोध किया। उनके साथ-साथ बसपा व कांग्रेस ने भी मुस्लिमों को लुभाया। प्रदेशभर में इस बार फिर मुस्लिमों ने रणनीतिक मतदान किया। उनका स्पष्ट उद्देश्य भाजपा को हराना था।भाजपा ने इस चुनाव में 1989 के बाद सबसे खराब प्रदर्शन किया है। भाजपा को प्रदेश में एक और झटका लगा है वह है प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संसदीय क्षेत्र में पार्टी के मतों का घट जाना। यह स्थिति पिछले लोक सभा चुनाव से प्रारम्भ हुई थी जब प्रधानमंत्री के क्षेत्र में पार्टी को प्राप्त मतों की संख्या कम होती जा रही है। इतना ही नहीं इस संसदीय क्षेत्र के पांच विधानसभा क्षेत्रों में से एक पर पार्टी को पराजित भी होना पड़ा है। एक प्रत्याशी बहुत कम अंतर से जीत सका है।वर्ष 2002 के विधान सभा परिणाम जहां भाजपा के लिए अत्यधिक निराशाजनक रहे, वहीं कांग्रेस ने भी अपने इतिहास का सबसे खराब प्रदर्शन किया है। उसे अभी तक के विधानसभा चुनाव में सबसे कम 25 स्थान प्राप्त हुए हैं। हालांकि उसका मत प्रतिशत 0.65 बढा है किन्तु स्थान 8 कम हो गए हैं। कांग्रेस ने अमेठी जहां से उसकी राष्ट्रीय अध्यक्ष सांसद हैं वहां की सदर सीट खो दी है। अमेठी नगर सीट को भारतीय जनता पार्टी की प्रत्याशी रानी अमिता सिंह ने जीत लिया है। यहां पहले कांग्रेस का विधायक था।30

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